Vol 2, June 2023 | केदारनाथ आपदा के दस साल, दरक रहा है अब भी हिमालय

Newsletter - June 23, 2023

चक्रवाती तूफान बिपरजॉय के कारण गुजरात, राजस्थान के कई इलाकों में बाढ़ जैसी स्थिति पैदा हो गई। Photo: @NDRFHQ/Twitter

बिपरजॉय ने की भारत-पाकिस्तान पर चोट, छोड़ गया हर ओर बर्बादी का नज़ारा

बेहद गंभीर चक्रवाती तूफान बिपरजॉय 15 जून को गुजरात के कच्छ-सौराष्ट्र क्षेत्र में तट से टकराया, जिसके चलते निचले इलाकों में बाढ़ आ गई और दूसरे क्षेत्रों में भी भारी नुकसान हुआ। भारत में गुजरात और राजस्थान के साथ-साथ पाकिस्तान के तटीय इलाकों में भी तूफान ने भारी तबाही मचाई। 

हालांकि भारत में इस चक्रवात से प्रभावित इलाकों किसी के मरने की खबर नहीं आयी, लेकिन कई लोग घायल हुए। गुजरात के तटीय इलाकों में तूफान से 5,120 बिजली के खंभे क्षतिग्रस्त हो गए और 4,600 गांवों की बिजली चली गई। वहीं कच्छ-सौराष्ट्र के तटों पर मछुआरों की बस्तियां भारी बारिश और तूफानी लहरों के साथ चक्रवाती हवाओं के चलने से या तो नष्ट हो गईं या उनमें पानी भर गया।

तट से टकराने के बाद धीरे-धीरे चक्रवात की तीव्रता कम हुई और यह डिप्रेशन में बदल गया। लेकिन इसका असर फिर भी जारी रहा और राजस्थान के कई जिलों में भारी बारिश से बाढ़ जैसे हालात पैदा हो गए। 

मौसम विभाग ने राजस्थान, गुजरात, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में भारी वर्षा होने के आसार जताए हैं। बिपरजॉय इस साल अरब सागर में उठा पहला चक्रवाती तूफान है।   

जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के बाद जल दोहन के लिये चीन लगायेगा वॉटर मेगाप्रोजेक्ट 

सूखे का ख़तरा बढ़ रहा है और चीन पानी को एक जगह से दूसरे जगह पहुंचाने के लिये नये वॉटर इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स लगाने की महत्वाकांक्षी योजनायें बना रहा है ताकि जल संकट को कम किया जा सके। लेकिन विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि नदियों के बहाव से अधिक छेड़छाड़ महंगी पड़ सकती है। 

चीनी अधिकारियों की योजना के मुताबिक नहरों, जलाशयों और संग्रह सुविधाओं का एक “राष्ट्रीय नेटवर्क” तैयार किया जायेगा जिससे सिंचाई बेहतर हो और बाढ़ और सूखे की आशंका घटे। चीनी सरकार के मुताबिक 2035 तक इन प्रयासों से देश भर में पानी की बराबर सप्लाई का रास्ता साफ हो जायेगा। लेकिन जानकारों की राय अलग है। चीन के जल इन्फ्रास्ट्रक्टर का अध्ययन करने वाले जियोग्राफर मार्क वांग कहते हैं, “अगर चीन पानी के इस्तेमाल को कम करे और दक्षता बढ़ाये तो ऐसे मेगा वॉटर डायवर्जन प्रोजेक्ट्स की ज़रूरत नहीं होगी।”

चीन में प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता विश्व औसत से कम है और सरकार बड़े स्तर के इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स और इंजीनियरिंग प्रयासों से जल समृद्ध दक्षिणी हिस्से से शुष्क उत्तरी हिस्से में पानी की सप्लाई बढ़ाने के लिये प्रयास कर रही है।  लेकिन विशेषज्ञ इसकी कीमत को लेकर सवाल कर रहे हैं। पिछले साल ही फिक्सड 15,400 करोड़ अमेरिकी डॉलर के बराबर था और माना जा रहा है कि हर साल यह खर्च तेज़ी से बढ़ेगा। चीन में 60% जल सप्लाई का इस्तेमाल कृषि में होता है और विशेषज्ञों के मुताबिक चीन को फसलों की किस्म और पैटर्न को बदलने की ज़रूरत है।  

पक्षीजीवन: पंखों के आकार का है बड़ा महत्व 

छोटे पंखों वाले पक्षियों के लिये बसेरे से दूर जीवन बहुत कठिन हो जाता है इसलिये मानवजनित कारणों से अपने परिवेश का नष्ट होना उनके वजूद के लिये संकट है। समशीतोष्ण (टेम्परेट) इलाकों में रहने वाले पक्षियों के पंखों का आकार बड़ा होता है जबकि ऊष्णकटिबंधीय क्षेत्र के कई जंगली परिन्दे छोटे आकार के पंखों वाले होते हैं और इस कारण यह अपने परिवेश से बहुत दूर नहीं जा पाते। यही कारण है कि अगर इनकी पारिस्थितिकी को क्षति हो तो इनका जीवन ख़तरे में पड़ जाता है।

