भारत की लोकसभा (संसद) में पिछले एक पखवाड़े में जलवायु संकट पर दुर्लभ परन्तु तीखी चर्चा हुई। विपक्षी नेताओं ने सीओपी26 में सरकार की हालिया घोषणाओं पर सवाल उठाया, जिसमें 2070 तक शुद्ध शून्य लक्ष्य प्राप्त करने की प्रतिबद्धता जताई गई है। विपक्ष ने यह भी पूछा कि इस तरह वचनबद्ध होने से पहले राज्यों से सलाह क्यों नहीं ली गई। द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम (द्रमुक) की सांसद कनिमोझी करुणानिधि ने संसद को बताया कि नेट ज़ीरो तक पहुंचने के लिए भारत को कुल 5,630 गीगावॉट सौर ऊर्जा के संयंत्रों की ज़रूरत है। उन्होंने पूछा कि इसे कैसे पाया जा सकता है जब कि देश में वर्तमान में केवल 46.25 गीगावाट ग्रिड सौर ऊर्जा से जुड़ी है। अन्य मुद्दों जैसे तटीय क्षेत्रों में संकट, उत्तर भारत में वायु प्रदूषण और पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक 2020 में भारत के खराब प्रदर्शन पर भी चर्चा की गई। तृणमूल कांग्रेस की काकोली घोष जलवायु परिवर्तन के कारण सुंदरवन पर छाये संकट पर बोलीं।
केंद्र ने पर्यावरणीय मुद्दों पर संसद को दी जानकारी
केंद्र सरकार ने राज्यसभा में भारत के पर्यावरण संबंधी मुद्दों पर संसद में जानकारी दी। केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय में राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने कहा कि भारत में जंगल की आग से होने वाले उत्सर्जन का ग्लोबल वार्मिंग में केवल 1-1.5% योगदान देता है, जबकि दुनिया भर में जंगल की आग से भारी उत्सर्जन होता है। राज्यमंत्री ने वायु प्रदूषण और लोगों के स्वास्थ्य पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के समाधान के लिए सरकार द्वारा उठाए गए उपायों की भी जानकारी दी।
कैबिनेट ने आखिरकार केन-बेतवा रिवर-लिंकिंग परियोजना को दी मंजूरी
मध्य प्रदेश में केन नदी को उत्तर प्रदेश की बेतवा नदी से जोड़ने वाली भारत की पहली रिवर-लिंकिंग परियोजना को आखिरकार 40 साल बाद मंजूरी मिल गई। जहां एक ओर वर्षों से यह चिंता जताई जा रही है कि 44,605 करोड़ रुपये की यह परियोजना पर्यावरण को क्षति पहुंचाएगी, वहीं सरकार का यह कहना है कि इस योजना से जल संकट का हल निकलेगा जिससे दोनों राज्य परेशान हैं। कांग्रेस सांसद और पूर्व पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने इस साल की शुरुआत में ट्वीट किया था कि यह परियोजना “मध्य प्रदेश में पन्ना टाइगर रिजर्व को नष्ट कर देगी”।
परियोजना को कैबिनेट की हरी झंडी यूपी विधानसभा चुनाव से दो महीने मिली है। इसे “राष्ट्रीय परियोजना” माना गया है, इसलिए लागत का 90% केंद्र द्वारा वहन किया जाएगा, जबकि शेष 10% का भुगतान दोनों राज्य करेंगे। इस परियोजना के आठ साल में पूरा होने की उम्मीद है।
दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
कार्बनकॉपी हिंदी में आपका स्वागत है।
आपको यह भी पसंद आ सकता हैं
-
‘जंगलों के क्षेत्रफल के साथ उनकी गुणवत्ता देखना बहुत ज़रूरी है’
-
बाकू सम्मेलन के बाद विकासशील देशों ने खटखटाया अंतर्राष्ट्रीय अदालत का दरवाज़ा
-
बाकू सम्मेलन: राजनीतिक उठापटक के बावजूद क्लाइमेट-एक्शन की उम्मीद कायम
-
क्लाइमेट फाइनेंस पर रिपोर्ट को जी-20 देशों ने किया कमज़ोर
-
महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में खनन के लिए काटे जाएंगे 1.23 लाख पेड़