एक नए अध्ययन में सामने आया है कि स्पेन की तरह यदि सभी देश अपने 0.5% सबसे अमीर परिवारों पर सपंत्ति कर लगा दें तो वह हर साल 2.1 लाख करोड़ डॉलर जुटा सकते हैं। विकासशील देशों को सालाना जितना क्लाइमेट फाइनेंस चाहिए, यह राशि उसकी दोगुनी है। क्लाइमेट फाइनेंस पर चर्चा इस वर्ष कॉप29 वार्ता के केंद्र में हो सकती है।
भारत अपने 0.5% सबसे अमीर नागरिकों पर टैक्स लगाकर प्रति वर्ष 8,610 करोड़ डॉलर जुटा सकता है।
यह अध्ययन टैक्स जस्टिस नेटवर्क ने किया है, जिसमें अनुमान लगाया गया है कि हर देश अपने सबसे अमीर 0.5% परिवारों की संपत्ति पर 1.7% से 3.5% की मामूली दर से कर लगाकर व्यक्तिगत रूप से कितना राजस्व जुटा सकता है। यह संपत्ति कर इन परिवारों की पूरी संपत्ति के बजाय केवल उसके ऊपरी भाग पर लागू होगा।
जी20 देशों में भी अमीरों पर कर लगाने की मांग बढ़ रही है। इस साल की शुरुआत में ब्राजील, जर्मनी, स्पेन और दक्षिण अफ्रीका ने एक निष्पक्ष कर प्रणाली के प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए, ताकि गरीबी और जलवायु संकट से निपटने के लिए प्रति वर्ष 250 बिलियन पाउंड अतिरिक्त मुहैया कराए जा सकें।
सत्रह जी20 देशों में किए गए एक हालिया सर्वे में पाया गया कि उन देशों के अधिकांश वयस्क नागरिक ऐसी नीति का समर्थन करते हैं जिसमें देश की अर्थव्यवस्था और आम लोगों की जीवनशैली में बड़े बदलाव लाने के लिए अमीरों पर अधिक संपत्ति कर लगाया जाए।
अध्ययन में कहा गया है कि जी20 के संपत्ति कर प्रस्ताव से जहां अमीर देशों के सबसे अमीर लोगों पर ही टैक्स लगाया जाएगा, वहीं स्पेन की नीति के अनुरूप अधिक व्यापक रूप से 0.5% सबसे अमीर लोगों पर संपत्ति कर लगाकर दुनिया के सभी देश आर्थिक असमानता से निपट सकते हैं।
क्यों है टैक्स की जरूरत?
अध्ययन में कहा गया है कि धन के संकेन्द्रण से अर्थव्यवस्थाएं असुरक्षित हो रही हैं, और इसका सीधा परिणाम है कि लोगों को अपनी आय से अधिक खर्च करना पड़ रहा है और सामाजिक तौर पर भी इसका प्रभाव शिक्षा और लोगों के जीवनकाल पर पड़ रहा है। सबसे अमीर लोगों के पास धन के अत्यधिक संकेन्द्रण के कारण ही मामूली संपत्ति कर से बड़ी रकम जुटाई जा सकती है। औसतन, प्रत्येक देश की आधी आबादी के पास केवल 3% संपत्ति है, जबकि उसके सबसे अमीर 0.5% लोगों के पास एक चौथाई संपत्ति है।
समस्या की जड़
अध्ययन में कहा गया है कि संचित संपत्ति और अर्जित संपत्ति के बीच भेदभाव इस समस्या का मूल है। मसलन, संचित संपत्ति — जैसे डिविडेंड, पूंजीगत लाभ (कैपिटल गेन), या किराए आदि पर टैक्स की दरें सामान्यतया अर्जित संपत्ति, जैसे नौकरी में मिलने वाली तनख्वाह पर टैक्स की दरों से कम होती हैं।
आज, हर साल दुनिया भर में जो आय पैदा होती है, उसका केवल आधा हिस्सा उन लोगों के पास जाता है जो आजीविका के लिए कमाते हैं — बाकी किराया, ब्याज, लाभांश और पूंजीगत लाभ के रूप में एकत्र किया जाता है।
हो सकता है कि सबसे अमीर लोग भी कुछ काम या नौकरी करते हों, लेकिन वस्तुतः उनकी सारी संपत्ति व्यवसाय और रियल एस्टेट एम्पायर के मालिक होने से आती है, न कि वहां काम करने से। अध्ययन में कहा गया है कि काम करके वे जो भी आय अर्जित करते हैं वह “उनकी संपत्ति के सागर में एक बूंद” की तरह है।
इस व्यवस्था के गंभीर परिणाम देखने को मिले हैं। आमतौर पर अरबपति समाज के बाकी हिस्सों के मुकाबले आधी दर से टैक्स का भुगतान करते हैं। और उनकी संपत्ति शेष समाज की तुलना में दोगुनी दर से बढ़ती है। इसके कारण 1987 के बाद से 0.0001% सबसे अमीर लोगों की संपत्ति चार गुनी बढ़ गई है, जिससे विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं, समाजों और पूरी दुनिया को नुकसान पहुंचा है।
टैक्स जस्टिस नेटवर्क के कम्युनिकेशन प्रमुख मार्क बौ मंसूर कहते हैं कि “ऐसा माना जाता है कि अरबपति हर किसी की तरह पैसा कमाते हैं, बस वे ऐसा करने में सबसे बेहतर हैं। यह गलत धारणा है। कोई भी एक अरब डॉलर नहीं कमा सकता। आज दुनिया के सबसे अमीर आदमी के पास जितनी संपत्ति है, उतनी अर्जित करने के लिए एक आम अमेरिकी वर्कर को मानव जाति के अस्तित्व से भी 13 गुना अधिक समय तक काम करना होगा। वेतन से कोई अरबपति नहीं बन सकता, अरबपति बनने के लिए डिविडेंड और रेंट मनी की जरूरत होती है। लेकिन हम डिविडेंड और रेंट मनी पर वेतन की तुलना में बहुत कम टैक्स लगाते हैं, और उस अर्नर मॉडल को अस्थिर करते हैं जिस पर हमारी अर्थव्यवस्थाएं टिकी हैं।”
अध्ययन में सरकारों से आग्रह किया गया है कि संपत्ति कर लागू करके इस दोहरी व्यवस्था का अंत किया जाए। रिपोर्ट में देशों को अध्ययन में बताए गए और स्पेन के अनुरूप संपत्ति कर कानूनों को लागू करने के बारे में विस्तृत मार्गदर्शन दिया गया है।
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