बढ़ते जलवायु संकट के बावजूद जी20 देश लगातार जीवाश्म ईंधन पर जनता का पैसा खर्च कर रहे हैं। इसी बीच भारत में जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों और कार्रवाइयों पर एक नज़र।
बढ़ते तापमान के कारण भारत तथा अन्य G20 देशों को सभी क्षेत्रों में बड़ा नुकसान उठाना पड़ रहा है। एक नई रिपोर्ट से पता चला है कि रूस के यूक्रेन पर आक्रमण से उत्पन्न ऊर्जा संकट के पहले ही, G20 सरकारों ने 2021 में जीवाश्म ईंधन उत्पादन पर 64 बिलियन डॉलर खर्च किए थे।
विभिन्न देशों के कई संगठनों की साझेदारी द्वारा तैयार की गई जलवायु पारदर्शिता रिपोर्ट (क्लाइमेट ट्रांसपरेंसी रिपोर्ट) ने G20 जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिये उठाये गये कदमों का विश्लेषण किया।
जीवाश्म ईंधन (तेल, कोयला, गैस आदि) के लिए सब्सिडी देने वाले देशों में चीन, इंडोनेशिया और यूके सबसे ऊपर थे। “जी20 में ऊर्जा के लिए लोक वित्त का बड़ा हिस्सा अभी भी जीवाश्म ईंधन उद्योगों को जाता है। 2019-2020 में ऊर्जा के लिए G20 के सरकारी खर्च का 63% जीवाश्म ईंधन पर हुआ।” ओडीआई की सीनियर रिसर्च फेलो और रिपोर्ट की वित्त प्रमुख इपेक जेनक्सू ने कहा।
रिपोर्ट कहती है कि आठ G20 देशों में से पांच ने सालाना 100 अरब डॉलर के क्लाइमेट फाइनेंस (जलवायु वित्त) लक्ष्य में अपना उचित हिस्सा नहीं दिया है। यूके, इटली, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया ने कम योगदान दिया है; वहीं अमेरिका ने अपने हिस्से का केवल 5% ही दिया है।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 2021 में जी20 देशों के ऊर्जा उत्सर्जन में 5.9% की वृद्धि हुई, और यह कोविड महामारी के पहले के स्तरों से भी ऊपर चला गया। “बढ़ते तापमान से सेवाओं, मैन्युफैक्चरिंग, कृषि और निर्माण क्षेत्रों की आय में कमी आई है, जिससे भारत, इंडोनेशिया और सऊदी अरब सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं। इन देशों की अनुमानित आय हानि इनके सकल घरेलू उत्पाद का क्रमशः 5.4%, 1.6% और 1% है,” रिपोर्ट के मुख्य लेखकों में से एक बर्लिन गवर्नेंस प्लेटफॉर्म के सेबस्टियन वेगनर ने कहा।
भारत पर नज़र
लक्ष्य और उत्सर्जन
भारत ने 2070 तक नेट जीरो लक्ष्य की घोषणा की और 2030 तक सकल घरेलू उत्पाद की उत्सर्जन तीव्रता को 2005 के स्तर से 45% तक कम करने के लिए एनडीसी को संशोधित किया। साथ ही, 2030 तक अपनी कुल स्थापित ऊर्जा क्षमता का लगभग 50% गैर-जीवाश्म-ईंधन स्रोतों से प्राप्त करने की प्रतिबद्धता जताई।
रिपोर्ट के अनुसार, भूमि उपयोग, भूमि उपयोग परिवर्तन और वानिकी (एलयूएलयूसीएफ) को छोड़कर, 1990 से 2019 के बीच भारत के कुल ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 182% की वृद्धि हुई है। इसी अवधि में, (एलयूएलयूसीएफ को छोड़कर) इसके कुल मीथेन उत्सर्जन में 10% की वृद्धि हुई है।