अमेरिका की ओरेगन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने दुनिया भर के  1000 से अधिक प्रजातियों के पंखों पर रिसर्च की और पाया कि ऊष्ण कटिबंधीय क्षेत्र में पाये जाने वाले आइबिस, नीले और सनहरे मकोव और हरे हनीक्रीपर जैसी प्रजातियां अपने परिवेश के नष्ट होने पर दूसरी जगह नहीं रह पाती क्योंकि उन्हें कभी अपने घोंसले से अधिक दूर जानी की ज़रूरत नहीं पड़ी।  

लॉन्ग कोविड  के मरीज़ों का स्वास्थ्य संबंधी जीवन स्तर कैंसर पीड़ितों से भी नीचे 

हर बीमारी स्वास्थ्य संबंधित जीवन स्तर में गिरावट करती है। शोध में पाया गया है कि लंबे समय तक कोविड प्रभाव (लॉन्ग कोविड) झेल रहे कुछ व्यक्तियों का जीवन स्तर कैंसर पीड़ितों से भी नीचे हो सकता है। यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन और यूनिवर्सिटी ऑफ एक्ज़टर  के शोधकर्ताओं ने पाया है कि लॉन्ग कोविड के रोगियों में एक प्रमुख लक्षण थकान होता है जो उनके प्रतिदिन के जीवन पर असर डालता है।  उन्होंने पाया कि वे गंभीर रूप से बीमार थे और थकान के पैमाने (फैटीग स्कोर) में वह कैंसर संबंधित एनीमिया या  गुर्दे की गंभीर बीमारी झेल रहे मरीज़ों से भी बदतर हालात में थे।  

पहले किये गये शोध में पाया गया था जिन लोगों को कोविड होता है उनमें से 17 प्रतिशत को लॉन्ग कोविड की समस्या होती है। ऑफिस ऑफ नेशनल स्टेटिस्टिक्स के मुताबिक यूके में जुलाई 2022 तक 14 प्रतिशत लोगों में लॉन्ग कोविड के लक्षण देखे गये। भारत में लॉन्ग कोविड का ऐसा आंकड़ा तो नहीं है लेकिन डब्लू एच ओ के आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक भारत में जून 2023 तक कोविड के कुल 4.4 करोड़ मामले हुये और 5.3 लाख मौतें हुई हैं। 

जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ रही फ्लाइट टर्बुलेंस 

एक नये शोध में पाया गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण जैसे-जैसे धरती गर्म हो रही है वैसे-वैसे फ्लाइट टर्बुलेंस (उड़ान के दौरान यात्री विमान का हिलना) भी बढ़ रही है। यूके में रीडिंग यूनिवर्सिटी के शोध में पाया गया कि कार्बन इमीशन के कारण गर्म होती हवा ने पूरी दुनिया में फ्लाइट टर्बुलेंस को बढ़ाया है लेकिन उत्तरी अटलांटिक क्षेत्र में 1979 से अब तक टर्बुलेंस की घटनायें 55 प्रतिशत बढ़ गई हैं। 
यात्री विमान में को टर्बुलेंस का सामना तब करना पड़ता है जब वह अलग अलग गति से उड़ रही हवाओं के आपस में टकराते पिंडों के बीच से निकलता है।  वैसे तो यह किसी उबड़खाबड़ सड़क में बस या कार की यात्रा जैसा अनुभव होता है लेकिन अगर लंबे समय तक या बार बार टर्बुलेंस का सामना करना पड़े को यात्रियों और विमान दल के सदस्यों को चोट लगने का ख़तरा होता है और विमान को भी इससे क्षति हो सकती है।

वन संरक्षण कानून में संशोधन कर सरकार कुछ प्रकार की भूमियों को संरक्षित भूमि के दायरे से बाहर करना चाहती है।

वन संरक्षण कानून में बदलाव: सरकार को मिले 1,200 से अधिक सुझाव

केंद्र सरकार के वन संरक्षण कानून (फॉरेस्ट कंजरवेशन एक्ट) 1980 को संशोधित करने के लिए लाए गए बिल पर संसदीय समिति को 1,200 से अधिक सुझाव मिले हैं

मोटे तौर पर देखें तो इस कानून के जरिए सरकार कुछ प्रकार की भूमियों को वर्तमान कानून में परिभाषित संरक्षित भूमि के दायरे से बाहर करना चाहती है, और उन भूमियों पर किए जा सकने वाले कार्यों की सूची में विस्तार करना चाहती है। जैसे वन भूमि पर चिड़ियाघर, इको टूरिज्म और सफारी जैसी गतिविधियां और सिल्वीकल्चर को इजाज़त देना।

