पूरी दुनिया में बिजली उत्पादन क्षेत्र से जुड़े CO2 इमीशन पिछले साल रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गये। इसके पीछे उन देशों में जीवाश्म ईंधन का प्रयोग भी एक कारण रहा जहां सूखे के कारण जलविद्युत का उत्पादन प्रभावित हुआ। शुक्रवार को इंटरनेशन एनर्जी एजेंसी ने यह बात कही। वैज्ञानिकों का कहना है कि वैश्विक तापमान पर नियंत्रण रखने और क्लाइमेट चेंज प्रभावों को रोकने के लिये उत्सर्जन (विशेष रूप से जीवाश्म ईंधन से होने वाले) में भारी कटौती अनिवार्य है। एजेंसी का विश्लेषण कहता है कि साल 2023 में वैश्विक तापमान में 1.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई जो कि 410 मिलिटन टन के बराबर है। इससे पिछले साल एनर्जी सेक्टर से होने वाले कुल उत्सर्जन की मात्रा 37.4 बिलियन टन हो गई।
साफ ऊर्जा स्रोतों से बिजली उत्पादन ने कुछ मदद ज़रूर की लेकिन कोविड-19 के बाद चीन की अर्थव्यवस्था और उत्पादन में उछाल आया है जिसका असर इमीशन में वृद्धि पर दिखा है। आईईए का विश्लेषण कहता है कि बिजली उत्पादन के लिये चीन के इमीशन 5.2% बढ़े हैं।
कोयला बिजलीघरों से मिली रिकॉर्ड बिजली और इमीशन भी
इस साल जनवरी में कोयले से बिजली उत्पादन में देश ने नया रिकॉर्ड स्थापित किया। थिंक टैंक एम्बर के मुताबिक भारत के जनवरी 2023 में कोयला बिजलीघरों ने 115 टेरावॉट आवर यानी 115 बिलियन यूनिट बिजली का उत्पादन किया। यह पिछले साल 2023 की जनवरी में 10% अधिक है और एक रिकॉर्ड है। बिजली उत्पादन के लिये कोयले के इस्तेमाल में चीन के बाद भारत का दूसरा नंबर है। जनवरी में कोयला बिजलीघरों से उत्सर्जन भी रिकॉर्ड स्तर पर रहा जो कि कुल 104.5 मिलियन मीट्रिक टन था जबकि सभी बिजली स्रोतों से कुल इमीशन 107.5 मिलियन टन हुआ।
महत्वपूर्ण है कि इस साल 7 मार्च तक कोल इंडिया ने कोयला उत्पादन में भी रिकॉर्ड बना दिया है। अब तक 2023-24 में कोल इंडिया का कुल कोयला उत्पादन 703.91 मिलियन टन हो गया। जहां कोयले से बिजली उत्पादन बढ़ा वहीं जलविद्युत, पवन और सोलर से उत्पादन में 21.4%, 19% और 3% की गिरावट दर्ज हुई।
बड़े यूरोपीय देश नॉर्थ सी में तेल-गैस ड्रिलिंग रोकने को तैयार नहीं
एक रिपोर्ट के मुताबिक नॉर्थ सी के आसपास बसे किसी भी बड़े तेल और गैस उत्पादक देश की योजना ड्रिलिंग रोकने की नहीं है यद्यपि धरती की तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री से नीचे रखने के लिये ऐसा किया जाना ज़रूरी है। पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन पर काम करने वाले कैंपेन ग्रुप ऑइल चेंज इंटरनेशनल के मुताबिक यहां स्थित पांचों देश – यूके, जर्मनी, नीदरलैंड, नॉर्वे और डेनमार्क – अपनी तेल और गैस नीतियों को पेरिस संधि के मुताबिक ढालने में विफल रहे हैं। इन देशों से घिरा नॉर्थ सी पश्चिमी यूरोप में तेल और गैस का विपुल भंडार है और माना जाता है अब भी यहां करीब 24 बिलियन बैरल पेट्रोलियम जमा है। साल 2021 में अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी ने कहा था कि नेट ज़ीरो इमीशन (और धरती को बचाने) के लिये अब किसी नहीं तेल प्रोजेक्ट की गुंजाइश नहीं है लेकिन आइल चेंज की रिपोर्ट में कहा गया है कि नॉर्वे और यूके में नीतियां पेरिस संधि से मेल नहीं खाती क्योंकि ये देश “आक्रामक” अंदाज़ में नये तेल और गैस भंडारों के लिये लिये शोध और लाइसेंसिंग कर रहे हैं।
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