वायु प्रदूषण को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) ने नई गाइडलाइन और मानक जारी किये हैं। डब्लूएचओ के यह नये मानक 16 साल बाद आये हैं और इससे पहले 2005 में जारी किये गये मानकों से कुछ अधिक कड़े हैं। महत्वपूर्ण है कि वायु प्रदूषण पूरी दुनिया खासतौर से दक्षिण एशिया के लिये एक बड़ा स्वास्थ्य संकट बन चुका है। डब्लूएचओ का कहना है कि उसने वायु प्रदूषण और उसके स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों पर उपलब्ध नवीनतम रिसर्च के आधार पर मानरों को अपडेट किया है। डब्लूएचओ पूरी दुनिया के लिये अपने स्टैंडर्ड मानक और गाइडलाइन जारी करता है हालांकि अलग-अलग देश अपने यहां खुद मानक तय करते हैं। यह मानक स्वैच्छिक हैं लेकिन बिगड़ती हवा के स्वास्थ्य पर बढ़ते कुप्रभावों को देखते हुये भारत जैसे देशों के लिये यह अलार्म बेल की तरह होने चाहिये।
वैश्विक मानकों को कड़ा किया गया
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने PM 2.5, PM 10, NO2 जैसे प्रदूषकों के मानकों को कड़ा किया है। कार्बन मोनो ऑक्साइड के मानक शामिल किये हैं लेकिन सल्फर के मानकों में ढील दी है जिसे इस तालिका में देखा जा सकता है।
प्रदूषक | औसत समय | 2005 के मानक | 2021 के मानक |
PM 2.5 (माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर) | सालाना | 10 | 5 |
24 घंटा | 25 | 15 | |
PM 10 (माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर) | सालाना | 20 | 15 |
24 घंटा | 50 | 45 | |
ओज़ोन (O3)(माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर) | पीक सीज़न | – | 60 |
प्रति 8 घंटे में | 100 | 100 | |
नाइट्रोज़न डाइ ऑक्साइड (NO2)(माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर) | सालाना | 40 | 10 |
24 घंटा | – | 25 | |
सल्फर डाइ ऑक्साइड (SO2)(माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर) | 24 घंटा | 20 | 40 |
कार्बन मोनो ऑक्साइड (CO)(माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर) | 24 घंटा | – | 4 |
डब्लू एच ओ के निदेशक डॉ टेड्रोस एड्हैनोम ने कहा है, “वायु प्रदूषण सभी देशों में स्वास्थ्य के लिये ख़तरा है लेकिन कम और मध्यम आय वर्ग के लोगों को इससे सबसे अधिक नुकसान होता है। डब्लूएचओ के नये मानक हवा की गुणवत्ता सुधारने के लिये दृष्टिगत साक्ष्यों और प्रयोगों पर आधारित हैं जिस पर जीवन टिका है। मैं सभी देशों और पर्यावरण के लिये लड़ रहे लोगों से अपील करता हूं कि वह इनका प्रयोग लोगों का कष्ट कम करने और जीवन बचाने के लिये करें।”
भारत में वर्तमान मानक कमज़ोर
भारत और दक्षिण एशिया के देशों में मानक डब्लूएचओ द्वारा जारी मानकों से काफी कमज़ोर हैं। साल 2005 में डब्लूएचओ द्वारा PM 2.5 के लिये जारी मानकों की तुलना भारत समेत दक्षिण एशियाई देशों से करने पर यह साफ समझ में आता है।
सालाना (माइक्रोग्राम/ घन मीटर) | 24 घंटा (माइक्रोग्राम/ घन मीटर) | ||
WHO – 2005 (गाइडलाइन) (PM 2.5) | 10 | 25 | प्रदूषण रैंकिंग |
बांग्लादेश | 15 | 65 | 1 |
पाकिस्तान | 15 | 35 | 2 |
भारत | 40 | 60 | 3 |
इंडोनेशिया | 15 | 65 | 9 |
नेपाल | – | 50 | 12 |
श्रीलंका | – | 50 | 30 |
दक्षिण कोरिया | 15 | 35 | 41 |
मलेशिया | 15 | 35 | 58 |
फिलीपीन्स | 25 | 50 | 70 |
भूटान | 40 | 60 | – |
क्या भारत के क्लीन एयर प्रोग्राम पर असर पड़ेगा?
सवाल है कि क्या डब्लूएचओ के नये मानकों के बाद भारत – जहां हर साल 10 लाख से अधिक मौतों के पीछे वायु प्रदूषण से जुड़ी बीमारी एक कारक होती है – अपने मानकों को कड़े करेगा। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के मुताबिक भारत में 2019 में 16 लाख से अधिक लोगों की मौत की पीछे वायु प्रदूषण एक कारण था। इसी साल भारत में 1.16 लाख से अधिक छोटे बच्चों की मौत वायु प्रदूषण से जुड़ी थी और करीब 1 लाख लोगों की मौत का कारण कोयला जलने से निकलने वाला धुंआं था।
ऊपर की तालिकाओं से स्पष्ट है कि भारत के PM 2.5 के वर्तमान मानक डब्लूएचओ ने घोषित नये मानकों की तुलना में 4 से 8 गुना (दैनिक और सालाना स्तर) कमज़ोर हैं। भारत ने साल 2019 में नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम की घोषणा की जिसमें यह लक्ष्य रखा गया कि साल 2024 तक 100 से अधिक महानगरों की हवा 20% से 30% तक (2017 के स्तर को आधार मान कर) साफ की जायेगी। यह लक्ष्य काफी कमज़ोर है क्योंकि भारत के महानगरों में प्रदूषण को स्तर बहुत ख़राब हैं।
साल 2020 में दुनिया के 100 देशों में PM 2.5 का स्तर देखें तो दिल्ली में यह डब्लूएचओ के अपडेटेड मानकों की तुलना में 16.8 गुना अधिक रहा। इसी तरह मुंबई में यह 8 गुना अधिक, कोलकाता में 9.4 गुना अधिक रही। हैदराबाद में 7 गुना अधिक रही और अहमदाबाद में 9.8 गुना अधिक रही। बारत के नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम में सज़ा के प्रावधान भी नहीं हैं। जानकार कहते हैं यहां हवा की गुणवत्ता के मानक ‘विकास’ को प्राथमिकता देने वाले हैं और वह स्वास्थ्य की ध्यान में रखकर नहीं बनाये गये।
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