पर्यावरण कानून पर काम करने वाली एनजीओ लाइफ ने सुझाव दिया है कि यह बिल मूल कानून के पूरे मकसद को बदल देगा। इसलिए इसे संशोधन विधेयक नहीं कहा जा सकता, यह नया कानून है। इसी तरह संरक्षण के काम से जुड़ी प्रेरणा बिन्द्रा और केरल की आईएफएस अधिकारी प्रकृति श्रीवास्तव का कहना है कि प्रस्तावित संशोधन ‘मूल कानून को इतना क्षीण कर देते हैं कि, वन संरक्षण और जंगलों का कटान रोकने के लिए उसका प्राथमिक उद्देश्य खत्म हो जाता है’।

बहुत सारे संगठनों — जिनमें आदिवासी संगठन भी शामिल हैं, जैसे वन गुर्जर आदिवासी युवा संगठन — ने कहा है कि अगर यह संशोधन पारित हो गए तो समुदायों को मिले भूमि अधिकारों के कमजोर हो जाने  का डर है।

कॉप28: जीवाश्म ईंधन लॉबिस्टों को बतानी होगी अपनी पहचान

कॉप28 जलवायु शिखर सम्मेलन के लिए पंजीकरण करते समय जीवाश्म ईंधन के लॉबिस्टों को अपनी पहचान जाहिर करनी होगी। इससे वार्ता में प्रदूषणकारी और कार्बन-इंटेंसिव उद्योगों की जवाबदेही अधिक होगी।

हर साल, दुनिया भर के नेता कॉप बैठक में भाग लेते हैं, जहां जलवायु परिवर्तन से निबटने को लेकर महत्वपूर्ण निर्णय लिए जाते हैं। सालों से जीवाश्म ईंधन कंपनियों के अधिकारी इन कंपनियों के साथ अपने संबंधों को स्पष्ट किए बिना इन बैठकों में भाग लेते रहे हैं

कॉप26, ग्लासगो में किसी भी एक देश के प्रतिनिधियों की तुलना में जीवाश्म ईंधन उद्योगों के प्रतिनिधि अधिक थे। पिछले साल, 600 से अधिक ऐसे प्रतिनिधि मिस्र में कॉप27 में शामिल थे।

लेकिन अब इस शिखर सम्मेलन के लिए पंजीकरण कराने वाले किसी भी व्यक्ति को अपनी संबद्धता घोषित करना अनिवार्य है। संयुक्त राष्ट्र के इस कदम से जलवायु कार्यकर्ता खुश हैं और इसे जीत की ओर पहला कदम बता रहे हैं।

बद्रीनाथ मास्टर प्लान: विकास या आपदा की पटकथा?

बद्रीनाथ धाम के नए मास्टर प्लान के तहत बड़े पैमाने पर निर्माण के लिए भूमि अधिग्रहण किया जा रहा है।

मास्टर प्लान के तहत बद्रीनाथ मंदिर के आसपास 75 मीटर के दायरे में सारे निर्माण कार्य हटाने की योजना है, ताकि मंदिर की भव्यता दिखाई दे। यहां अलकनंदा रिवरफ्रंट और प्लाजा बनेगा। साथ में क्लॉक रूम (सामान जमागृह), यात्रियों की कतार व्यवस्था, झीलों का सौंदर्यीकरण और पार्किंग व्यवस्था के साथ सड़क निर्माण शामिल है।

हालांकि यात्रियों की लगातार बढ़ती संख्या को देखते हुए इसकी जरूरत से इंकार नहीं किया जा सकता है, लेकिन बद्रीनाथ क्षेत्र की संवेदनशील भौगोलिक संरचना को देखते हुए विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि यदि समय रहते इस कार्य को न रोका गया तो 2013 में केदारनाथ में आई आपदा जैसी त्रासदी का सामना करना पड़ सकता है।

चीतों को कूनो से बाहर ले जाने का फिलहाल कोई इरादा नहीं: सरकार

केंद्र सरकार ने कहा है कि मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान से चीतों को कहीं और स्थानांतरित करने की फिलहाल कोई योजना नहीं है। पर्यावरण मंत्री भूपेन्द्र यादव ने कहा कि यदि भविष्य में कूनो में कोई समस्या होती है, तो मध्य प्रदेश के गांधी सागर अभयारण्य को चीतों के वैकल्पिक निवास के लिए चुना गया है।

उन्होंने कहा कि चीते मौसम और आवास के अनुरूप ढल रहे हैं और अपना इलाका स्थापित कर रहे हैं, इसके लिए उन्हें समय देना चाहिए

पिछले तीन महीनों में तीन वयस्क चीतों और तीन शावकों की मौत के बाद, कूनो में चीतों को रखने पर कई विशेषज्ञों ने सवाल उठाए थे। सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकार से कहा था कि वह चीतों को राजस्थान भेजने पर विचार करे। इसके बाद यह भी खबर आई थी कि कुछ चीतों को गांधी सागर भेजा जा सकता है। 

