एक्सट्रीम वेदर की मार: उत्तर पूर्व के बाद अब देश के उत्तरी राज्य हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के साथ पूर्वी तटीय राज्य ओडिशा पर मौसमी मार पड़ी है।

बाढ़ और भूस्खलन का कहर जारी, देश के उत्तरी और पूर्वी राज्यों में 50 की मौत

भारत के उत्तरी और पूर्वी हिस्से में ज़बरदस्त मॉनसूनी बारिश और भूस्खलन के कारण करीब 50 लोगों की मौत हो गई। बारिश के पानी ने कई गांवों में फसल को पूरी तरह चौपट कर दिया। इससे पहले अगस्त और सितंबर में मौसम विभाग ने औसत बारिश का पूर्वानुमान किया था जिससे उम्मीद थी कि फसल अच्छी होगी और अर्थव्यवस्था को फायदा होगा। भारत में जीडीपी में कृषि का 15% से अधिक योगदान है और देश की करीब आधी आबादी सीधे या परोक्ष रूप से रोज़गार के लिये इस पर निर्भर है। 

उत्तर भारत में में बारिश और भूस्खलन से सबसे अधिक प्रभावित होने वाले राज्यों में हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड रहे। हिमाचल में तीन दिनों के भीतर 36 लोगों की जान गई और उत्तराखंड में कम से कम 4 लोग मरे और 13 लापता हो गये। इन राज्यों में हालात को काबू में करने के लिये आपदा प्रबंधन की टीमें लगाई गईं। उधर पूर्वी राज्य ओडिशा में 8 लाख लोग बाढ़ से प्रभावित हुये और कम से कम 6 लोगों की मौत हो गई।     

संवेदनशील फूलों की घाटी क्षेत्र में हैलीपेड का विरोध 

उत्तराखंड के चमोली ज़िले में यूनेस्को की विश्व धरोहर घोषित की गई फूलों की घाटी में एक हेलीपैड के निर्माण का विरोध हो रहा है। यहां के स्थानीय लोगों और विशेषज्ञों का कहना है कि यहां अतलाकोटी (घांघरिया और हेमकुण्ड के बीच 7 किलोमीटर का हिस्सा)  एक संवेदनशील एवलांच क्षेत्र है जहां आपदा का खतरा किसी टाइम बम की तरह है। हिमालयी क्षेत्र में पड़ने वाले चमोली ज़िले में जल्दी ग्लोशियर पिघल रहे हैं और पिछले साल यहां विनाशकारी बाढ़ की घटना हुई थी। 

यह क्षेत्र लक्ष्मण गंगा जलागम क्षेत्र में है। देहरादून स्थित वाडिया इंस्टिट्यूट और हिमालयन जियोलॉजी की 2011 में प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया है कि यहां पचास से अधिक एवलांच वाले इलाके हैं जहां पिछले कुछ सालों में जमी ताज़ा बर्फ के पहाड़ खिसक कर नीचे आ सकते हैं। इस क्षेत्र में जहां गर्मियों में 30 डिग्री तक तापमान पहुंचने लगा है वहीं जाड़ों में यह शून्य से 7 डिग्री नीचे तक पहुंच जाता है। जलवायु परिवर्तन के कारण मौसमी अनिश्चितता बढ़ रही है। महत्वपूर्ण है कि इसी क्षेत्र में एक रोपवे भी बनाया जा रहा है और एक हेलीपैड पहले से स्थित है।   

ग्लोबल वॉर्मिंग: भारत में गेहूं की पैदावार में होगी 7% तक गिरावट  

एक नई रिसर्च बताती है कि ग्लोबल वॉर्मिंग रोकने के प्रयासों से अगर धरती की तापमान वृद्धि 2 डिग्री तक सीमित भी कर ली जाये तो गेहूं की पैदावार बड़ा उतार-चढ़ाव होगा। भारत समेत दक्षिण एशियाई देशों और अफ्रीकी देशों में गेहूं के उत्पादन में  बड़ी गिरावट और मूल्यों में तेज़ उछाल दिखेगा। जर्नल वन अर्थ में प्रकाशित रिसर्च के मुताबिक भारत में गेहूं की पैदावार में 6.9% की कमी और कीमतों में 36% तक का उछाल होगा। रिसर्च के मुताबिक मिस्र में तो गेहूं का उत्पादन 24.2% तक गिर सकता है। खाद्य और कृषि संगठन ने पहले ही चेतावनी दी है कि 2050 तक अनाज की वार्षिक मांग 43 प्रतिशत तक बढ़ जायेगी और इस लिहाज से शोध के नतीजे भारत के लिये डराने वाले हैं। 

हालांकि चीन, अमेरिका और यूरोपीय देशों में तापमान वृद्धि के कारण गेहूं की पैदावार बढ़ेगी। अनुमान है कि इस कारण  वैश्विक पैदावार में करीब 1.7 प्रतिशत तक बढ़ोतरी हो जायेगी।  

जलवायु परिवर्तन से कम होगी सौर और पवन ऊर्जा क्षमता

एक नये शोध में कहा गया है कि आने वाले 50 सालों में जलवायु परिवर्तन के असर से सौर और पवन ऊर्जा उत्पादन प्रभावित होगा। यह शोध पुणे स्थित भारतीय ऊष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान (आईआईटीएम) ने किया है जिसके मुताबिक सूर्य के किरणों की तीव्रता आने वाले दिनों में कई जगहों पर कम हो सकती है जिसका असर सौर ऊर्जा उत्पादन पर पड़ेगा। इसी तरह पवन ऊर्जा संयंत्रों की क्षमता भी प्रभावित होगी। हवा की गति उत्तर भारत में कम और दक्षिण भारत में तेज़ हो सकती है। 

आईआईटीएम का यह अध्ययन जलवायु मॉडल आँकलन पर आधारित है। जानकारों का कहना है कि ऐसे में सौर और पवन ऊर्जा टेक्नोलॉजी के विकास में निवेश और कार्बन उत्सर्जन को नियंत्रित करने की ज़रूरत है।   

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