कोयला बिजली घरों को दिये जाने वाले कर्ज में 90% गिरावट

कर्नाटक, मध्यप्रदेश, गुजरात राज्यों ने अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं के लिए खोले अपने दरवाजे

कोयला और रिन्यूएबल ऊर्जा  के बीच किये गये एक ताज़ा तुलनात्मक अध्ययन “कोयला व रिन्यूएबल -2018” से पता चलता है कि भारत में  एनर्जी  के क्षेत्र में निवेश  रिन्यूएबल ऊर्जा के तरफ बढ़ने की उम्मीद है। यह रिपोर्ट, दिल्ली स्थित सेंटर फॉर फ़ाइनेंशियल एनालिसिस (सीएफए,CFA) द्वारा तैयार भारत में ऊर्जा निवेश की प्रवृत्ति का एक वार्षिक विश्लेषण है।जिसे आईआईटी मद्रास में आयोजित “एनर्जी फाइनेंस सम्मेलन 2019″में आज जारी किया गया।

ताज्जुब है कि , सीएफए के आंकलन के अनुसार, पिछले वर्ष की तुलना में 2018 में कोयला आधारित बिजली परियोजनाओं में निवेश 90% तक गिरावट हुई । वर्ष 2018 में कुल 3.8 गीगावॉट उत्पादन क्षमता वाली सिर्फ 5 कोयला आधारित बिजली परियोजनाओं को कुल 6081 करोड़ रुपए (850 मिलियन डॉलर) का कर्ज़ हासिल हुआ। इसके विपरीत वर्ष 2017 में कुल 17 गीगावॉट उत्पादन क्षमता वाली 12 कोयला आधारित बिजली परियोजनाओं को 60767 करोड़ रुपए (9.35 अरब डॉलर)का कर्ज़ मिला था।चिंता की बात यह है कि देश में सौर, पवन और कोयला आधारित ऊर्जा परियोजनाओं में कुल निवेश भी 63% से अधिक गिर गया। 

 इसके अलावा, इन पांचों में से केवल एक- 1.98GW घाटमपुर तहसील कोयला आधारित पावर प्लांट, नया है और इसमें से1,207 करोड़ रुपए ( 190 मिलियन अमरीकी डॉलर)  कोयला आधारित बिजली  संयंत्रों के  लिए लिए जो कुल वित्त का सिर्फ 20% हिस्सा है।शेष, 75 4,875 करोड़ रुपए ( 661 मिलियन अमरीकी डॉलर) का उपयोग सीएफए के अनुसार मौजूदा परियोजनाओं को पुनर्वित्त करने के लिए किया गया था। इसका 75% से अधिक पश्चिम बंगाल के 600MW( मेगा वाट) हल्दिया थर्मल पावर प्लांट की ओर चला गया, जो 350MW ( मेगा वाट) विस्तार के लिए चुना गया है।

 वर्ष 2018 में कोयले से चलने वाली बिजली परियोजनाओं को  दिए जाने वाले प्राथमिक वित्तपोषण (पुन: वित्तपोषण के बजाय नई परियोजनाओं की लेंडिंग के लिए ज्यादातर इस्तेमाल किया जाने वाला तरीका) में वर्ष 2017 के मुकाबले 93% की गिरावट हुई है और यह वर्ष 2017 में मिले 17224 करोड़ रुपए के मुकाबले वर्ष 2018 में महज 1207 करोड़ रुपये (190 मिलियन डॉलर) ही रह गया।

वहीं  वर्ष 2017 के मुकाबले 2018 में अक्षय ऊर्जा संबंधी परियोजनाओं के वित्तपोषण में 1529 करोड़ रुपए (45 मिलियन डॉलर) की बढ़ोत्‍तरी देखी गयी। वर्ष 2018 में कुल 4.7 गीगावॉट उत्पादन क्षमता वाली 49 परियोजनाओं के लिए 24442 करोड रुपए (3.55 अरब डॉलर) का कर्ज़ मिला। इनमें से 60% हिस्सा सौर ऊर्जा परियोजनाओं को जबकि बाकी 40% भाग वायु बिजली संबंधी परियोजनाओं के हिस्से में आया।

गौरतलब है कि वर्ष 2017 से 2018 के बीच अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं को होने वाले प्राथमिक वित्‍तपोषण में 10% की वृद्धि हुई है।

सीएफए ने अप्रत्याशित रूप से यह पाया कि    वर्ष 2018 में कोयले से चलने वाले बिजली घरों को मिला ज्यादातर कर्ज़ (3938 करोड़ रुपये/559 मिलियन डॉलर) पूर्ण सरकारी और सरकार के स्वामित्व वाले वित्तीय संस्थानों से प्राप्त हुआ है। वहीं, निजी बैंकों ने अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं को मिले कुल वित्तपोषण के तीन चौथाई हिस्से (18263 करोड़ रुपए /2.64 अरब अमरीकी डॉलर) का योगदान किया है। यह रुख वर्ष 2017 के नतीजों के अनुरूप है।

 मार्च 2018 की संसदीय पैनल की रिपोर्ट ने कुल  40GW की संयुक्त क्षमता की 40 ऐसी बिजली परियोजनाओं को जो तनावग्रस्त और घाटे में चल रही हैं, का वर्णन किया । एक महीने बाद, बैंक ऑफ अमेरिका-मेरिल लिंच ने अपनी रिपोर्ट में 71GW( गेगा वाट) केथर्मल पावर प्रोजेक्ट्स की जांच की गई और पाया गया कि 3.5 लाख करोड़ रुपए ( 53 बिलियन अमरीकी डॉलर) का तनाव था, जिसमें 2.5 लाख करोड़ रुपए (38 बिलियन अमरीकी डॉलर) पहले ही खराब हो चुके थे।

 वर्ष 2018 में कुछ भारतीय राज्यों ने अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं के लिए साफ तौर पर अपने दरवाजे खोल दिए। कर्नाटक, मध्यप्रदेश और गुजरात में स्थापित होने वाली परियोजनाओं ने पूरे देश में सौर तथा वायु बिजली की कुल 23 अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं को दिए जाने वाले कर्ज़ का आधा हिस्सा हासिल कर लिया है। इस बीच, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल ने एक भी अक्षय ऊर्जा परियोजना  के बजाय कोयले से चलने वाली तीन बिजली परियोजनाओं के लिए कर्ज़ हासिल किया।

केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (सीईए) ने अपनी जाँच के दौरान पाया  कि देश भर के डिस्कॉम या बिजली वितरण कंपनियों पर अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं का 30.12 बिलियन अमरीकी डॉलर का क़र्ज़ बकाया है।

अध्‍ययन से साफ़ जाहिर होता है कि वैश्विक बाजार के अनुरूप कोयला बिजली परियोजनाओं में निवेश की मात्रा में उल्‍लेखनीय गिरावट आ रही है।  बहरहाल, यह जानना महत्‍वपूर्ण है कि भारत में स्‍वच्‍छ ऊर्जा की तरफ कदम बढ़ाने के मामले में सरकारी वित्‍तीय संस्‍थाओं या सार्वजनिक बैंकों के मुकाबले निजी बैंक आगे चल रहे हैं। सरकार को चाहिये कि वह सार्वजनिक बैंकों तथा वित्‍तीय संस्‍थानों से कोयला बिजली के मुकाबले अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं को ज्‍यादा सहयोग देने का निर्देश दे।

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