ज़हरीली हवा: गंगा का मैदानी क्षेत्र दुनिया का सबसे प्रदूषित क्षेत्र है। फोटो - DNA

दिल्लीवासियों से करीब 10 साल छीन रहा है वायु प्रदूषण

एक नए अध्ययन में कहा गया है कि ज्यादातर जीवाश्म ईंधन के जलने से होने वाला सूक्ष्म वायु प्रदूषण दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में से एक, भारतीय राजधानी में, जीवन प्रत्याशा को लगभग 10 साल कम कर रहा है।

यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो के एनर्जी पालिसी इंस्टिट्यूट (ईपीआईसी) द्वारा नवीनतम वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक प्रकाशित किया गया है| इस शोध में सामने आये आंकड़े देख कर यह पता चलता है की दिल्ली में वायु प्रदूषण की समस्या कितनी गंभीर हो चुकी है। शोध के अनुसार दिल्ली दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर है। वायु प्रदूषण इस सीमा तक पहुंच चुका है की उस से दिल्लीवासियों की उम्र औसतन एक दशक तक कम हो रही है |

वहीं बढ़ते वायु प्रदूषण के चलते लखनऊ में रहने वाले लोगों की उम्र 9.5 साल तक घट सकती है। शोध यह भी बताता है की 2013 के बाद से दुनिया में होने वाले वायु प्रदूषण में करीब 44 फीसद बढ़ोतरी भारत से हुई है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि दक्षिण एशिया के लगभग सभी देशों मं प्रदूषण डब्ल्यूएचओ के दिशानिर्देशों से अधिक है: बांग्लादेश में 15 गुना, भारत में 10 गुना और नेपाल और पाकिस्तान में नौ गुना – यानी करोडो लोग वायु प्रदूषण के कारण होने वाली हानि के चपेट में हैं।

जनवरी 2023 से दिल्ली-एनसीआर में कोयले पर पाबंदी लेकिन लो सल्फर कोल चलता रहेगा 

एक महत्वपूर्ण कदम के तहत कमीशन फॉर एयर क्वॉलिटी मैनेजमेंट (सीएक्यूएम) ने बिजली के इस्तेमाल वाले सभी उद्योगों (जहां पीएनजी सप्लाई की सुविधा है) में 1 अक्टूबर से कोयले के इस्तेमाल पर रोक लगा दी है। जिन क्षेत्रों में पीएनजी की सुविधा आ रही है वहां 1 जनवरी 2023 से यह पाबंदी लागू होगी।  

सीएक्यूएम दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिये बनायी गई एक वैधानिक कमेटी है। एनसीआर में कोयले से चल रहे उद्योगों की दिल्ली-एनसीआर और इससे जुड़े क्षेत्रों में एयर क्वॉलिटी ख़राब करने में बड़ी भूमिका है।  वर्तमान गणना के मुताबिक एनसीआर में उद्योग 1.7 मिलियन टन कोयला सालाना प्रयोग कर रही हैं जिसका भारी प्रभाव हवा की गुणवत्ता पर पड़ता है। हालांकि इस पाबंदी के बाद भी लो-सल्फर कोल यानी कम सल्फर  वाला कोयला इस्तेमाल होता रहेगा जो चिन्ता का विषय है। 

यूरोपियन यूनियन ने आईसी इंजन कारों पर रोक का समर्थन किया 

वायु प्रदूषण से लड़ने के लिये यूरोपीय संसद उस प्रस्ताव पर अमल कर रही है जिसमें 2035 से सभी आईसी (पेट्रोल, डीज़ल या अन्य जीवाश्म ईंधन से चलने वाली) इंजन कारों पर रोक लगाये जाने की बात कही गई है।

फ्रांस में हुई बैठक में ईयू संसद ने इस प्रस्ताव के पक्ष में वोट दिया कि वाहन कंपनियां अगले दशक के मध्य तक कार्बन इमीशन में 100% कमी करें। समाचार एजेंसी एपी के मुताबिक 27 देशों के यूरोपीय यूनियन को इसके लिये जीवाश्म ईंधन से चलने वाली सभी कारों पर पाबंदी लगानी होगी।  यूरोपीय यूनियन के सांसदों ने इस बात का भी समर्थन किया कि ऑटोमोबाइल उद्योग से होने वाले CO2 इमीशन को 2030 तक (2021 के मुकाबले) 55% कम किया जाये। 

जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये पृथ्वी के धूल वाले क्षेत्रों की मैपिंग करेगा नासा 

धरती के मौसम और जलवायु तंत्र में धूल के प्रभाव का अध्ययन करने के लिये नासा जल्दी ही नया मिशन शुरू करने जा रहा है। नासा के उपकरण का नाम है इमिट (EMIT)  – जिसका अभिप्राय है अर्थ सर्फेस मिनरल डस्ट सोर्स इन्वेस्टिगेशन – इस नासा के अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन में लगाया जायेगा जहां से यह पूरी दुनिया में धूल के फैलाव और वितरण का अध्ययन करेगा। नासा के शोध में यह भी पता किया जायेगा कि धूल में क्या-क्या खनिज होते हैं। बीबीसी में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक विशेषज्ञ इस मिशन में यह जानकारी इकट्ठा कर सकेंगे कि इंसानी आबादी, गृह और जलवायु परिवर्तन पर धूल का क्या प्रभाव होता है। 

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