यूएनएफसीसीसी की एनडीसी सिंथेसिस रिपोर्ट कहती है कि उत्सर्जन में ज्यादातर कमी 2030-2050 के बीच आने की संभावना है, पहले नहीं।
मिस्र के शर्म-अल-शेख में सोमवार से शुरू हो रहे जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में इस बात का आकलन भी होगा कि आखिर उन वादों से क्या हासिल हो रहा है जो दुनिया के तमाम देशों ने ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लिए किए हैं। इन राष्ट्रीय वादों या संकल्पों को तकनीकी भाषा में एनडीसी (नेशनली डिटर्माइंड कॉन्ट्रिब्यूशन) कहा जाता है।
शर्म-अल-शेख सम्मेलन से पहले जलवायु परिवर्तन पर वार्ता के लिये बने संयुक्त राष्ट्र के पैनल (UNFCCC) की रिपोर्ट आई है। इसे एनडीसी सिंथेसिस रिपोर्ट कहा जाता है। इस रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि तमाम देशों द्वारा मूल रूप से एनडीसी के जो संकल्प किए गए थे उनकी तुलना में, संशोधित योगदान अब उत्सर्जन में कटौती को 2025 में लगभग 3.8% तक और 2030 में 9.5% तक बढ़ाने का मार्ग प्रशस्त करते हैं।
यहां यह जानना महत्वपूर्ण है कि साल 2030 तक धरती की तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री से नीचे रखने के लिए विश्व को अपने सारे इमीशन (2010 की तुलना में) 45% कम करने होंगे। इस लिहाज़ से वर्तमान एनडीसी का पालन हो भी जाए तो भी यह ज़रूरी लक्ष्य से काफी पीछे है।
रिपोर्ट कहती है कि वर्तमान एनडीसी के कारण वैश्विक उत्सर्जन 2030 से पहले चरम पर होगा, लेकिन फिर भी यह पेरिस समझौते की ऊष्मता सीमा को प्राप्त करने के लिए आवश्यक कटौती से कम है ।
वर्तमान एनडीसी के कारण 2025 में कुल वैश्विक ग्रीनहाउस उत्सर्जन इस तरह होगा:
1990 में उत्सर्जन के स्तर से 53.7% अधिक
2010 के स्तर से 12.6% अधिक
2019 के स्तर से 1.6% अधिक
उपरोक्त ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन आंकड़ों में भूमि-उपयोग, भूमि-उपयोग बदलाव और वानिकी के (LULUCF) कारण उत्सर्जन पर प्रभाव शामिल नहीं है।
रिपोर्ट कहती है कि साल 2030 में उत्सर्जन में गिरावट तय है, जो 2019 के स्तर से थोड़ा कम होगा ।
उत्सर्जन में ज्यादातर कमी 2030-2050 के बीच आने की संभावना है, पहले नहीं। एक्सट्रीम वेदर की मार और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को देखते हुए जानकार सवाल उठा रहे हैं कि ग्लोबल वॉर्मिंग से लड़ने की यह मुहिम मानवता पर भारी पड़ सकती है।
दूरगामी लक्ष्यों से संकेत मिलता है कि (बड़ी अनिश्चितताओं का असर न हो तो) कुल जीएचजी उत्सर्जन स्तर 2019 की तुलना में 2050 में लगभग 64% कम हो सकता है।
कार्बन बजट की बात करें तो आईपीसीसी के अनुमानित 500 GtCO2eq (गीगाटन कार्बन डाइ ऑक्साइड के बराबर) के बजट का 86% इस दशक के अंत तक वर्तमान योजनाओं में समाप्त हो जाएगा। शेष 70 GtCO2eq, 2030 तक कुल वैश्विक उत्सर्जन के नवीनतम अनुमानों के हिसाब से 2 वर्षों के लिए भी काफी नहीं है।
कुछ सुधार हो रहे हैं, लेकिन यह रफ्तार धरती की तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस पर सीमित करने के लिए पर्याप्त नहीं है।
मौजूदा नीतियों और लक्ष्यों के कारण 2100 तक धरती की तापमान वृद्धि कम से कम 2.1-2.9 डिग्री सेल्सियस के बीच होने का अनुमान है।
दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
कार्बनकॉपी हिंदी में आपका स्वागत है।
आपको यह भी पसंद आ सकता हैं
-
प्लास्टिक संधि पर भारत की उलझन, एक ओर प्रदूषण तो दूसरी ओर रोज़गार खोने का संकट
-
बाकू में खींचतान की कहानी: विकसित देशों ने कैसे क्लाइमेट फाइनेंस के आंकड़े को $300 बिलियन तक सीमित रखा
-
बड़े पैमाने पर रोपण नहीं वैज्ञानिक तरीकों से संरक्षण है मैंग्रोव को बचाने का उपाय
-
बाकू में ग्लोबल नॉर्थ के देशों ने किया ‘धोखा’, क्लाइमेट फाइनेंस पर नहीं बनी बात, वार्ता असफल
-
क्लाइमेट फाइनेंस पर जी20 का ठंडा रुख