सुरंग धंसने की घटना रविवार सुबह साढ़े पांच बजे हुई। फोटो: NDTV on X

उत्तराखंड: सुरंग में फंसे मज़दूरों का अंतहीन इंतज़ार

उत्तराखंड के उत्तरकाशी ज़िले में  निर्माणाधीन सुरंग के धंसने के 40 मज़दूर फंस गए जिन्हें निकालने की कोशिश छठे दिन भी जारी थी। करीब 4.5 किलोमीटर लम्बी यह सुरंग राज्य में चारधाम यात्रा मार्ग का हिस्सा है। सुरंग धंसने की घटना रविवार सुबह साढ़े पांच बजे हुई। सुरंग में फंसे ज़्यादातर मज़दूर बिहार और झारखंड के हैं। झारखण्ड सरकार ने तीन सदस्यों का प्रतिनिधिमंडल उत्तराखंड भेजा है।

आपदा प्रबंधन की टीमें और राहतकर्मी मज़दूरों को निकालने के काम में लगीं हैं और उन्हें जीवित रखने के लिए सुरंग में ऑक्सीज़न सप्लाई की जा रही है। राहतकर्मी मलबे में एक मोटी स्टील पाइप डालकर मजदूरों को निकालने की कोशिश कर रहे हैं, मंगलवार को यह प्रयास शुरू कर दिया गया। आपदा प्रबंधन अधिकारियों ने दावा किया था कि फंसे हुए मजदूरों को मंगलवार की शाम या बुधवार सुबह तक बाहर निकाल लिया जाएगा लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। इस घटना की जांच के लिए राज्य सरकार ने एक कमेटी का भी गठन किया है।  

चार धाम यात्रा मार्ग का हिस्सा 

यह सुरंग उत्तराखंड में बन रहे चार धाम यात्रा मार्ग का हिस्सा है। 20 फरवरी 2018 को कैबिनेट ने इसे मंज़ूरी दी थी। इस प्रोजेक्ट की कुल कीमत करीब 1400 करोड़ बताई गई गंगोत्री और यमुनोत्री के बीच सड़क मार्ग की लंबाई 20 किलोमीटर कम होने और 1 घंटा बचने की बात कही गई। इस बीच हिमालय में विकास और निर्माण के मॉडल पर फिर सवाल खड़े हो रहे हैं। यह सवाल भी उठ रहा है कि इस सुरंग में कोई एस्केप टनल क्यों नहीं बना हालांकि इस सुरंग की घोषणा के वक्त कैबिनेट नोट में सुरंग में एस्केप रूट की बात की गई है। 

सर्दियों में अल-नीनो के कारण बढ़ेंगी बाढ़ की घटनाएं? 

अमेरिकी शोध एजेंसी नासा के समुद्र विज्ञान विभाग के वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर इन सर्दियों में अल-निनो प्रभाव बढ़ता रहा तो दुनिया के कई देशों, विशेष रूप से अमेरिका के पश्चिमी तटीय शहरों में, बाढ़ में वृद्धि देखी जा सकती है और सड़कों में भारी जल भराव हो सकता है। अल-निनो समुद्री तापमान में बदलाव के कारण होने वाली एक नियमित मौसमी घटना है, जिसके कारण कुछ वर्षों के अंतराल में प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह का तापमान 3 से 4 डिग्री तक बढ़ जाता है। इस जटिल मौसमी घटना के कारण कुछ हिस्सों में अत्यधिक बारिश और कहीं सूखे की स्थित पैदा हो जाती है। नासा के विशेषज्ञों के मुताबिक शक्तिशाली अल-निनो के कारण सर्दियों में बाढ़ की घटनाएं बढ़ेंगी और वैसी घटनाएं देखने को मिलेंगी जो अल-निनो के अलावा दूसरे वर्षों में अमेरिका के पश्चिमी तट पर नहीं होती थी। साल 2030 तक शक्तिशाली अल-निनो वर्षों में 10 वर्षीय बाढ़ (यानी ऐसी बाढ़ जिसकी 10 साल में एक बार होने की संभावना होती है) की 10 घटनाएं हो सकती हैं और 2040 तक यह संख्या 40 तक पहुंच सकती है। 