जलवायु परिवर्तन चाय बागान मजदूरों को कर रहा बीमार, कैसे बेहतर हो स्थिति

जलवायु परिवर्तन का असर दार्जिलिंग के प्रसिद्ध चाय बागानों के उत्पादन, चाय के स्वाद और सैकड़ों श्रमिकों के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। हालांकि, अभी तक कोई स्पष्ट आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन क्षेत्र में काम करने वाले कार्यकर्ताओं ने इस समस्या की ओर ध्यान दिलाया है।

चरम मौसम की बढ़ती घटनाओं से उपज की रक्षा के लिए बागान मालिक धड़ल्ले से कीटनाशकों और केमिकल्स के उपयोग को बढ़ावा दे रहे हैं। इससे बागान मजदूरों को सांस की तकलीफ और त्वचा रोग हो रहे हैं। कई बागानों में श्रमिकों को दस्ताने, मास्क आदि सुरक्षा गियर भी नहीं दिए जाते हैं।

डाक्टरों की मानें तो लंबे समय तक इन रसायनों के संपर्क में रहने से कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियां हो सकती हैं।  

विशेषज्ञों ने सुझाया है कि इस समस्या से निबटने के लिए जरूरी है कि मिट्टी का जैविक संतुलन बनाए रखा जाए, उचित छाया वाले पेड़ लगाए जाएं और बीज से उत्पन्न और क्लोनल चाय के पौधों के बीच संतुलन सुनिश्चित किया जाए। इन रसायनों के अंधाधुंध उपयोग से भी जलवायु परिवर्तन बढ़ता है, इसलिए पेस्ट कंट्रोल और पर्यावरणीय स्थिरता के बीच संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता है।

आईआईटी मद्रास ने मोबाइल प्रदूषण मॉनिटरिंग के लिए डेटा विज्ञान और आईओटी-आधारित पद्धति विकसित की है। Photo: IIT Madras

आईआईटी के शोधकर्ताओं ने मोबाइल प्रदूषण मॉनिटरिंग के लिए विकसित की कम लागत वाली विधि

आईआईटी मद्रास के शोधकर्ताओं ने मोबाइल प्रदूषण की निगरानी के लिए कम लागत वाली विधि विकसित की है। यह डेटा साइंस, इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी) तकनीक और सार्वजनिक वाहनों पर लगे कम लागत वाले प्रदूषण सेंसर का उपयोग उच्च स्थानिक और लौकिक रिज़ॉल्यूशन पर गतिशील रूप से वायु गुणवत्ता की निगरानी  करता है। 

कम लागत वाले वायु गुणवत्ता सेंसर वाहनों पर लगा कर शोधकर्ताओं ने स्थानिक वायु गुणवत्ता डेटा एकत्र करने में सक्षम नेटवर्क बनाया है। यह एक संदर्भ निगरानी स्टेशन की कीमत पर उच्च रिज़ॉल्यूशन पर पूरे शहर की मैपिंग करने में सक्षम है। इस प्रोजेक्ट का नाम “कटरू” है   जिसका अर्थ तमिल में “वायु” है।  इसका उद्देश्य अखिल भारतीय हाइपर-स्थानीय वायु गुणवत्ता मानचित्र प्राप्त करना, भारतीय नागरिकों के लिए जोखिम आकलन करना और नीति के लिए डेटा-संचालित समाधान उत्पन्न करना है।  

दक्षिण भारत में हैदराबाद सबसे ज़्यादा प्रदूषित शहर : ग्रीनपीस 

ग्रीनपीस इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, हैदराबाद दक्षिण भारत के अन्य शहरों में सबसे अधिक वायु प्रदूषित शहर है। इसमें पीएम 2.5 का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित सुरक्षित स्तर से 8.2 गुना अधिक खतरनाक स्तर पर है।  रिपोर्ट कहती है कि वार्षिक औसत पीएम 2.5 सांध्रता स्तर हैदराबाद में 40.91 ug/m3 है, जबकि बेंगलुरु में 29.01 ug/m3 और चेन्नई में 23.81 ug/m3  है। 

हैदराबाद में वार्षिक औसत PM 2.5 स्तर वास्तव में कोच्चि के 24.11 ug/m3 से 41% अधिक और बेंगलुरु के 29.01 ug/m3 से 29% अधिक है। जब औसत PM10 प्रदूषक स्तर की बात आती है, तो हैदराबाद में 57.84 ug/m3 दर्ज किया गया। रिपोर्ट में कहा गया है कि यह सुरक्षित स्तर जो की 15 ug/m3 है, उस से 3.9 गुना है। 