भारत ने सीओपी26 में एक अल्पकालिक रणनीति के तौर पर बिजली क्षेत्र में कोयले को चरणबद्ध तरीके से “कम” (न कि “समाप्त”) करने का समर्थन किया था। लेकिन राष्ट्रीय बिजली नीति में 2026-2027 तक देश की कोयला क्षमता 25 गीगावाट तक बढ़ाने की योजना का उल्लेख है, रिपोर्ट ने कहा। भारत ने सीओपी26 में वैश्विक मीथेन संकल्प (ग्लोबल मीथेन प्लेज) पर भी हस्ताक्षर नहीं किए।
हालांकि रिपोर्ट यह भी कहती है कि भारत में ऊर्जा संरक्षण अधिनियम के अनुसार भारी उद्योगों, परिवहन और निर्माण क्षेत्रों को अनिवार्य रूप से ऊर्जा का एक न्यूनतम हिस्सा “गैर-जीवाश्म-ईंधन” स्रोतों से प्राप्त करना होता है। अधिनियम एक कार्बन ट्रेडिंग नियामक ढांचा भी प्रदान करता है। अलग-अलग क्षेत्रों में विकार्बनीकरण की प्रक्रिया का मार्गदर्शन करने के लिए समितियों का गठन किया गया है।
जलवायु प्रभाव और अनुकूलन
रिपोर्ट ने पाया है कि बढ़ते तापमान से जीडीपी के प्रभावित होने के अलावा, भारत की 10% जनसंख्या के हीटवेव से प्रभावित होने की संभावना है। तापमान 3 डिग्री सेल्सियस बढ़ने पर, यह आंकड़ा लगभग 30% तक पहुंच सकता है।
रिपोर्ट का अनुमान है कि 2020 में भारत को उष्णकटिबंधीय चक्रवात, बाढ़ और सूखे जैसी एक्सट्रीम वेदर की घटनाओं से लगभग 87 बिलियन डॉलर का नुकसान हुआ। तापमान में 1 से 4 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होने पर भारत में चावल का उत्पादन 10-30% तक, और मक्के का उत्पादन 25-70% तक गिर सकता है।
भारत के लगभग 33% हिस्से पर सूखे का खतरा रहता है, और इसमें से 50% क्षेत्र दीर्घकालिक सूखे का सामना कर रहे हैं। पिछले कुछ दशकों में सूखे की घटनाएं न केवल तेज हुई हैं बल्कि इनकी दर भी बढ़ी है। इसके अलावा, भारत में 2021 में गर्मी के कारण 167 बिलियन लेबर ऑवर बर्बाद हुए, जो 1990-1999 की तुलना में 39% अधिक है।
“हमारे भूभाग पर एक्ट्रीम वेदर की घटनाओं ने दिखाया है कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव बढ़ रहे हैं, और अधिक से अधिक लोग इससे प्रभावित हो रहे हैं। हमारी ऊर्जा प्रणालियों को बदलने की आवश्यकता साफ़ है, इसके लिए प्रौद्योगिकी विकास और सबसे कारगर तरीकों की जरुरत है। इस काम के लिए विकसित देशों की मदद की जरूरत है, जिनका प्रति व्यक्ति उत्सर्जन भारत की तुलना में बहुत अधिक है। यह भारत को ग्रीनहॉउस उत्सर्जन में बड़ी कटौती करने में सहायक हो सकता है,” सुरुचि भड़वाल, निदेशक, अर्थ साइंस एंड क्लाइमेट चेंज, द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (टीईआरआई) ने कहा।
हांलांकि रिपोर्ट में कहा गया है कि एनडीसी में अनुकूलन के लिए कोई विशिष्ट लक्ष्य निर्धारित नहीं है, कुछ क्षेत्रों में कार्रवाई की योजना बनाई गई है जैसे कृषि, जल, जैव विविधता, तटीय क्षेत्र और मछली पकड़ना, शिक्षा और अनुसंधान, ऊर्जा और उद्योग, स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे।
