जहां अमेरिका और चीन ने पिछले 12 साल में उम्दा तकनीक के ज़रिये अपने सल्फर डाइ ऑक्साइड (SO2) के उत्सर्जन तेज़ी से कम किये हैं वहीं भारत मानवजनित SO2 छोड़ने के मामले में दुनिया में सबसे आगे निकल गया है। पर्यावरण पर नज़र रखने वाली ग्रीनपीस ने अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के आंकड़ों और उपग्रह से मिली तस्वीरों के आधार पर एक विश्लेषण जारी किया है।
यह विश्लेषण बताता है कि भारत दुनिया में इंसानी हरकतों से हो रहे SO2 इमीशन के मामले में नंबर-1 है। यह कुल 15% SO2 इमीशन कर रहा है। जबकि चीन ने फ्ल्यू गैस डी-सल्फराइजेशन (FGD) तकनीक से अपने इमीशन तेज़ी से घटाये हैं। इस तकनीक के तहत चिमनी पर ही एक यंत्र लगता है जो वातावरण में जाने वाली हवा से ज़्यादातर SO2 रोक लेता है। SO2 वायु प्रदूषण का एक बड़ा कारण है क्योंकि यह अस्थमा के मरीज़ों और बच्चों को गले और फेफड़ों के साथ आंखों में तकलीफ देती है। इसके अलावा SO2 के कण नाइट्रोज़न के तमाम रूपों के साथ मिलकर PM 2.5 के स्तर को बढ़ाते हैं।
सरकार ने दिसंबर 2015 में पहली बार यह मानक तय किये कि कोल पावर प्लांट अधिकतम कितना SO2 और NO2 हवा में छोड़ सकते हैं लेकिन बिजलीघरों ने पर्यावरण मंत्रालय की ओर से तय की गई 2 साल की सीमा के भीतर आवश्यक प्रदूषण नियंत्रक यंत्र लगाने में असमर्थता जता दी। सुप्रीम कोर्ट के आदेश से यह डेडलाइन अब 2022 तक बढ़ गई है लेकिन ऐसा नहीं लगता कि पावर प्लांट 2022 तक भी इस चुनौती से लड़ने को तैयार हो पायेंगे।
नासा आंकड़ों के आंकड़ों के हवाले से ग्रीनपीस का कहना है कि भारत में 97% SO2 उत्सर्जन वहां पर हो रहा है जहां कोयला बिजलीघर मौजूद हैं। भारत के सिंगरौली, कोरबा, झारसुगुड़ा के अलावा कच्छ, चेन्नई और कोराड़ी इसके प्रमुख केंद्र हैं। तमिलनाडु देश के भीतर सबसे अधिक SO2 उत्सर्जन करने वाला राज्य है। उसके बाद उड़ीसा, गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश हैं।
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