पीएम2.5 जैसे छोटे वायु प्रदूषण कणों पर हो सकते हैं वायरस सवार 

चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंसेज (सीएएस) के शोधकर्ताओं के नेतृत्व में किए गए एक अध्ययन के अनुसार, वायु प्रदूषण वायरस को फेफड़ों और अन्य अंगों में गहराई तक ले जाकर वायरल संक्रमण की गंभीरता को बढ़ा सकता है। शोधकर्ताओं ने देखा कि कण-जनित वायरस चूहों की श्वसन प्रणाली में गहराई तक जा सकते हैं और यकृत, प्लीहा और गुर्दे जैसे अधिक दूर के अंगों तक पहुंच सकते हैं।

जबकि टीम ने जानवरों के प्रयोगों में घटना का अवलोकन किया, यह मनुष्यों पर भी लागू हो सकता है क्योंकि जिस रास्ते से जानवर रोगजनक सूक्ष्मजीवों से संक्रमित होते हैं, वे मनुष्यों के समान होते हैं। परिणाम बताते हैं कि वायु प्रदूषण कण जनित विषाणु रक्त-वायु अवरोध को तोड़ने में सक्षम हैं और रक्त परिसंचरण के माध्यम से अन्य अंगों में फैल जाते हैं।

कोविड-19 के रोगियों पर वायु प्रदूषण का बुरा असर 

दो नई रिसर्च के अनुसार वायु प्रदूषण के संपर्क में आने वाले लोगों ने कोविड-19 का अनुभव किया जैसे कि अपनी उम्र से वे 10 साल बड़े थे। यह दो शोध बेल्जियम और डेनमार्क में हुए। द गार्डियन में छपी एक रिपोर्ट ने बताया की बीमार होने से पहले जो लोग गंदी हवा के संपर्क में आये थे उन्हें अस्पताल में चार दिन ज़्यादा बिताने पड़े और वायु प्रदुषण के कारण बिमारी का उन पर इस तरह असर पड़ा जिस प्रकार उनसे 10 वर्षों वरिष्ठ इंसान पर पड़ता। 

बेल्जियम के अध्ययन से यह भी पता चला है कि रोगियों के रक्त में वायु प्रदूषण के स्तर के अनुसार उनके गहन देखभाल उपचार की आवश्यकता में 36% की हुई। डेनमार्क में अध्ययन से पता चला है कि वायु प्रदूषण के एक्सपोज़र के कारण कोविद -19 से मृत्यु के जोखिम में 23% की वृद्धि हुई। दोनों अध्ययनों में, वायु प्रदूषण का स्तर कानूनी यूरोपीय संघ के मानकों से नीचे था।

सरकार के अनुसार देश में 42 फीसदी ऊर्जा गैर-जीवाश्म स्रोतों से मिल रही है।

ग्रिड-स्तरीय स्टोरेज के लिए चाहिए एक और पीएलआई योजना: ऊर्जा मंत्री

केंद्रीय बिजली और नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री आर के सिंह ने कहा है कि ग्रिड-स्तरीय स्टोरेज के लिए एक और पीएलआई, यानि प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव योजना की जरूरत है। उन्होंने कहा कि इससे क्षमता बढ़ेगी और चौबीसों घंटे नवीकरणीय ऊर्जा उपलब्ध हो सकेगी।

नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में देश के बड़े लक्ष्यों की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा कि चूंकि नवीकरणीय ऊर्जा का भंडारण महंगा है, इसलिए सरकार पंप हाइड्रो पावर परियोजनाओं को प्रोत्साहित करने के लिए एक नीति लेकर आई है।

उनके अनुसार देश की 42 प्रतिशत ऊर्जा क्षमता गैर-जीवाश्म स्रोतों से उपलब्ध है, और 2030 तक इसे 50% तक ले जाने का लक्ष्य है। उन्होंने कहा कि देश में   हर साल 50 गीगावॉट क्षमता जोड़ी जाएगी।

लेकिन साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि भले ही हम तेज गति से नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता स्थापित कर रहे हैं, हम अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए थर्मल पावर क्षमता में भी वृद्धि करने से पीछे नहीं हटेंगे।

नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने दी बिजली दरों में बदलाव की अनुमति

सरकार नए बिजली नियमों के तहत दिन के दौरान बिजली दरों में 20 प्रतिशत तक की कटौती और रात में, जब मांग अधिक होती है, तो 20 प्रतिशत तक बढ़ोत्तरी की अनुमति देगी। इस कदम का उद्देश्य नवीकरणीय ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा देना है।

उम्मीद है कि इस व्यवस्था से पीक टाइम के दौरान ग्रिड पर भार कम होगा। यह दरें अप्रैल 2024 से वाणिज्यिक और औद्योगिक उपभोक्ताओं के लिए लागू की जाएंगी, और कृषि क्षेत्र को छोड़कर अन्य उपभोक्ताओं के लिए यह दरें एक साल बाद लागू होंगी।

