देश के संयंत्रों में 18.55 मिलियन टन (एमटी) कोयला शेष है।

देश के बिजली संयंत्रों में कोयले का स्टॉक साल के सबसे निचले स्तर पर

केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (सीईए) के ताजा आंकड़ों से पता चलता है कि देश के घरेलू थर्मल पावर स्टेशनों में कोयले का स्टॉक साल के सबसे निचले स्तर पर है। देश के संयंत्रों में 18.55 मिलियन टन (एमटी) कोयला शेष है जो अप्रैल-जुलाई के पीक गर्मी के समय से भी कम है, जब कोयले का स्टॉक 33-35 एमटी था।  

आंकड़ों के अनुसार 23 अक्टूबर तक देश के 181 थर्मल पावर संयंत्रों में से 83 में कोयले का स्टॉक गंभीर रूप से निचले स्तर पर था। किसी प्लांट में कोयले के स्टॉक को गंभीर स्थिति में तब बताया जाता है जब उसके पास सामान्य स्तर का 25% कोयला ही बचा होता है।

स्थिति की गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जब 1 सितंबर 2023 को देश में 239.978 गीगावाट बिजली की अबतक की सबसे बड़ी मांग को पूरा किया गया, तब भी संयंत्रों के पास कुल मिलकर 27.59 एमटी कोयला बचा था, और 40 संयंत्रों में ही स्टॉक गंभीर स्थिति में था।

बिजली की मांग पूरी करने के लिए आयातित कोयला मिश्रण बढ़ाएगा भारत

देश के ‘बिजली संयंत्रों में तेजी से घटते स्टॉक के मद्देनजर’, बिजली उत्पादकों के लिए अनिवार्य होगा कि वह अपने स्टॉक में आयातित कोयले का मिश्रण 4% से बढ़ाकर 6% करें। इकॉनॉमिक टाइम्स ने सरकारी सूत्रों के हवाले से खबर दी है कि इस बारे में जल्दी ही एक आदेश जारी किया जा सकता है, क्योंकि बिजली की मांग बढ़ रही है और ‘कुछ राज्यों में अपेक्षा के अनुरूप पवन और हाइड्रोपावर उत्पादन नहीं हुआ’ है।

इस बीच, कोयला मंत्रालय ने कहा है कि भारत ने 2022-23 में नेपाल, बांग्लादेश और भूटान सहित पड़ोसी देशों को 1.16 मिलियन टन कोयला निर्यात किया वहीं अगस्त में रूस से तेल का आयात पिछले वर्ष की तुलना में 114.19% बढ़ गया।

अमीर देशों से फेजआउट की मांग करने के लिए अलग रणनीति अपनाएंगे भारत और अफ्रीका

अगले महीने होने वाले जलवायु महासम्मेलन कॉप28 के दौरान विकसित देशों से जीवाश्म ईंधन का उपयोग बंद करने की मांग करने के लिए भारत और अफ़्रीकी देशों ने अलग-अलग रणनीतियां बनाई हैं। जहां अफ़्रीकी देश अमीर देशों से 2030 तक नई जीवाश्म ईंधन परियोजनाओं को मंजूरी देना बंद करने की मांग करेंगे, वहीं भारत इससे आगे जाकर प्रस्ताव रखेगा कि न केवल वह नेट जीरो हासिल करें, बल्कि 2050 तक वातावरण से कार्बन वापस लेना शुरू करें।

भारत और अफ़्रीकी देशों की यह कोशिश इस सिद्धांत पर आधारित है कि अमीर देश जलवायु परिवर्तन के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार हैं, इसलिए उन्हें इससे निपटने में अग्रणी भूमिका निभानी चाहिए। जबकि विकसित देश वैश्विक लक्ष्यों पर ध्यान देना चाहते हैं, जैसे कि 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को तीन गुना करना और “2050 से काफी पहले” जीवाश्म ईंधन को फेजआउट करना।

वहीं एक रिपोर्ट के मुताबिक चीन और भारत इस वर्ष रिकॉर्ड मात्रा में जीवाश्म ईंधन का प्रयोग कर रहे हैं, जबकि वे रिकॉर्ड नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन क्षमता भी स्थापित कर रहे हैं। यह दर्शाता है कि दोनों देशों में एनर्जी ट्रांजिशन की क्या स्थिति है।

दोनों देशों में एयर कंडीशनिंग, हीटिंग, बिजली और परिवहन जैसी सेवाओं के लिए ऊर्जा के उपयोग में तेजी से वृद्धि  हो रही है। ऊर्जा की मांग इतनी ज्यादा है कि नवीकरणीय ऊर्जा जीवाश्म ईंधन का विकल्प होने की जगह, उसके पूरक के रूप में काम कर रही है। यही कारण है कि दोनों की खपत एक साथ बढ़ रही है।

बायोगैस का प्रयोग करके कम किया जा सकता है जीवाश्म ईंधन: रिपोर्ट

इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंशियल एनालिसिस (आईईईएफए) की एक ताजा रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत बायोगैस परियोजनाओं का विस्तार करके जीवाश्म ईंधन पर अपनी निर्भरता कम कर सकता है और नैचुरल गैस आयात में भी कटौती कर सकता है, जिससे देश को 2025-30 के बीच 29 बिलियन डॉलर की बचत होगी।

रिपोर्ट कहती है कि बायोगैस को नैचुरल गैस और जीवाश्म ईंधन के स्थान पर प्रयोग किया जा सकता है। यदि कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) और हाइड्रोजन सल्फाइड जैसी अशुद्धियां हटा दी जाएं तो इसका मीथेन कंटेंट 90 प्रतिशत तक बढ़ाया जा सकता है, जिससे इसकी कैलोरिफिक वैल्यू प्राकृतिक गैस के बराबर हो जाएगी। यह उन्नत बायोगैस, जिसे बायोमीथेन कहा जाता है, पाइपलाइन के जरिए गैर-जीवाश्म ईंधन के तौर पर गैस ग्रिड में जोड़ी जा सकती है।

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