धरती को ग्लोबल वॉर्मिंग के प्रभावों से बचाने के लिये कार्बन उत्सर्जन में भारी कटौती की ज़रूरत है लेकिन संयुक्त राष्ट्र ने तमाम देशों द्वारा हो रहे कार्बन उत्सर्जन पर जो ताज़ा रिपोर्ट प्रकाशित की है वह बताती है कि इस दिशा में न के बराबर तरक्की हुई है।
मिस्र के शर्म-अल-शेख में नवंबर में हो रहे जलवायु परिवर्तन सम्मेलन से पहले संयुक्त राष्ट्र की “इमीशन गैप रिपोर्ट – 2022” बताती है कि धरती पर तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री तक सीमित करने के लिये जो कदम उठाये जाने चाहिये दुनिया के देश उस लक्ष्य से काफी पीछे हैं और उनके पास इसे हासिल करने के लिये कोई विश्वसनीय रोडमैप नहीं है।
जानिये इस रिपोर्ट की पांच मुख्य बातें
- यूएन की ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक पिछले साल ग्लोसगो में हुये क्लाइमेट चेंज सम्मेलन में (कॉप-26) में विश्व नेताओं द्वारा तय किये लक्ष्य “बेहद अपर्याप्त” हैं और उनसे 2030 में होने वाले इमीशन कटौती पर नगण्य प्रभाव होगा।
- पेरिस संधि के तहत धरती की तापमान वृद्धि को रोकने के प्रयास (जिसमें तापमान वृद्धि को 2 डिग्री से कम रखने का निश्चय था) नाकाफी है और सदी के अंत तक यह तापमान वृद्धि 2.8 डिग्री तक हो सकती है। शर्तों के साथ मौजूदा तय लक्ष्य हासिल होने पर भी यह वृद्धि 2.4 डिग्री तक होगी ही।
- धरती की तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री तक सीमित करने के लिये दुनिया को अपने उत्सर्जन में 45% की कटौती (2010 के स्तर से) करनी है लेकिन मौजूदा कदमों से 2030 तक यह लक्ष्य दूर-दूर तक हासिल नहीं हो रहा।
- अगर सदी के अंत तक धरती की तापमान वृद्धि को 2 डिग्री तक भी रोकना है तो उत्सर्जन में कम से कम 30% की कटौती होनी चाहिये।
- भारत दुनिया के प्रमुख कार्बन उत्सर्जक देशों में है लेकिन 2020 के आंकड़े बताते हैं कि उसका प्रति व्यक्ति इमीशन (2.4 टन कार्बन डाइ ऑक्साइड के बराबर) दुनिया के औसत से काफी कम है जो कि 6.2 टन कार्बन डाइ ऑक्साइड के बराबर है।
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