अलार्म बेल: वायु प्रदूषण को लेकर 16 साल बाद डब्लूएचओ ने नये मानक जारी किये हैं और यह देखना होगा कि भारत क्या इनके मुताबिक अपना क्लीन एयर प्रोग्राम ढालेगा। फोटो – Down To Earth

वायु प्रदूषण पर WHO के नये मानकों से चेतावनी, क्या भारत सुधारेगा अपना क्लीन एयर प्रोग्राम

वायु प्रदूषण को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) ने नई गाइडलाइन और मानक जारी किये हैं। डब्लूएचओ के यह नये मानक 16 साल बाद आये हैं और इससे पहले 2005 में जारी किये गये मानकों से कुछ अधिक कड़े हैं। महत्वपूर्ण है कि वायु प्रदूषण पूरी दुनिया खासतौर से दक्षिण एशिया के लिये एक बड़ा स्वास्थ्य संकट बन चुका है। डब्लूएचओ का कहना है कि उसने वायु प्रदूषण और उसके स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों पर उपलब्ध नवीनतम रिसर्च के आधार पर मानरों को अपडेट किया है। 

डब्लूएचओ पूरी दुनिया के लिये अपने स्टैंडर्ड मानक और गाइडलाइन जारी करता है हालांकि अलग-अलग देश अपने यहां खुद मानक तय करते हैं। यह मानक स्वैच्छिक हैं लेकिन बिगड़ती हवा के स्वास्थ्य पर बढ़ते कुप्रभावों को  देखते हुये  भारत जैसे देशों के लिये यह अलार्म बेल की तरह होने चाहिये। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने PM 2.5, PM 10, NO2 जैसे प्रदूषकों के मानकों को कड़ा किया है। कार्बन मोनो ऑक्साइड के मानक शामिल किये हैं लेकिन सल्फर के मानकों में ढील दी है। 

वायु और जल प्रदूषण क़ानूनों का उल्लंघन 3 गुना हुआ 

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक साल 2020 में 2019 के मुकाबले वायु और जल प्रदूषण नियंत्रण क़ानून उल्लंघन संबंधी अपराध 286% बढ़ गये। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक साल 2019 में इन दो क़ानूनों के तहत 160 केस दर्ज हुये थे जबकि पिछले साल यानी 2020 में कुल 589 मुकदमे दर्ज हुये।  साल 2019 में 2018 के मुक़ाबले इन क़ानूनों के तहत दर्ज मामलों में 840% वृद्धि हुई थी लेकिन तब भी यह संख्या उस साल हुये सभी पर्यावरण क़ानून उल्लंघन मामलों की  1% भी कम थी। जिन राज्यों में यह प्रदूषण कानून उल्लंघन के यह मामले दर्ज किये गये वे हैं असम, हरियाणा, गुजरात, केरल, मध्य प्रदेश, मेघालय, राजस्थान, उत्तर प्रदेश  और दिल्ली। साल 2020 में 90% ऐसे अपराध यूपी में हुये। 

दिल्ली में 64% प्रदूषण आता है दूसरे राज्यों से 

जाड़ों के आने से पहले यह विषय अक्सर चर्चा में आ जाता है कि दिल्ली में होने वाले वायु प्रदूषण के लिये राजधानी खुद कितना ज़िम्मेदार है। यह बहस अक्सर इसलिये छिड़ती है क्योंकि हर साल जाड़ों में स्माग में घिरी दिल्ली गैस चैंबर बन जाती है। अब दिल्ली स्थित द एनर्जी एंड रिसोर्सेस इंस्टिट्यूट (टैरी) और ऑटोमेटिव रिसर्च एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एआरएआई) के नये अध्ययन में कहा गया है कि जाड़ों में दिल्ली में होने वाले केवल 36 % प्रदूषण के लिये राजधानी की गतिविधियां ज़िम्मेदार हैं और दिल्ली में बाकी प्रदूषण बाहर से आता है। लेकिन यह स्टडी ये भी कहती है कि नोएडा में होने वाले 40% प्रदूषण के लिये दिल्ली ज़िम्मेदार है। दिल्ली-एनसीआर में सर्दियों के पहले पराली जलाना एक बड़ी समस्या है और वह मसला अभी तक सुलझा नहीं है।  जानकार कहते हैं कि गंगा के पूरे मैदानी इलाके में वायु प्रदूषण फैलता है और उसे सीमाओं में बांध कर नहीं रखा जा सकता। इसलिये हर राज्य और हर ज़िले को प्रदूषण कम करने की कोशिश करनी चाहिये। 

दीवाली से पहले दिल्ली में आतिशबाज़ी पर पाबंदी 

दीवाली से पहले दिल्ली सरकार ने सभी तरह के पटाखों पर पूरी तरह पाबंदी का ऐलान कर दिया है। मुख्यमंत्री केजरीवाल के मुताबिक पिछले तीन साल में दीपावली के दौरान वायु प्रदूषण के खतरनाक स्तर को देखते हुए ये फैसला लिया गया है। सरकार ने पिछले साल 7 से 30 नवंबर के बीच खराब होती एयर क्वॉलिटी को देखते हुए पटाखों पूरी तरह रोक लगा दी थी जिसमें “ग्रीन क्रेकर्स” यानी हरित पटाखे भी शामिल हैं। इसके बावजूद दीवाली के दिन कई जगह लोगों ने आतिशबाज़ी की। जानकारों का कहना है कि तथाकथित ग्रीन क्रेकर्स भी हवा को उतना ही नुकसान पहुंचाते हैं इसलिये हर तरह की आतिशबाज़ी को रोका जाना चाहिये। सरकार ने व्यापारियों से अपील की है कि वह पटाखों का स्टॉक न जमा करें।  

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