भारत ने 2030 तक अपनी ऊर्जा क्षमता का 65 प्रतिशत गैर-जीवाश्म स्रोतों से प्राप्त करने का लक्ष्य रखा है। साथ ही भारत को 2070 तक नेट जीरो उत्सर्जन प्राप्त करने की दिशा में भी काम करना है। उम्मीद है कि इस कदम से इन लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद मिलेगी।

स्विट्ज़रलैंड ने अक्षय ऊर्जा कानून के समर्थन में दिया वोट

स्विट्ज़रलैंड की जनता ने एक नए जलवायु कानून के पक्ष में मतदान किया है, जिसका उद्देश्य है नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देकर 2050 तक नेट जीरो तक पहुंचना। जनमत संग्रह में इस कानून को 59.1 फीसदी मतदाताओं का समर्थन मिला, जबकि 40.9 फीसदी ने इसके खिलाफ मतदान किया।

कानून में कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में कटौती और नवीकरणीय ऊर्जा स्थापना में तेजी लाने का प्रस्ताव है, जिसके लिए 2 बिलियन स्विस फ़्रैंक (लगभग 18.31 करोड़ रुपए) की वित्तीय सहायता की घोषणा की गई है।

आयातित तेल और गैस पर निर्भरता कम करने के लक्ष्य के साथ, इस कानून में कोई नया प्रतिबंध या कर नहीं लगाया गया है।

न्यूयॉर्क में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात के बाद मस्क ने कहा कि वह 2024 में भारत आ सकते हैं। Photo: MEAphotogallery/Flickr

टेस्ला के भारत आने का रास्ता साफ, घरेलू ईवी उद्योग में आ सकता है बड़ा बदलाव

सालों के गतिरोध के बावजूद दुनिया की सबसे बड़ी इलेक्ट्रिक कार निर्माता कंपनी टेस्ला के भारत आने का रास्ता साफ हो गया है। 

न्यूयॉर्क में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात के बाद मस्क ने कहा कि वह 2024 में भारत आ सकते हैं, और “जल्द से जल्द टेस्ला भारत में होगी”।

टेस्ला के भारत आ जाने से भारतीय ईवी उद्योग में भी बड़ा बदलाव आने की संभावना है। भारतीय ईवी उद्योग में अभी भी दोपहिया और तिपहिया वाहनों का वर्चस्व है। इलेक्ट्रिक कारों की हिस्सेदारी बहुत कम है। टेस्ला के भारत आने से देश के इलेक्ट्रिक कार सेगमेंट को काफी बढ़ावा मिल सकता है।

चूंकि टेस्ला का इरादा भारत में एक स्थानीय आपूर्ति श्रृंखला बनाने का है, इसलिए अन्य सुधारों के साथ-साथ, देश के घरेलू बैटरी निर्माण और प्रौद्योगिकी को भी बढ़ावा मिल सकता है।

चीन ने इलेक्ट्रिक कारों पर टैक्स में दी अबतक की सबसे बड़ी छूट

चीन ने इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) और अन्य हरित कारों के लिए आगामी चार वर्षों में 520 बिलियन युआन (लगभग 592 करोड़ रुपए) की टैक्स छूट का ऐलान किया है। यह ईवी उद्योग को दी गई अब तक की बसे बड़ी टैक्स छूट है क्योंकि चीन कम होती बिक्री को बढ़ावा देना चाहता है।

दुनिया के सबसे बड़े ऑटो बाजार में कमजोर होती बिक्री ने चीन के आर्थिक विकास को लेकर चिंताएं बढ़ा दी हैं। हालांकि सरकार के आश्वासन के बाद ईवी उद्योग को वित्तीय सहायता की उम्मीद थी, फिर भी इस घोषणा के बाद देश के प्रमुख वाहन निर्माताओं के शेयरों में उछाल देखा गया।

चीन के वित्त मंत्रालय ने कहा कि 2024 और 2025 में खरीदे गए न्यू एनर्जी व्हीकल्स (एनईवी) को खरीद कर में प्रति वाहन 30,000 युआन (लगभग 3.5 लाख रुपए) तक की छूट दी जाएगी। वहीं 2026 और 2027 में खरीदे गए एनईवी पर खरीद कर में 15,000 युआन (लगभग 1.75 लाख रुपए) तक की छूट दी जाएगी।

चीन ने पहले भी एक दशक से अधिक समय तक ईवी की खरीद पर सब्सिडी दी थी, लेकिन यह स्कीम पिछले साल समाप्त हो गई।

ईवी के साथ भारत में हाइब्रिड कारों की बिक्री भी बढ़ी

इलेक्ट्रिक वाहन की बढ़ती हुई बिक्री के बीच देखा जा रहा है कि लोगों में स्ट्रांग हाइब्रिड कारों की लोकप्रियता भी बढ़ रही है। स्ट्रांग हाइब्रिड कारें पेट्रोल या डीजल इंजन और इलेक्ट्रिक मोटर द्वारा संचालित होती हैं। 

