सर्दियों का मौसम जाते ही प्रचंड गर्मी का ग्राफ तेज़ी से बढ़ा है और मार्च के तीसरे हफ्ते में ही आग बरसने लगी है। हिन्दुस्तान टाइम्स के हिसाब से उत्तराखंड और हिमाचल में सामान्य से 7-8 डिग्री अधिक तापमान दर्ज किया गया है। पिछले हफ्ते मंगलवार को गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान, विदर्भ और तेलंगाना में 39-41 डिग्री तक तापमान रिकॉर्ड किया गया।
इससे पहले डाउन टु अर्थ ने नेशनल ओसेनिक एंड एटमोस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) के नेशनल सेंटर फॉर एनवायर्नमेंटल इंफॉर्मेशन (एनसीईआई) द्वारा जारी हालिया रिपोर्ट के हवाले से बताया कि फरवरी 2022 का महीना इतिहास का सातवां सबसे गर्म फरवरी का महीना था। इस वर्ष फरवरी 2022 का औसत तापमान 20वीं सदी के औसत तापमान से 0.81 डिग्री सेल्सियस ज्यादा था, जबकि फरवरी 2016 में तापमान 1.26 डिग्री सेल्सियस ज्यादा दर्ज किया गया था
वैज्ञानिकों का कहना है कि इन इलाकों में जहां एक ओर साफ आसमान के कारण सोलर रेडिएशन और वॉर्मिंग अधिक है वहीं पश्चिमी तट पर बहुत अधिक तापमान का कारण मुंबई और कोंकण में आने वाली ठंडी समुद्र हवा (सी-ब्रीज़) के मार्ग में आई रुकावट है। जानकार कहते हैं कि हीटवेव को लेकर मौसम विभाग की ताज़ा चेतावनियां आईपीसीसी रिपोर्ट से मेल खाती हैं। रिपोर्ट में एक्सपर्ट्स के हवाले से कहा गया है कि भारतीय ज़िलों के परिदृश्य में 45% बदलाव (ट्री कवर, फॉरेस्ट कवर और वैटलेंड, मैग्रोव आदि) का रिश्ता इस अति मौसम की घटनाओं से है।
ओलंपिक खेलों पर जलवायु परिवर्तन की मार
खेलों पर बढ़ते तापमान की मार पड़ रही है और अब इस कारण दुनिया के कई शहर खेलों के कुंभ कहे जाने वाले ओलंपिक का आयोजन नहीं कर पायेंगे। डाउन टु अर्थ में छपी रिपोर्ट कहती है कि आने वाले दिनों में बढ़ते तापमान के कारण सभी जगह उन खेलों का आयोजन करना मुश्किल होगा जहां खिलाड़ियों को कठिन शारीरिक श्रम की ज़रूरत होती है। जर्नल साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित शोध का हवाला देते हुई मैराथन दौड़ों की व्यवहार्यता पर सवाल उठाये गये हैं। हाल के वर्षों में भीषण गर्मी के चलते कई धावकों को रेस छोड़नी पड़ी रही है।
पिछले साल वैश्विक कार्बन उत्सर्जन उच्चतम स्तर पर पहुंचे: आईईए विश्लेषण
कोरोना महामारी के बाद अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिये दुनिया के तमाम देशों द्वारा भारी मात्रा में जीवाश्म ईंधन के प्रयोग के कारण पिछले साल वैश्विक कार्बन इमीशन (उत्सर्जन) उच्चतम स्तर पर पहुंच गये। अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) के एक विश्लेषण के मुताबिक साल 2021 में ऊर्जा क्षेत्र से जुड़ा कार्बन इमीशन 6% बढ़ गया।
विश्लेषण बताता है कि इस उछाल की मुख्य वजह कोयले का बढ़ा प्रयोग था जिसका ज़्यादातर इस्तेमाल चीन में हुआ। इंडिपेन्डेंट में छपी ख़बर के मुताबिक यूरोप और अमेरिका में तेल और गैस की बढ़ी कीमतों और एक्सट्रीम वेदर के कारण कोयले के प्रयोग में बढ़ोतरी हुई।
एक सदी से गर्म हो रही है कैरिबियाई कोरल रीफ: शोध
एक नये अध्ययन में पाया गया है कि कैरिबियाई द्वीपों में कोरल रीफ (मूंगे की दीवारें जो समुद्री इकोसिस्टम का हिस्सा हैं) कम से कम एक सदी से गर्म हो रही हैं। यह रिसर्च प्लस क्लाइमेट नाम के जर्नल में प्रकाशित हुई जिसमें कैरिबिया की 5,326 विशेष रीफ्स के 1871 से लेकर 2020 तक के आंकड़े एक साथ रखे गये हैं। यह स्टडी कहती है कि रीजनल वॉर्मिंग 1915 में शुरू हुई हालांकि कुछ इकोरीजन में यह उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्ध में तेज़ी से बढ़ी। अध्ययन कहता है कि बीसवीं सदी के मध्य तक कुछ थमे रहने के बाद 1980 में कुछ क्षेत्रों में वॉर्मिंग का ग्राफ बढ़ा और 1990 में दूसरे इलाकों में तापमान बढ़ा। शोध के मुताबिक रीफ्स में तापमान 0.18 डिग्री सेंटीग्रेट प्रति दशक के हिसाब से बढ़ा है।
फ्लाइ ऐश को तालाबों में डालने से 50 मगरमच्छ मरे
इस साल फरवरी में राजस्थान के कोटा शहर की एक झील में 50 मगरमच्छ मरे पाये गये हैं। इसके पीछे झील में फ्लाई ऐश का भरना वजह है। कोटा का काला तालाब एक नगर द्वारा चंबल नदी से जुड़ा है और जलीय जीवों के मामले में यह काफी समृद्ध रहा है। वन्य जीव कार्यकर्ताओं के हवाले से डाउन टु अर्थ मैग्ज़ीन की रिपोर्ट बताती है कि कोटा के इस पार्क में करीब 150 मगरमच्छ हुआ करते थे लेकिन अभी करीब 20 करोड़ रुपये के प्रोजेक्ट के तहत रिहायशी कॉलोनी और पार्क बनाने के लिये अर्बन इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट नाम का एक ग्रुप यहां फ्लाई ऐश और मिट्टी को डाल कर तालाब सुखा रहा है जिससे इन मगरमच्छों की मौत हुई है। महत्वपूर्ण है कि वन्य जीव संरक्षण कानून के तहत मगरमच्छ शेड्यूल -1 में संरक्षित जीव हैं और उन्हें मारने पर कड़ी सज़ा का प्रावधान है।
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