वायु प्रदूषण से मानव स्वास्थ्य को कई तरह के ख़तरे हैं यह बहुत सारी रिसर्च बता चुकी है। अब इस्राइल के हिब्रू विश्वविद्यालय की रिसर्च में यह बात सामने आयी है कि अधिक वायु प्रदूषण झेल रही गर्भवती महिलायें सामान्य से कम वज़न के बच्चों को जन्म दे रही हैं और इन बच्चों का स्वास्थ्य वक्त बीतने के साथ नहीं सुधरता। अगर मां कमज़ोर सामाजिक-आर्थिक परिवेश से है और उसके पोषण की व्यवस्था ठीक नहीं है तो उसके और बच्चे के स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण का प्रभाव कहीं अधिक पड़ता है। इससे पहले भी वैज्ञानिक शोध वायु प्रदूषण से गर्भवती माताओं को होने वाले ख़तरे को सामने लाते रहे हैं जिनमें समय से पहले शिशु का जन्म, उनका अंडरवेट होना और जन्मजात बीमारियों का ख़तरा शामिल है।
लम्बे समय तक वायु प्रदूषण में रहने से ऑटो-इम्यून बीमारियों का खतरा बढ़ता है
यूनिवर्सिटी ऑफ वेरोना के एक नये शोध में पता चला है कि लम्बे समय तक वायु प्रदूषण के कारण ऑटोइम्यून बीमारियों का ख़तरा बढ़ता है यानी ऐसी बीमारियां जिनमें इंसान की प्रतिरक्षा प्रणाली ही उसके शरीर की कोशिकाओं पर हमला करने लगती है। शोध बताता है कि वायु प्रदूषण में लम्बे एक्सपोज़र के कारण रिम्युटॉइड आर्थिरिटिस (एक प्रकार का गठिया रोग) का ख़तरा 40% बढ़ जाता है। इसी तरह पाचन तन्त्र से जुड़ी बीमारी और आंतों में सूजन का खतरा भी 20% अधिक होता है। इसके अतिरिक्त त्वचा और गुर्दे समेत कई अंगों को नुकसान पहुंचाने वाले ऑटो इम्यून बीमारी ल्यूपस का ख़तरा भी 15% अधिक पाया गया।
वैज्ञानिकों ने इस शोध के लिये जून 2016 से नवंबर 2020 के बीच 81,363 लोगों (महिलाओं और पुरुषों) पर अध्ययन किया। इसमें पीएम 10 के 30 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से अधिक और पीएम 2.5 के 20 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से अधिक एक्सपोज़र वाले रोगियों की स्टडी की गई।
उद्योगों के कारण दुनिया में बन रहे “सेक्रिफाइस ज़ोन”: संयुक्त राष्ट्र विशेषज्ञ
संयुक्त राष्ट्र के एक विशेषज्ञ ने चेतावनी दी है कि पर्यावरण में बढ़ते प्रदूषकों के कारण स्ट्रोक, सांस की बीमारी और दिल के दौरे पड़ने के ख़तरे बढ़ रहे हैं। इस कारण पूरी दुनिया में “सेक्रिफाइस ज़ोन” बन रहे हैं और करोड़ों लोगों की जान को ख़तरा पैदा हो रहा है। संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञ डेविड बॉयड ने द गार्डियन को बताया कि दुनिया के सबसे गरीब और कमज़ोर समुदायों को इससे ख़तरा है और उद्योग ऐसे जानलेवा ज़ोन बनाने के लिये ज़िम्मेदार हैं। बॉयड ने यह बात संयुक्त राष्ट्र में जल्द ही पेश की जाने वाली रिपोर्ट से कुछ जानकारियां साझा करते हुये यह बातें कही हैं।
एरोसॉल प्रदूषण से धरती का तापमान बढ़ रहा है
वैज्ञानिकों ने पाया है कि केवल कार्बन डाई ऑक्साइड और मीथेन गैस के इमीशन के कारण ही जलवायु परिवर्तन नहीं हो रहा बल्कि इसके लिये एरोसॉल प्रदूषण भी ज़िम्मेदार है। एरोसॉल वातावरण में फैले महीने कण होते हैं जो नमी के साथ मिलकर एक गुबार बनाते हैं। वैज्ञानिक अब बता रहे हैं कि ग्रीन हाउस गैसों के अलावा मानव जनित एरोसॉल भी ग्लोबल वॉर्मिंग का कारण हैं। रिसर्च बता रही है कि चीन, भारत और दक्षिण पूर्व एशिया के देशों में राख, सूट और ऑर्गेनिक कार्बन की वजह से मानव जनित एरोसॉल बढ़े हैं।
वाहनों, फैक्ट्रियों और पानी के जहाज़ों के अलावा कोयला बिजलीघरों से निकलने वाले धुंयें, पराली जलने और जंगलों या तेल भंडारों में लगने वाली आग इसे बढ़ाने वाले कारक हैं। औद्योगिक क्रांति के साथ साथ इन कारणों ने ज़ोर पकड़ा है और ग्लोबल वॉर्मिंग हुई है।
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