आंकड़ों के अनुसार ऑटोमोबाइल निर्माताओं ने अक्टूबर 2022 से मई 2023 के बीच घरेलू बाजार में 48,424 यूनिट स्ट्रांग हाइब्रिड कारें बेचीं, जो इसी अवधि के दौरान बेची गई 48,991 इलेक्ट्रिक कारों की तुलना में केवल 600 यूनिट कम हैं।

विशेषज्ञों का मानना है कि स्ट्रांग हाइब्रिड कारों की मांग में वृद्धि जारी रहेगी, क्योंकि इलेक्ट्रिक वाहनों की तुलना में इनकी कुल लागत कम है, रेंज अधिक है और चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी का कोई प्रभाव इनपर नहीं पड़ता।

उनका मानना है कि हाइब्रिड कारें न केवल ईवी की और ट्रांजिशन में सहायक होंगी बल्कि इनसे इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए एक मैन्युफैक्चरिंग इकोसिस्टम बनाने में भी मदद मिलेगी।

ओला ने भारत की सबसे बड़ी गीगाफैक्ट्री का निर्माण शुरू किया

ओला इलेक्ट्रिक ने भारत में अपनी गीगाफैक्ट्री का निर्माण शुरू कर दिया है। यह भारत में कंपनी की दूसरी फैसिलिटी होगी। इस आगामी फैक्ट्री को भारत में सबसे बड़ी ईवी सेल फैक्ट्री माना जा रहा है और उम्मीद है कि आगे चलकर यहां नए उत्पादों का भी निर्माण होगा।

यह गीगाफैक्ट्री ओला इलेक्ट्रिक के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि कंपनी ईवी निर्माण के सभी आयामों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराना चाहती है।

दोपहिया वाहनों के अलावा, यह पहले से ही चार पहिया वाहनों पर काम कर रही है, अब बैटरी का निर्माण इसके लिए एक नया मील का पत्थर साबित होगा। साथ ही, बैटरी सेल के घरेलू उत्पादन से सप्लाई चेन में आने वाली बाधाओं को रोकने और ईवी की लागत कम करने में भी मदद मिलेगी।

विश्व बैंक का अनुमान है कि दुनिया भर में हर साल लगभग 470 लाख करोड़ रुपए जीवाश्म ईंधन पर सब्सिडी देने में खर्च होते हैं।

जीवाश्म ईंधन पर प्रति मिनट दी जा रही 23 मिलियन डॉलर की सब्सिडी: विश्व बैंक

जीवाश्म ईंधन के लिए दी जा रही खरबों डॉलर की सब्सिडी पर्यावरण के विनाश का कारण बन रही है, तथा लोगों और धरती को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचा रही है, विश्व बैंक ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है।     

डिटॉक्स डेवलपमेंट के नाम से जारी की गई इस रिपोर्ट में कहा गया है कि कई देश इस हानिकारक सब्सिडी पर स्वास्थ्य, शिक्षा या गरीबी उन्मूलन की तुलना में अधिक खर्च करते हैं। चूंकि इस सब्सिडी सबसे बड़े लाभार्थी अमीर और शक्तिशाली लोग हैं, इसमें सुधार करना भी कठिन है।

रिपोर्ट ने कहा कि सब्सिडी में सुधार से जलवायु संकट से लड़ने के लिए महत्वपूर्ण वित्त उपलब्ध होगा।

रिपोर्ट के अनुसार, प्रति वर्ष कम से कम 7.25 ट्रिलियन डॉलर इस तरह की सब्सिडी पर खर्च किए जाते हैं। इनमें सरकारों द्वारा दी गई सब्सिडी 1.25 ट्रिलियन डॉलर प्रति वर्ष है। इसमें टैक्स माफी और ग्लोबल वार्मिंग और वायु प्रदूषण से होने वाले नुकसान की लागत भी जोड़ी जाए तो इस सब्सिडी का आंकड़ा 23 मिलियन डॉलर प्रति मिनट तक पहुंच जाता है। विश्व बैंक के हिसाब से यह अनुमान भी कम है।

तेल और गैस के इस बढ़ते प्रयोग के विरुद्ध संघर्ष करने वाली संस्था जस्ट स्टॉप ऑयल के प्रदर्शनकारियों ने पिछले दिनों ईस्ट ससेक्स के ग्लाइंडबॉर्न ओपेरा उत्सव के दौरान शो को बाधित कर विरोध जताया। जस्ट स्टॉप ऑयल ने अपने बयान में कहा कि तीन प्रदर्शनकारियों ने कार्यक्रम को बाधित बताया कि तेल और गैस हमारे अस्तित्व के लिए खतरा हैं, फिर भी हमारी सरकारें इन्हें बढ़ावा देना चाहती हैं।  