पिछले 12 महीने धरती के इतिहास में रहे सबसे अधिक गर्म 

नवंबर 2022 से अक्टूबर 2023 के बीच 12 महीने का वक्त विश्व इतिहास की अब तक के सबसे गर्म समयावधि रही और इस दौरान धरती के तापमान में — औद्योगिक क्रांति के प्रारंभ के मुकाबले — 1.3 डिग्री की वृद्धि दर्ज की गई। एक गैर लाभकारी साइंस रिसर्च ग्रुप क्लाइमेट सेंट्रल की रिपोर्ट में यह बात कही गई है। वैज्ञानिकों का कहना है कि तापमान में इस वृद्धि के पीछे मानव जनित जलवायु परिवर्तन है जो कि कोयले और  गैस के प्रयोग से निकलने वाली गैसों के वातावरण में बढ़ते जमाव का परिणाम है। 

पिछले एक साल में दुनिया की 90% आबादी, यानी करीब 730 करोड़ लोगों ने अधिक तापमान वाले कम से कम 10 दिन झेले, जलवायु परिवर्तन के कारण  जिनकी संभावना तीन गुना अधिक हो गई है।  भारत में 120 करोड़ लोगों (यानी 86% आबादी) ने इस एक साल में कम से कम 30 ऐसे दिनों असामान्य रूप से गर्म दिनों का सामना किया।   

सदी के मध्य तक ज़ूनोटिक बीमारियों से होंगी 12 गुना अधिक लोगों की मौत 

ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में प्रकाशित नए शोध में चेतावनी दी गई है कि जानवरों से इंसानों में फैलने वाले संक्रमण (यानी ज़ूनोटिक रोग) बहुत तेज़ी से बढ़ रहे हैं और ऐसा अनुमान है कि साल 2050 में इस कारण मरने वाले इंसानों की संख्या 2020 की तुलना में 12 गुना अधिक होंगी। जंतुओं से इंसानों में होने वाले संक्रमण को ‘स्पिलओवर इंफेक्शन’ भी कहा जाता है और इस कारण कोविड-19 समेत कई आधुनिक महामारियां फैली हैं। 

इस नतीजे पर पहुंचने के लिए शोधकर्ताओं ने पिछले 60 साल में महामारियों के आंकड़ों और पैटर्न का अध्ययन किया, हालांकि इनके विश्लेषण में कोविड-19 शामिल नहीं था। जिस डेटाबेस का अध्ययन किया गया उसमें विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) की रिपोर्ट्स और वह सभी संक्रमण घटनाएं शामिल थीं जिनमें 50 या अधिक लोगों की मौत हुई।  जैसे 1918 और 1957 में फैला फ्लू। 

कीट विलुप्ति कैसे प्रभावित करेगी धरती को

कीट-पतंगे धरती पर मौजूद जीवन और जैव विविधता के वाहक हैं। लेकिन, यह नन्हें प्राणी तेज़ी से विलुप्त हो रहे हैं और आज धरती पर ऐसी 20 लाख प्रजातियों पर विलुप्ति  का संकट है। यह संख्या संयुक्त राष्ट्र के पहले लगाए गए अनुमान से दोगुना है। वैज्ञानिकों का कहना है कि यह विलुप्ति धरती के अस्तित्व के लिए भारी संकट खड़ा कर सकती है। 
महत्वपूर्ण है कि कीट-पतंगों के जीवन और उनकी उपयोगिता के बारे में अन्य प्राणियों के मुकाबले बहुत कम अध्ययन हुआ है और हमारे पास जैव विविधता में इनके योगदान के बारे में जानकारी बहुत कम है।  पिछले 50 साल में जानवरों की आबादी 70% घटी है लेकिन जब कीट-पतंगों की बात हो तो परागण में इनके योगदान को देखते हुये इनकी विलुप्ति से कृषि और खाद्य संकट के साथ विराट जल संकट खड़ा हो जाएगा।

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