बेहद गंभीर चक्रवाती तूफान बिपरजॉय 15 जून को गुजरात के कच्छ-सौराष्ट्र क्षेत्र में तट से टकराया, जिसके चलते निचले इलाकों में बाढ़ आ गई और दूसरे क्षेत्रों में भी भारी नुकसान हुआ। भारत में गुजरात और राजस्थान के साथ-साथ पाकिस्तान के तटीय इलाकों में भी तूफान ने भारी तबाही मचाई।
हालांकि भारत में इस चक्रवात से प्रभावित इलाकों किसी के मरने की खबर नहीं आयी, लेकिन कई लोग घायल हुए। गुजरात के तटीय इलाकों में तूफान से 5,120 बिजली के खंभे क्षतिग्रस्त हो गए और 4,600 गांवों की बिजली चली गई। वहीं कच्छ-सौराष्ट्र के तटों पर मछुआरों की बस्तियां भारी बारिश और तूफानी लहरों के साथ चक्रवाती हवाओं के चलने से या तो नष्ट हो गईं या उनमें पानी भर गया।
तट से टकराने के बाद धीरे-धीरे चक्रवात की तीव्रता कम हुई और यह डिप्रेशन में बदल गया। लेकिन इसका असर फिर भी जारी रहा और राजस्थान के कई जिलों में भारी बारिश से बाढ़ जैसे हालात पैदा हो गए।
मौसम विभाग ने राजस्थान, गुजरात, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में भारी वर्षा होने के आसार जताए हैं। बिपरजॉय इस साल अरब सागर में उठा पहला चक्रवाती तूफान है।
जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के बाद जल दोहन के लिये चीन लगायेगा वॉटर मेगाप्रोजेक्ट
सूखे का ख़तरा बढ़ रहा है और चीन पानी को एक जगह से दूसरे जगह पहुंचाने के लिये नये वॉटर इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स लगाने की महत्वाकांक्षी योजनायें बना रहा है ताकि जल संकट को कम किया जा सके। लेकिन विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि नदियों के बहाव से अधिक छेड़छाड़ महंगी पड़ सकती है।
चीनी अधिकारियों की योजना के मुताबिक नहरों, जलाशयों और संग्रह सुविधाओं का एक “राष्ट्रीय नेटवर्क” तैयार किया जायेगा जिससे सिंचाई बेहतर हो और बाढ़ और सूखे की आशंका घटे। चीनी सरकार के मुताबिक 2035 तक इन प्रयासों से देश भर में पानी की बराबर सप्लाई का रास्ता साफ हो जायेगा। लेकिन जानकारों की राय अलग है। चीन के जल इन्फ्रास्ट्रक्टर का अध्ययन करने वाले जियोग्राफर मार्क वांग कहते हैं, “अगर चीन पानी के इस्तेमाल को कम करे और दक्षता बढ़ाये तो ऐसे मेगा वॉटर डायवर्जन प्रोजेक्ट्स की ज़रूरत नहीं होगी।”
चीन में प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता विश्व औसत से कम है और सरकार बड़े स्तर के इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स और इंजीनियरिंग प्रयासों से जल समृद्ध दक्षिणी हिस्से से शुष्क उत्तरी हिस्से में पानी की सप्लाई बढ़ाने के लिये प्रयास कर रही है। लेकिन विशेषज्ञ इसकी कीमत को लेकर सवाल कर रहे हैं। पिछले साल ही फिक्सड 15,400 करोड़ अमेरिकी डॉलर के बराबर था और माना जा रहा है कि हर साल यह खर्च तेज़ी से बढ़ेगा। चीन में 60% जल सप्लाई का इस्तेमाल कृषि में होता है और विशेषज्ञों के मुताबिक चीन को फसलों की किस्म और पैटर्न को बदलने की ज़रूरत है।
पक्षीजीवन: पंखों के आकार का है बड़ा महत्व