कोयले की ढुलाई से रेलवे को हुआ रिकॉर्ड मुनाफा

भारतीय रेलवे ने पिछले वित्तीय वर्ष (2022-23) में अपनी माल ढुलाई सेवाओं से रिकॉर्ड कमाई दर्ज की, जिसमें से अधिकांश राजस्व कोयले की ढुलाई से आया। ऐसे में सवाल उठता है कि रेलवे की कमाई का यह जरिया कितना स्थिर है, क्योंकि भारत जलवायु परिवर्तन से निबटने के लिए कार्रवाई कर रहा है, और 2070 तक देश को नेट जीरो उत्सर्जन हासिल करना है। जिसका अर्थ होगा कोयले में भारी कटौती।

लेकिन 2012-13 से 2021-22 तक 10 साल की अवधि में, रेलवे के राजस्व में कोयले का योगदान 43 प्रतिशत से बढ़कर 47 प्रतिशत से अधिक हो गया है। आंकड़ों से पता चलता है कि कोयला एकमात्र प्रमुख वस्तु है जिसकी ढुलाई से राजस्व में महत्वपूर्ण वृद्धि देखी गई है।

ऐसे में विशेषज्ञों का कहना है कि स्वच्छ ऊर्जा पर बढ़ते जोर के बावजूद, कोयला न केवल रेलवे, बल्कि पूरे लॉजिस्टिक्स क्षेत्र के कार्गो में प्रमुखता से मौजूद रहेगा।

केवल उत्सर्जन ही नहीं, जीवाश्म ईंधन को भी करें फेजआउट: गुटेरेश

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेश ने कहा है कि देशों को केवल उत्सर्जन ही नहीं बल्कि तेल, कोयला और गैस को ही चरणबद्ध तरीके से समाप्त करना शुरू करना चाहिए। उन्होंने जीवाश्म ईंधन कंपनियों से कहा कि जलवायु परिवर्तन से लड़ने के प्रयासों की प्रगति में बाधा डालना बंद करें।

गुटेरेस ने कहा, “समस्या केवल उत्सर्जन नहीं है, बल्कि जीवाश्म ईंधन ही समस्या है। इस समस्या का समाधान स्पष्ट है: दुनिया को जीवाश्म ईंधन को उचित और न्यायसंगत तरीके से समाप्त करना चाहिए।”

गुटेरेश का बयान कॉप28 के मेजबान संयुक्त अरब अमीरात के प्रस्ताव के जवाब में आया जिसमें कहा गया था कि इस साल के अंत में होने वाली इस शिखर वार्ता में उत्सर्जन को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए, न कि जीवाश्म ईंधन को समाप्त करने पर। 30 नवंबर से शुरू होने वाले कॉप28 के एजेंडे पर एकमत होने के लिए वार्ताकार अभी भी संघर्ष कर रहे हैं, जिससे बातचीत खतरे में पड़ सकती है।

संयुक्त राष्ट्र महासचिव इससे पहले भी विकसित देशों को 2030 और विकासशील देशों को 2050 तक नेट जीरो तक पहुंचने का प्रयास करने का अनुरोध कर चुके हैं।

नए कोयला संयंत्र लगाने की बजाए अधिग्रहण का रास्ता अपनाए एनटीपीसी: रिपोर्ट

इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंशियल एनालिसिस की एक रिपोर्ट के अनुसार, एनटीपीसी को नए कोयला आधारित थर्मल पावर प्लांट बनाने के बजाय वित्तीय संकट से जूझ रहे थर्मल प्लांटों का अधिग्रहण करना चाहिए। इससे देश की अल्पकालिक ऊर्जा सुरक्षा जरूरतें भी पूरी होंगी और ऋणदाताओं, मुख्य रूप से सरकारी  बैंकों, की बैलेंस शीट में सुधार होगा।

2022 में जारी सरकारी निर्देशों के आधार पर, भारत की सबसे बड़ी बिजली उत्पादक एनटीपीसी ने देश की बढ़ती ऊर्जा आवश्यकता को पूरा करने के लिए अपनी थर्मल पावर क्षमता को 7 गीगावॉट तक बढ़ाने की योजना बनाई है।

हालांकि, आईईईएफए का सुझाव है कि नए थर्मल पावर प्लांट बनाने की बजाय, एनटीपीसी को वित्तीय संकट से जूझ रहे बिजली संयंत्रों का अधिग्रहण करना चाहिए। विश्लेषण में ऐसे छह संयंत्रों की सूची भी है। इन छह संयंत्रों की संयुक्त क्षमता 6.1 गीगावाट है, जो कई उद्देश्यों को पूरा करेगी — देश की अल्पकालिक ऊर्जा जरूरतें पूरी होंगी, एनटीपीसी नए इंफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण से बचेगी और हरित क्षेत्र में कंपनी की ब्रांड वैल्यू मजबूत होगी।