चीन के जलवायु दूत शी ज़ेनहुआ ने कहा है कि वैश्विक स्तर पर जीवाश्म ईंधन को फेजआउट करना संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि कार्बन कैप्चर और स्टोरेज तकनीक से जीवाश्म ईंधन जलाने से होने वाला उत्सर्जन कम किया जा सकता है, लेकिन जीवाश्म ईंधन फेजआउट की कल्पना व्यवहारिक नहीं है।
उन्होंने कहा कि नवीकरणीय ऊर्जा मौसम पर निर्भर है इसलिए ‘जीवाश्म ईंधन को बैकअप ऊर्जा स्रोत के रूप में काम करना चाहिए, क्योंकि बड़े पैमाने पर ऊर्जा भंडारण, इलेक्ट्रिक पावर ट्रांसमिशन, स्मार्ट ग्रिड, माइक्रोग्रिड जैसी प्रौद्योगिकियां अभी तक पूरी तरह विकसित नहीं हुई हैं’। उनके इस बयान ने कॉप28 जलवायु वार्ता में जीवाश्म ईंधन फेजआउट पर सहमति की उम्मीदों को धूमिल कर दिया है।
शी का बयान कॉप28 के अध्यक्ष और अबू धाबी नेशनल ऑयल कंपनी के प्रमुख सुल्तान अल-जबेर के कथन से मेल खाता है, जिसमें उन्होंने कहा था कि दुनिया को जीवाश्म ईंधन के बजाय ‘जीवाश्म ईंधन से होने वाले उत्सर्जन’ को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने की आवश्यकता है।
गौरतलब है कि 2022 के अंत तक चीन की कुल ऊर्जा उत्पादन क्षमता में गैर-जीवाश्म ऊर्जा उत्पादन क्षमता की हिस्सेदारी 49.6% थी, जिसे वह इस साल बढ़ाकर 51.9% करना चाहता है। नवीकरणीय ऊर्जा स्थापना के मामले में भी चीन विश्व में अग्रणी है। लेकिन फिर भी वह कोयले का प्रयोग बढ़ा रहा है और आनेवाले में समय में उसमें कटौती की कोई गुंजाइश नहीं है।
यूरोप के बड़े कर्जदाताओं ने जीवाश्म ईंधन कंपनियों को दिए 1 ट्रिलियन यूरो
बैंकों समेत यूरोप के सबसे बड़े कर्जदाताओं ने पेरिस जलवायु समझौते के बाद से जीवाश्म ईंधन कंपनियों को वैश्विक बांड मार्केट के जरिए 1 ट्रिलियन यूरो यानी करीब 88 लाख करोड़ रुपये से अधिक रकम जुटाने में मदद की है।
कार्बन उत्सर्जन समाप्त करने की दिशा में हो रहे प्रयासों के बीच यूरोप के बड़े लेनदारों पर डायरेक्ट लोन और फाइनेंसिंग के माध्यम से जीवाश्म ईंधन कंपनियों की मदद न करने का बहुत दबाव है। हालांकि ब्रिटेन के गार्डियन अख़बार और उसके रिपोर्टिंग पार्टनरों ने 2016 के बाद हुए लेनदेन के आंकड़ों के विश्लेषण करके पाया है कि डॉयचे बैंक, एचएसबीसी और बार्कलीज जैसे कर्जदाताओं ने जीवाश्म ईंधन बॉण्ड की बिक्री का समर्थन करके तेल, गैस और कोयले के विस्तार से लाभ कमाना जारी रखा है।
विभिन्न देशों से यह उम्मीद की जा रही है कि वह नवंबर-दिसंबर में होने वाले कॉप28 महासम्मेलन में जीवाश्म ईंधन के भविष्य को लेकर कोई महत्वपूर्ण फैसला करेंगे, जो ग्लोबल वार्मिंग का प्रमुख कारण है। ऐसे में इस विश्लेषण से सस्टेनेबल इन्वेस्टमेंट के प्रचारकों के बीच चिंताएं बढ़ीं है क्योंकि एक तरफ बैंक सार्वजनिक रूप से प्रतिज्ञा करते हैं कि वह नई जीवाश्म ऊर्जा परियोजनाओं को डायरेक्ट लोन देना धीरे-धीरे बंद कर देंगे, और दूसरी ओर वह भरी उत्सर्जन करने वाली ऊर्जा कंपनियों को “परोक्ष रूप से” वित्तीय सहायता देना जारी रखे हुए हैं।
ग्लोबल वार्मिंग रोकने के लिए जरूरी है जीवाश्म ईंधन की मांग में एक चौथाई की कमी
अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) का कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए 2030 तक जीवाश्म ईंधन की मांग में एक चौथाई की कमी होनी चाहिए।
आईईए के अनुसार, 2050 तक जीवाश्म ईंधन की मांग में 80% की गिरावट होनी चाहिए। मांग के इस स्तर तक गिरने का मतलब यह है कि दुनिया को अब अधिकांश नई तेल और गैस परियोजनाओं और नए कोयला खनन कार्यों की आवश्यकता नहीं है।
आईईए ने अपने ‘नेट जीरो रोडमैप’ में कहा है कि विकसित अर्थव्यवस्थाओं को जल्द ही नेट-जीरो तक पहुंचना होगा ताकि विकासशील देशों को वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत बनाने के लिए अधिक समय मिल सके।
आईईए के एक्सिक्यूटिव डायरेक्टर फतिह बिरोल ने कहा कि सरकारों को क्लाइमेट प्रयासों को जियो-पॉलिटिक्स से अलग करने की जरूरत है।
दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
कार्बनकॉपी हिंदी में आपका स्वागत है।
आपको यह भी पसंद आ सकता हैं
-
कोयले का प्रयोग बंद करने के लिए भारत को चाहिए 1 ट्रिलियन डॉलर
-
भारत ने 10 लाख वर्ग किलोमीटर के ‘नो-गो’ क्षेत्र में तेल की खोज के हरी झंडी दी
-
ओडिशा अपना अतिरिक्त कोयला छूट पर बेचना चाहता है
-
विरोध के बाद यूएन सम्मेलन के मसौदे में किया गया जीवाश्म ईंधन ट्रांज़िशन का ज़िक्र
-
रूस से तेल आयात के मामले में भारत ने चीन को पीछे छोड़ा