एक नई रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया के 60 प्रतिशत कुप्रबंधित प्लास्टिक कचरे के लिए 12 देश जिम्मेदार हैं, जिनमें भारत भी एक है। हालांकि, भारत का प्रति व्यक्ति प्लास्टिक कचरा उत्पादन बहुत कम है। स्विस गैर-लाभकारी संस्था ईए अर्थ एक्शन की प्लास्टिक ओवरशूट डे रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 2021 के बाद से वैश्विक प्लास्टिक अपशिष्ट उत्पादन में 7.11 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
अनुमान है कि दुनिया में इस साल 220 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा पैदा हुआ है, जिसमें से 70 मिलियन टन पर्यावरण को प्रदूषित करेगा। भारत के अलावा इन 12 देशों में शामिल हैं चीन, रूस, ब्राज़ील, मैक्सिको, वियतनाम, ईरान, इंडोनेशिया, मिस्र, पाकिस्तान, संयुक्त राज्य अमेरिका और तुर्की।
हालांकि रिपोर्ट में प्रति व्यक्ति प्लास्टिक अपशिष्ट उत्पादन (प्रति वर्ष 8 किलोग्राम प्रति व्यक्ति) कम होने के कारण भारत को “कम अपशिष्ट उत्पादक” प्रदूषक के रूप में वर्गीकृत किया गया है, लेकिन इसमें कहा गया है कि 2024 में देश का अपेक्षित कुप्रबंधित कचरा 7.4 मिलियन टन होगा, जो कि “बहुत अधिक” है।
देश में बेहतर’ वायु गुणवत्ता वाले शहरों की संख्या 35% घटी
भारत में बेहतर वायु गुणवत्ता वाले शहरों की संख्या में 35 फीसदी की गिरावट आई है। गौरतलब है कि जहां 14 अप्रैल को बेहतर वायु गुणवत्ता वाले शहरों की संख्या 26 दर्ज की गई थी। वहीं 15 अप्रैल यह आंकड़ा घटकर 17 पर पहुंच गया। 15 अप्रैल को देश के चार शहरों पालकालाइपेरुर, पुदुचेरी, रामनाथपुरम, वाराणसी में वायु गुणवत्ता 36 दर्ज की गई।
वहीं दूसरी तरफ बर्नीहाट में स्थिति सबसे ज्यादा खराब है, जहां वायु गुणवत्ता सूचकांक 308 दर्ज किया गया। वाराणसी से तुलना करें तो बर्नीहाट में प्रदूषण का स्तर नौ गुना ज्यादा है।
देश के 112 शहरों में वायु गुणवत्ता का स्तर संतोषजनक दर्ज किया गया है। इन शहरों में कटक, दावनगेरे, देवास, डूंगरपुर, एलूर, फतेहाबाद, फिरोजाबाद और गडग आदि शहर शामिल हैं। 14 अप्रैल के मुकाबले 15 अप्रैल को संतोषजनक वायु गुणवत्ता वाले शहरों की संख्या में इजाफा हुआ। 14 अप्रैल को इन शहरों की संख्या 105 थी।
देश के 89 शहरों में वायु गुणवत्ता मध्यम श्रेणी की है। वहीं 14 अप्रैल को इन शहरों का आंकड़ा 94 दर्ज किया गया था। इसी तरह देश के 21 शहरों में वायु गुणवत्ता का स्तर ‘खराब’ दर्ज किया गया है।
वायु प्रदूषण से मानसिक स्वास्थ्य खराब होता है: दिल्ली सरकार ने एनजीटी से कहा
दिल्ली सरकार ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल को सौंपी एक रिपोर्ट में कहा है कि वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से भारत में लोगों का मानसिक स्वास्थ्य खराब हो रहा है, जिससे उदासी की भावना बढ़ रही है और सोचने-समझने की शक्ति के साथ जीवन की चुनौतियों से निपटने की क्षमता कम हो गई है।
एनजीटी की बेंच ने रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि वायु प्रदूषक “चिंता, मनोदशा में बदलाव और मनोवैज्ञानिक विकारों सहित मानसिक स्वास्थ्य की कई समस्याओं से जुड़े हुए हैं”
एनजीटी ने कहा कि दिल्ली सरकार की रिपोर्ट में सामान्य उपाय सुझाए गए हैं, जैसे सक्रिय रहना और चिकित्सक से बात करना। साथ ही विशिष्ट उपाय जैसे मानव व्यवहार एवं संबद्ध विज्ञान संस्थान जैसे सरकारी अस्पतालों द्वारा मनोरोग सेवाएं लेना आदि भी सुझाए गए हैं।
वाराणसी में प्रदूषित गंगा: एनजीटी ने मुख्य पर्यावरण अधिकारी पर लगाया जुर्माना
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने उत्तर प्रदेश के मुख्य पर्यावरण अधिकारी पर 10,000 रुपए का जुर्माना लगाया है। यह जुर्माना वाराणसी में गंगा नदी को प्रदूषित करने वाले लोगों और संस्थाओं पर पर्यावरण क्षतिपूर्ति शुल्क लगाने के एनजीटी के आदेश का ‘पालन नहीं करने के लिए’ लगाया गया है।
एनजीटी ने 16 फरवरी को वाराणसी नगर निगम की रिपोर्ट पर गौर किया था, जिसके मुताबिक, 100 एमएलडी (मिलियन लीटर प्रतिदिन) सीवेज का पानी गंगा में छोड़ा जा रहा था। उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) ने पाया था कि वाराणसी में गंगा नदी का बहाव “स्नान के लिए उपयुक्त नहीं” है, और कहा था कि प्रदूषण करने वाले निकायों या लोगों पर पर्यावरण क्षतिपूर्ति शुल्क लगाया जाएगा।
दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
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