बेंगलुरु में भीषण जल संकट, अन्य शहरों पर भी मंडराता खतरा

बेंगलुरु और आस-पास के इलाकों में जल संकट गहराता जा रहा है। कर्नाटक के उप-मुख्यमंत्री डी के शिवकुमार ने कहा है कि राज्य पिछले चार दशकों के सबसे बुरे सूखे से गुज़र रहा है।

भारतीय विज्ञान संस्थान (इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस) के एक अध्ययन के मुताबिक पिछले कुछ दशकों के शहरीकरण के दौरान, बेंगलुरु में कंक्रीट के ढाचों और पक्की जमीनों में 1,055% का इज़ाफ़ा हुआ है। वहीं, जल प्रसार क्षेत्र में 79% की गिरावट हुई है जिससे पेयजल की भारी कमी हुई है। अध्ययन में यह भी कहा गया है कि शहर की 98% झीलों पर अतिक्रमण हो चुका है जबकि 90% में सीवेज और उद्योगों का कचरा भर गया है।

जल संकट की गंभीरता का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मुख्यमंत्री आवास पर भी पानी के टैंकर देखे गए हैं। वहीं शिवकुमार ने कहा कि पहली बार ऐसा हुआ कि उनके घर के बोरवेल में भी पानी नहीं आ रहा है।       

बेंगलुरु को प्रतिदिन 2,600-2,800 मिलियन लीटर पानी की आवश्यकता होती है, और वर्तमान आपूर्ति आवश्यकता से आधी है। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए बेंगलुरु वाटर सप्लाई एंड सीवरेज बोर्ड (बीडब्ल्यूएसएसबी) ने पेयजल के गैर-जरूरी उपयोग पर 5,000 रुपए का जुर्माना लगाया गया है।  जल संकट के बीच कई लोग शहर से पलायन‎ करने लगे हैं। 

ऐसा ही जलसंकट 2019 में चेन्नई में भी हुआ था। हैदराबाद में भी ऐसे ही संकट की आहट सुनाई दे रही है।  हाल ही में नीति आयोग की एक रिपोर्ट में‎ कहा गया कि 2030 तक भारत के करीब 10‎ शहरों में भारी जल संकट देखने को ‎मिल सकता है। 

जनवरी के बाद फरवरी ने भी तोड़ा रिकॉर्ड, समुद्र सतह का तापमान भी रिकॉर्ड स्तर पर 

वैज्ञानिकों के मुताबिक जनवरी के बाद बीती फरवरी का तापमान भी वैश्विक रूप से रिकॉर्ड स्तर पर रहा। यह लगातार नवां महीना है जिसमें ऊंचे तापमान का रिकॉर्ड बना है। यूरोपियन यूनियन के कॉपरनिक्स क्लाइमेट चेंज सर्विस सेंटर के मुताबिक वैश्विक समुद्र सतह तापमान भी रिकॉर्ड स्तर पर रहा। आंकड़े बताते हैं कि फरवरी में तापमान प्री-इंडस्ट्रियल (1850-1900 का औसत तापमान) लेवल से 1.77 डिग्री सेंटीग्रेट ऊपर रहा। 1991 से 2020 के औसत तापमान से यह 0.81 डिग्री ऊपर रहा। पिछले 12 महीनों का औसत वैश्विक तापमान वृद्धि 1.56 डिग्री रही है। 

यूरोप के तापमान को देखें तो 1991-2020 की तुलना में तापमान वृद्धि 3.3 डिग्री की रही। यूरोप में दिसंबर से फरवरी तक का समय महाद्वीप पर अब तक की दूसरा सबसे गर्म सर्दियां रही हैं। अगर ध्रुवीय हिस्सों (पोलर क्षेत्र) को छोड़ दें तो उसके बाहर औसत वैश्विक समुद्र सतह तापमान उच्चतम रहे। यह पहले के 20.98 डिग्री के तापमान को तोड़कर 21.06 डिग्री दर्ज किया गया यह आंकड़े बताते हैं कि धरती की तापमान वृद्धि (थोड़े समय के लिये ही सही) 1.5 डिग्री के उस बैरियर को पार कर गई है जिसके बाद पृथ्वी पर क्लाइमेट चेंज के दीर्घ अवधि के लिये विनाशक परिणाम होंगे।  

