सप्लाई पर असर: यूरोपीय देशों की आक्रामक खरीद से भारत की गैस सप्लाई पर असर पड़ा है।

यूरोप में बढ़ती गैस की खपत से भारत की सप्लाई प्रभावित

रूस-यूक्रेन संकट के बाद यूरोप अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में उपलब्ध ज़्यादा से ज़्यादा  गैस आयात कर रहा है जिससे भारत को यह ईंधन हासिल करने में   दिक्कत हो रही है। सर्दियों से पहले यूरोपीय देश गैस जमा कर किसी भी संकट से बचना चाहते हैं वहीं सूत्र बताते हैं कि भारतीय कंपनी इंडियन ऑइल ने एलएनजी के लिये जो निविदा निकाली उस पर उन्हें कोई सप्लायर नहीं मिल पाया है। ख़बर है कि इन हालात में गैस अथॉरिटी ऑफ इंडिया (गेल) ने खाद, बिजली और पेट्रोकैमिकल प्लांट्स को सप्लाई में कटौती कर दी है। 

ग्रीनपीस ने नॉर्थ सी में गैस प्रोजेक्ट के लिये यूके सरकार को अदालत में घसीटा  

यू के में इस साल रिकॉर्ड तापमान दर्ज किया गया और इसके हफ्ते भर बाद अब यूके सरकार कानूनी कार्रवाई का सामना कर रही है। आरोप है कि नॉर्थ सी में जो गैस प्रोजेक्ट मंज़ूर करते हुये यूके सरकार ने इस बात को नहीं आंका कि इससे क्लाइमेट पर कुप्रभाव डालने वाला कितना  ग्रीन हाउस गैस इमीशन होगा अब ग्रीनपीस ने सरकार को कोर्ट में घसीटा है। ग्रीनपीस का दावा है कि मल्टीनेशनल कंपनी शेल के जैकडॉ गैस फील्ड प्रोजेक्ट से क्लाइमेट संकट बढ़ेगा और सरकार ने इसे नज़रअंदाज़ किया है। यह प्रोजेक्ट नॉर्थ सी में सरकार द्वारा मंज़ूर किये गये 6 में से एक है जिनके बारे में कहा जा रहा है कि इनसे यूके के जलवायु संकट से लड़ने के सभी प्रयास बेकार हो जायेंगे। ग्रीनपीस का कहना है कि इस प्रोजेक्ट से जितनी गैस निकाली जायेगी उसके जलने से इतनी कार्बन डाइ ऑक्साइड निकलेगी जितनी घाना पूरे एक साल में पैदा करता है। 

तेल और गैस क्षेत्र में पिछले 50 साल में हर रोज़ हुआ 300 करोड़ डॉलर का प्रतिदिन मुनाफा 
विश्व बैंक के आंकड़ों पर आधारित विश्लेषण के हिसाब से ऑइल और गैस सेक्टर ने पिछले 50 साल में हर रोज़ औसतन 300 करोड़ ( 3 बिलियन) अमेरिकी डॉलर के बराबर मुनाफा कमाया। पिछले 5 दशकों में इन विशाल कंपनियों ने कुल 52 लाख करोड़ (ट्रिलियन) अमेरिकी डॉलर कमाये। इस स्टडी को अभी किसी साइंस पत्रिका में प्रकाशित होना बाकी है गार्डियन ने अपनी ख़बर में बताया है कि अकूल दौलत और मुनाफा कमाने वाली कंपनियों ने नीतिगत फैसले लेना वाली सरकारों और महत्वपूर्ण पदों पर बैठे लोगों को भी प्रभावित किया। विशेषज्ञ कहते हैं कि इस धन से इन कंपनियों के पास “हर राजनेता को खरीदने” और क्लाइमेट संकट से निपटने की कोशिशों को सुस्त करने की ताकत मिली।

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