नेचर पत्रिका में प्रकाशित हुए एक नए अध्ययन के अनुसार 2018-2021 के दौरान भारत में मानव-प्रेरित वायु प्रदूषण का अधिकतम स्तर दर्ज किया गया। इस अवधि में कोविड महामारी के पहले, उसके दौरान और बाद के काल को भी शामिल किया गया है, जिसमें देश में परिवहन, औद्योगिक बिजली संयंत्रों, हरित स्थान की गतिशीलता और अनियोजित शहरीकरण के कारण वायु प्रदूषण में वृद्धि देखी गई।
अध्ययन के अनुसार, मानवजनित क्रियाएं जलवायु परिस्थितियों और वायुमंडलीय परिवर्तनों का सबसे प्रमुख कारण हैं और भारत इस तरह की गतिविधियों से सबसे अधिक प्रभावित देश है। शोध में यह भी कहा गया कि ग्रामीण वायु प्रदूषण के संदर्भ में कृषि अपशिष्ट जलाना भी एक मुख्य कारण है। अध्ययन के दौरान दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, पुणे और चेन्नई में वायु प्रदूषण के मामलों में भारी उतार-चढ़ाव दर्ज किया गया।
मुंबई : एक ही दशक में वायु प्रदूषण की शिकायतें 237% बढ़ीं
एक नए शोध के अनुसार, मुंबई में सिर्फ एक दशक में वायु प्रदूषण की शिकायतें साढ़े चार गुना बढ़ीं है। ‘स्टेटस ऑफ़ सिविक इश्यूज इन मुंबई, 2023’ नामक इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 2019 से 2022 के बीच वायु प्रदूषण की शिकायतों में 30% का इज़ाफ़ा हुआ। 2018 से 2022 के बीच 1,491 प्रदूषण संबंधी शिकायतें दर्ज की गईं, जिनमें से 1,075 मुंबई के वायु प्रदूषण से संबंधित थीं।अध्ययन में कहा गया है कि 2021 में कुल 424 प्रदूषण की शिकायतें दर्ज की गईं, जिनमें से 343 वायु प्रदूषण को लेकर थीं। यह आंकड़ा पांच वर्षों में सबसे अधिक है। मुंबई की हवा की बिगड़ती गुणवत्ता से परेशान स्थानीय निवासियों ने अधिकारियों को पत्र भी लिखा है।
अध्ययन में बताया गया है कि पिछले साल बीएमसी द्वारा जारी मुंबई क्लाइमेट एक्शन प्लान (एमसीएपी) में शहर की वायु गुणवत्ता में सुधार के उपायों और योजनाओं को सूचीबद्ध किया गया था, लेकिन उनको प्रभावी ढंग से लागू नहीं किया जा रहा है। शोधकर्ताओं ने कहा कि बीएमसी को पिछले एक साल में उसके द्वारा सुझाए गए कई उपायों को लागू करने पर विचार करना चाहिए था।
कम, मध्यम आय वाले देशों में समय से पहले जन्मे शिशुओं की 91% मौतें वायु प्रदूषण से संबंधित हैं: संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट
उच्च आय वाले देश जलवायु परिवर्तन में सबसे बड़ा योगदान देते हैं, लेकिन जिन लोगों ने संकट में सबसे कम योगदान दिया है, वे इससे सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि कम और मध्यम आय वाले देशों में समय से पहले जन्मे शिशुओं की मृत्यु के 91% मामले वायु प्रदूषण से संबंधित होते हैं।
