एंटीबायोटिक प्रतिरोध वैश्विक स्वास्थ्य के लिए सबसे तेजी से बढ़ते खतरों में से एक है जिससे प्रति वर्ष 13 लाख लोग अपनी जान गवा रहे हैं।

वायु प्रदूषण एंटीबायोटिक प्रतिरोधक क्षमता को दे रहा है बढ़ावा

एक वैश्विक अध्ययन से पता चलता है कि वायु प्रदूषण एंटीबायोटिक प्रतिरोध को बढ़ाने में मदद कर रहा है, जो दुनिया भर में लोगों के स्वास्थ्य के लिए एक बड़ा खतरा है। लगभग दो दशकों के दौरान किए गए 100 से अधिक देशों के डेटा के विश्लेषण से पता चलता है कि वायु प्रदूषण में वृद्धि के फलस्वरूप हर देश और महाद्वीप में लोगों में एंटीबायोटिक दवाओं से प्रतिरोधक क्षमता बढ़ रही है। इससे यह भी पता चलता है कि समय के साथ इन दोनों प्रक्रियाओं के बीच संबंध मजबूत हुआ है, वायु प्रदूषण के स्तर में वृद्धि के साथ-साथ एंटीबायोटिक प्रतिरोधक क्षमता में भी बड़ी वृद्धि हुई है। 

एंटीबायोटिक प्रतिरोध वैश्विक स्वास्थ्य के लिए सबसे तेजी से बढ़ते खतरों में से एक है। अनुमान के मुताबिक, यह किसी भी देश में किसी भी उम्र के लोगों को प्रभावित कर सकता है और पहले से ही प्रति वर्ष 13 लाख लोगों की जान ले रहा है। मुख्य कारण अभी भी एंटीबायोटिक दवाओं का दुरुपयोग और अति प्रयोग है, जिनका उपयोग संक्रमणों के इलाज के लिए किया जाता है। लेकिन अध्ययन से पता चलता है कि वायु प्रदूषण के बढ़ते स्तर से समस्या और गंभीर हो रही है। साक्ष्य बताते हैं कि सूक्ष्म कण वायु प्रदूषकों (पीएम2.5) में एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी बैक्टीरिया और प्रतिरोधी जीन हो सकते हैं।

वरिष्ठ आयुवर्ग में कई तरह के कैंसर का खतरा बढ़ा रहा है वायु प्रदूषण

हार्वर्ड टी.एच. के नेतृत्व में एक अध्ययन के अनुसार सूक्ष्म कण वायु प्रदूषकों (पीएम2.5) और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (एनओ2) के लगातार संपर्क से वरिष्ठ आयुवर्ग के लोगों में फेफड़े के कैंसर के अलावा बाकी कैंसरो का खतरा भी बढ़ सकता है। शोधकर्ताओं ने पाया कि एक दशक तक पीएम2.5 और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड के संपर्क में रहने से कोलोरेक्टल और प्रोस्टेट कैंसर विकसित होने का खतरा बढ़ गया।

वायु प्रदूषण का निम्न स्तर भी लोगों को इन कैंसरों के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील बना सकता है। शोधकर्ताओं ने 2000 से 2016 तक एकत्र किए गए 65 वर्ष या उससे अधिक आयु वाले लोगों के डेटा का विश्लेषण किया। अध्ययन की अवधि के कम से कम शुरुआती दस वर्षों के दौरान सभी लोग कैंसर से मुक्त थे। 

शोधकर्ताओं ने पाया कि ऐसे समुदाय जो स्वच्छ हवा में रहते हैं, वह भी इस खतरे से पूरी तरह सुरक्षित नहीं हैं। उन्होंने पाया विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के नए दिशानिर्देशों से नीचे के प्रदूषण स्तर पर भी, इन दो प्रदूषकों के संपर्क में आने से सभी चार प्रकार के कैंसरों का खतरा बना रहता है।

कम उत्सर्जन वाले क्षेत्रों में घटी स्वास्थ्य समस्याएं: शोध

वायु प्रदूषण के खिलाफ लड़ाई में एक अच्छी खबर सामने आई है। क्लीन एयर लो एमिशंस ज़ोन या साफ़ हवा और कम उत्सर्जन वाले क्षेत्रों पर किए गए एक शोध से पता चला है कि इन क्षेत्रों में रहने से जनता के स्वास्थ्य में सुधार आता है।

क्लीन एयर लो एमिशंस ज़ोन में प्रदूषण फैलाने वाले शहरी वाहनों का प्रवेश प्रतिबंधित होता है। इंपीरियल कॉलेज, लंदन की एक टीम ने पूरे यूरोप में 320 से अधिक कम उत्सर्जन वाले क्षेत्रों में किए गए उपलब्ध स्वास्थ्य अध्ययनों का विश्लेषण किया और पाया कि उन क्षेत्रों में वायु प्रदूषण से जुड़ी सभी स्वास्थ्य समस्याओं की व्यापकता में कमी आई है।

शोध टीम ने कहा कि स्वच्छ वायु वाले क्षेत्रों में रहने से होने वाले सबसे बड़े स्वास्थ्य लाभों में हृदय और संचार संबंधी रोगों में कमी के साथ-साथ दिल के दौरे और स्ट्रोक में कमी शामिल है। रक्तचाप की समस्याएं भी कम हो गईं, जिसका सबसे बड़ा लाभ वरिष्ठ लोगों को हुआ।

जकार्ता बना दुनिया का सबसे प्रदूषित प्रमुख शहर

वायु गुणवत्ता निगरानी फर्म आईक्यूएयर के अनुसार, इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता दुनिया का सबसे प्रदूषित प्रमुख शहर बन गया है। जकार्ता कई दिनों से वैश्विक प्रदूषण चार्ट में शीर्ष पर है क्योंकि अधिकारी जहरीली धुंध में वृद्धि से निपटने में विफल रहे हैं।

अनुमान है कि वायु प्रदूषण से हर साल सत्तर लाख लोगों की असामयिक मौत हो जाती है और संयुक्त राष्ट्र द्वारा इसे सबसे बड़ा पर्यावरणीय स्वास्थ्य जोखिम माना गया है।

जकार्ता और इसके आसपास के इलाके मिलकर एक महानगर बनाते हैं जिसमें लगभग 30 मिलियन लोग रहते हैं। इस इलाके में पीएम2.5 के कंसंट्रेशन ने पिछले सप्ताह के दौरान रियाद, दोहा और लाहौर सहित अन्य भारी प्रदूषित शहरों को भी पीछे छोड़ दिया है।

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