यूरोप पर मंडराता ‘विनाशकारी जलवायु परिवर्तन संकट 

पूरे यूरोप में सभी देशों को क्लाइमेट चेंज के विनाशकारी परिणामों के लिये तैयार हो जाना चाहिये। यहां भयानक बाढ़, सूखा और हीटवेव जैसी चरम मौसमी घटनाओं की मार पड़ेगी और समाज और अर्थव्यवस्था में उसका स्पष्ट असर दिखाई देगा। यह बात सोमवार को यूरोपीय यूनियन की क्लाइमेट एजेंसी ने कही।  सरकारों को चुनौतियों का सामना करने के लिये अब नई योजनायें बनानी होंगी। कोपेनहेगेन स्थित क्लाइमेट एजेंसी ने यह बात पूरे यूरोप पर आधारित अपने विश्लेषण में कही। यूरोप धरती पर सबसे तेज़ी से गर्म हो रहा महाद्वीप है जो वैश्विक औसत से दुगनी रफ्तार से गर्म हो रहा है। भले ही देश वार्मिंग की रफ्तार कम कर लें लेकिन तापमान पहले ही प्री इंडस्ट्रियल स्तर से 1 डिग्री ऊपर तो जा ही चुके हैं। 

अल निनो प्रभाव, इस साल होगी फिर रिकॉर्डतोड़ गर्मी  

उधर मौसम विभाग (आईएमडी) ने चेतावनी दी है कि भारत में इस साल गर्मियों की शुरुआत अधिक तापमान के साथ, होगी क्योंकि अल नीनो की स्थिति कम से कम मई तक बनी रहने की संभावना है।

आईएमडी ने भविष्यवाणी की कि देश के पूर्वोत्तर प्रायद्वीपीय हिस्सों — तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और उत्तरी कर्नाटक — और महाराष्ट्र और ओडिशा के कई हिस्सों में हीटवेव वाले दिनों की संख्या सामान्य से अधिक हो सकती है।

मार्च में सामान्य से अधिक बारिश (29.9 मिमी के लॉन्ग-पीरियड एवरेज से 117 प्रतिशत से अधिक) होने की संभावना है।

विभाग ने कहा कि मार्च से मई की अवधि में देश के अधिकांश हिस्सों में अधिकतम और न्यूनतम तापमान सामान्य से अधिक रहने की संभावना है। हालांकि मार्च में हीटवेव की स्थिति नहीं रहेगी। 

दशकों तक निष्क्रिय रहते हैं पारिस्थितिकी को क्षति पहुंचाने वाले आक्रामक पौधे 

पौधों की ऐसी बहुत सारी प्रजातियां हैं जो पारिस्थितिकी और जैव विवधता के लिये बड़ा संकट हैं क्योंकि इनके आक्रामक विस्तार से कई प्रजातियां खत्म हो जाती हैं। अमेरिका के कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में हुये शोध में पाया गया है कि ऐसी आक्रामक वनस्पतियां सक्रिय होने से पहले कई दशकों बल्कि कई बार को सदियों तक सुषुप्त अवस्था में रहती हैं।  इस शोध में दुनिया भर के 9 क्षेत्रों की 5,700 प्रजातियों का अध्ययन किया गया। शोधकर्ताओं का दावा है कि आक्रामक पौधों पर किया गया अब तक का यह सबसे बड़ा विश्लेषण है। शोध करने वाली टीम के सदस्य प्रोफेसर मोहसेन मेसगरन ने कहा, ये पौधे जितनी अधिक देर तक निष्क्रिय रहेंगे, इसके उतने अधिक आसार हैं कि हम इन्हें नजरअंदाज करेंगे। यह देरी अंततः इन पौधों को  एक गंभीर आक्रामक खतरे के रूप में उभरने में मदद करती है। ये आक्रामक पौधे टाइम बम की तरह हैं, जो भारी नुकसान को अंजाम देते हैं।

+ posts

दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
कार्बनकॉपी हिंदी में आपका स्वागत है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

कार्बन कॉपी
Privacy Overview

This website uses cookies so that we can provide you with the best user experience possible. Cookie information is stored in your browser and performs functions such as recognising you when you return to our website and helping our team to understand which sections of the website you find most interesting and useful.