छोटे पंखों वाले पक्षियों के लिये बसेरे से दूर जीवन बहुत कठिन हो जाता है इसलिये मानवजनित कारणों से अपने परिवेश का नष्ट होना उनके वजूद के लिये संकट है। समशीतोष्ण (टेम्परेट) इलाकों में रहने वाले पक्षियों के पंखों का आकार बड़ा होता है जबकि ऊष्णकटिबंधीय क्षेत्र के कई जंगली परिन्दे छोटे आकार के पंखों वाले होते हैं और इस कारण यह अपने परिवेश से बहुत दूर नहीं जा पाते। यही कारण है कि अगर इनकी पारिस्थितिकी को क्षति हो तो इनका जीवन ख़तरे में पड़ जाता है।
अमेरिका की ओरेगन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने दुनिया भर के 1000 से अधिक प्रजातियों के पंखों पर रिसर्च की और पाया कि ऊष्ण कटिबंधीय क्षेत्र में पाये जाने वाले आइबिस, नीले और सनहरे मकोव और हरे हनीक्रीपर जैसी प्रजातियां अपने परिवेश के नष्ट होने पर दूसरी जगह नहीं रह पाती क्योंकि उन्हें कभी अपने घोंसले से अधिक दूर जानी की ज़रूरत नहीं पड़ी।
लॉन्ग कोविड के मरीज़ों का स्वास्थ्य संबंधी जीवन स्तर कैंसर पीड़ितों से भी नीचे
हर बीमारी स्वास्थ्य संबंधित जीवन स्तर में गिरावट करती है। शोध में पाया गया है कि लंबे समय तक कोविड प्रभाव (लॉन्ग कोविड) झेल रहे कुछ व्यक्तियों का जीवन स्तर कैंसर पीड़ितों से भी नीचे हो सकता है। यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन और यूनिवर्सिटी ऑफ एक्ज़टर के शोधकर्ताओं ने पाया है कि लॉन्ग कोविड के रोगियों में एक प्रमुख लक्षण थकान होता है जो उनके प्रतिदिन के जीवन पर असर डालता है। उन्होंने पाया कि वे गंभीर रूप से बीमार थे और थकान के पैमाने (फैटीग स्कोर) में वह कैंसर संबंधित एनीमिया या गुर्दे की गंभीर बीमारी झेल रहे मरीज़ों से भी बदतर हालात में थे।
पहले किये गये शोध में पाया गया था जिन लोगों को कोविड होता है उनमें से 17 प्रतिशत को लॉन्ग कोविड की समस्या होती है। ऑफिस ऑफ नेशनल स्टेटिस्टिक्स के मुताबिक यूके में जुलाई 2022 तक 14 प्रतिशत लोगों में लॉन्ग कोविड के लक्षण देखे गये। भारत में लॉन्ग कोविड का ऐसा आंकड़ा तो नहीं है लेकिन डब्लू एच ओ के आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक भारत में जून 2023 तक कोविड के कुल 4.4 करोड़ मामले हुये और 5.3 लाख मौतें हुई हैं।
जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ रही फ्लाइट टर्बुलेंस
एक नये शोध में पाया गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण जैसे-जैसे धरती गर्म हो रही है वैसे-वैसे फ्लाइट टर्बुलेंस (उड़ान के दौरान यात्री विमान का हिलना) भी बढ़ रही है। यूके में रीडिंग यूनिवर्सिटी के शोध में पाया गया कि कार्बन इमीशन के कारण गर्म होती हवा ने पूरी दुनिया में फ्लाइट टर्बुलेंस को बढ़ाया है लेकिन उत्तरी अटलांटिक क्षेत्र में 1979 से अब तक टर्बुलेंस की घटनायें 55 प्रतिशत बढ़ गई हैं।
यात्री विमान में को टर्बुलेंस का सामना तब करना पड़ता है जब वह अलग अलग गति से उड़ रही हवाओं के आपस में टकराते पिंडों के बीच से निकलता है। वैसे तो यह किसी उबड़खाबड़ सड़क में बस या कार की यात्रा जैसा अनुभव होता है लेकिन अगर लंबे समय तक या बार बार टर्बुलेंस का सामना करना पड़े को यात्रियों और विमान दल के सदस्यों को चोट लगने का ख़तरा होता है और विमान को भी इससे क्षति हो सकती है।
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