डब्ल्यूएचओ, यूनिसेफ और पार्टनरशिप फॉर मैटरनल न्यू बोर्न एंड चाइल्ड हेल्थ द्वारा हाल ही में जारी ‘बॉर्न टू सून: डिकेड ऑफ एक्शन ऑन प्रीटरम बर्थ‘ रिपोर्ट जलवायु परिवर्तन के असंख्य प्रभावों पर प्रकाश डालती है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि किस तरह जलवायु परिवर्तन — प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों रूप से — गर्भावस्था के परिणामस्वरूप मृत जन्म, समय से पहले जन्म और गर्भकालीन आयु को छोटा कर रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार, जलवायु परिवर्तन गर्मी, तूफान, बाढ़, सूखा, जंगल की आग और वायु प्रदूषण के अलावा खाद्य असुरक्षा, जल या खाद्य जनित बीमारियों, वेक्टर जनित बीमारियों, प्रवासन, संघर्ष और स्वास्थ्य प्रणाली के लचीलेपन के माध्यम से गर्भावस्था को प्रभावित करता है।
यह बात नई नहीं है की वायु प्रदूषण का शिशुओं पर भारी प्रभाव पड़ता है, लेकिन इनका ज़्यादा प्रभाव उन देशो पर पड़ना जिनका जलवायु परिवत्रन में कम से कम योगदान है चिंताजनक है।
मॉनसून के कमज़ोर होने का रिश्ता वायु प्रदूषण से
पुणे स्थित इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेटिरोलॉजी के वैज्ञानिकों द्वारा किये गये शोध से पता चलता है कि पिछले एक दशक में वायु प्रदूषण और पश्चिमी तट पर बढ़ती चक्रवाती गतिविधि के कारण मॉनसून कमज़ोर हुआ है। शोधकर्ताओं का कहना है कि ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन और अन्य मानव जनित कारकों से ऊष्णदेशीय भाग में मॉनसून के प्रवाह पर बड़ा असर पड़ा रहा है और पश्चिमी तट पर चक्रवात बढ़ रहे हैं। चक्रवातों की संख्या बढ़ेगी तो इससे मॉनसून कमज़ोर होगा क्योंकि इसका रिश्ता भारत के ऊपर नमी के कम होने से हैं।
अमेरिकी वायु प्रदूषण मामले में बीपी को करना होगा $40 मिलियन का भुगतान
बड़ी तेल कंपनी बीपी अमेरिकी उत्सर्जन कानूनों का उल्लंघन करने के लिए $40 मिलियन जुर्माना अदा करेगी। कंपनी अपनी इंडियाना स्थित तेल रिफाइनरी में कैंसर पैदा करने वाले बेंजीन और अन्य हानिकारक प्रदूषकों के उत्सर्जन को रोकने में विफल रही। बीपी को अपने 134 साल पुराने इंडियाना रिफाइनरी में बेंजीन प्रदूषण को रोकने के लिए महत्वपूर्ण निवेश करने की आवश्यकता होगी, जिसका संघीय नियमों का उल्लंघन करने का इतिहास रहा है।
बीपी, न्याय विभाग और पर्यावरण संरक्षण एजेंसी के बीच समझौते के लिए भी कंपनी को वायु प्रदूषण को कम करने के लिए नई तकनीक और अन्य पूंजीगत सुधारों में लगभग $197 मिलियन का निवेश करने की आवश्यकता होगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि उन सुधारों से बेंजीन में प्रति वर्ष अनुमानित सात टन, अन्य खतरनाक वायु प्रदूषकों में प्रति वर्ष 28 टन और वाष्पशील कार्बनिक यौगिक उत्सर्जन में 372 टन की कमी आने की उम्मीद है।
दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
कार्बनकॉपी हिंदी में आपका स्वागत है।
आपको यह भी पसंद आ सकता हैं
-
दिल्ली में इस साल भी बैन रहेंगे पटाखे, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कहीं और जाकर जलाएं
-
दिल्लीवासियों के लगभग 12 साल खा रहा है वायु प्रदूषण: रिपोर्ट
-
वायु प्रदूषण एंटीबायोटिक प्रतिरोधक क्षमता को दे रहा है बढ़ावा
-
वायु प्रदूषण से भारत की वर्ष-दर-वर्ष जीडीपी वृद्धि 0.56% अंक कम हुई: विश्व बैंक
-
देश के 12% शहरों में ही मौजूद है वायु गुणवत्ता मॉनिटरिंग प्रणाली