कार्बन मार्केट और क्लाइमेट फाइनेंस
ऑस्ट्रेलिया और ब्राजील सहित जी20 के छह अन्य सदस्यों के साथ, भारत में भी कार्बन मूल्य निर्धारण की कोई व्यवस्था नहीं है। केवल कनाडा और फ्रांस में प्रति टन कार्बन उत्सर्जन की लागत पर्याप्त रूप से अधिक है।
भारत में ऊर्जा दक्षता (पीएटी योजना के तहत व्यापार योग्य ऊर्जा बचत प्रमाण पत्र) और अक्षय ऊर्जा (वितरण कंपनियों के लिए नवीकरणीय खरीद दायित्वों के अनुपालन के लिए व्यापार योग्य प्रमाण पत्र) को बढ़ावा देने के लिए व्यापार तंत्र हैं।
यह तंत्र अप्रत्यक्ष रूप से कार्बन उत्सर्जन की लागत तय करते हैं। भारत जल्द ही एक घरेलू कार्बन ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म की घोषणा कर सकता है। कुछ राज्य (जैसे गुजरात) ईटीएस के कार्यान्वयन पर विचार कर रहे हैं, जो अभी प्रारंभिक चरणों में हैं। 2017 में भारत ने स्वच्छ पर्यावरण उपकर (कोयला कर) से मिलने वाले राजस्व को अलग से गिनना बंद कर दिया क्योंकि इसे जीएसटी में शामिल कर लिया गया।
क्लाइमेट फाइनेंस के मोर्चे पर रिपोर्ट ने पाया कि 2020 में भारत ने जीवाश्म ईंधन सब्सिडी पर 6.9 बिलियन डॉलर खर्च किए, इसका लगभग 97% पेट्रोलियम पर खर्च हुआ। ऊर्जा क्षेत्र में सब्सिडी पिछले कुछ वर्षों में कम हुई है। तेल और गैस से हटकर अब सब्सिडी उल्लेखनीय रूप से ऊर्जा पारेषण और वितरण की ओर निर्देशित की जा रही है। हालांकि, अक्षय ऊर्जा के लिए प्रत्यक्ष सब्सिडी अभी भी जीवाश्म ईंधन सब्सिडी से कम है।
जनवरी 2021 में भारत ने ‘सतत वित्त पर विशेषज्ञ समिति’ की स्थापना की। इसका उद्देश्य था देश में सतत वित्त की एक रूपरेखा और रोडमैप परिभाषित करना, सतत गतिविधियों के वर्गीकरण का एक मसौदा तैयार करना और जोखिम आंकलन के लिए एक फ्रेमवर्क का सुझाव देना। मई 2021 में, आरबीआई ने जलवायु जोखिम और धारणीय वित्त के विनियमन के लिए पहल करते हुए एक सस्टेनेबल फाइनेंस ग्रुप का गठन किया।
जलवायु महत्वाकांक्षा को बढ़ाने के प्रमुख अवसर
रिपोर्ट ने सुझाव दिया कि भारत में जलवायु कार्रवाई में निवेश बढ़ाने से नौकरियां पैदा होंगी, यदि राजनीतिक अनिवार्यताओं के साथ-साथ विभिन्न सतत विकास लक्ष्यों की प्राप्ति को भी ध्यान में रखा जाए। शमन कार्यों से महत्वपूर्ण स्वास्थ्य लाभ हो सकते हैं, जैसे सार्वजनिक परिवहन के प्रयोग से ग्रीनहाउस गैसों में कमी आएगी, और वायु गुणवत्ता में भी सुधार होगा। रिपोर्ट कहती है कि संसाधन-दक्षता, विशेष रूप से ऊर्जा दक्षता, से बेहतर प्रतिस्पर्धा और रोजगार सृजन की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।
यह रिपोर्ट कार्बन कॉपी अंग्रेजी से साभार ली गयी है। इसका हिन्दी अनुवाद उत्कर्ष मिश्रा ने और संपादन हृदयेश जोशी ने किया है।
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