Newsletter - March 1, 2023
इस साल भी पड़ेगी भीषण गर्मी, लू के थपेड़े फसलों पर डालेंगे बुरा असर
पिछले दो सालों की रिकॉर्ड तोड़ गर्मी के बाद, मौसम विभाग ने बताया है कि अधिकतम औसत तापमान के हिसाब से इस बार की फरवरी बीते 122 सालों में सबसे अधिक गर्म रही है। विभाग ने इस साल मार्च से ही हीटवेव की चेतावनी जारी कर दी है।
आने वाले तीन महीनों में भीषण गर्मी पड़ने से लोगों के स्वास्थ्य के साथ-साथ फसलों पर भी बुरा प्रभाव पड़ेगा और किसानों की परेशानियां बढ़ेंगी। मौसम विभाग की मानें तो इस साल की गर्मी पिछले दो सालों से भी अधिक रह सकती है। तापमान में इस असामान्य वृद्धि के बीच, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक परामर्श जारी किया है, जिसमें हीटवेव से बचाव के उपाय बताए गए हैं।
देश के अलग-अलग राज्यों में फरवरी का अधिकतम तापमान लगातार सामान्य से ऊपर रहा और पिछले दो सालों की तरह गर्मी की शुरुआत से ही हीटवेव जैसे हालात पैदा हो गए। गुजरात, राजस्थान, कोंकण, गोवा और तटीय कर्नाटक में 13 फरवरी के बाद से अधिकतम तापमान सामान्य से चार से नौ डिग्री अधिक बना रहा।
मौसम विभाग का अनुमान है कि दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में आने वाले दिनों में गर्मी तेजी से बढ़ेगी। इनमें से कुछ राज्यों में 18 फरवरी के बाद से अधिकतम तापमान सामान्य से पांच से नौ डिग्री सेल्सियस अधिक है।
हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में भी अधिकतम तापमान सामान्य से पांच से ग्यारह डिग्री सेल्सियस तक ऊपर जा सकता है। उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और राजस्थान में फरवरी 100 फीसदी सूखी रही है जिस कारण तापमान तेजी से बढ़ रहा है।
विभाग के अनुसार इस बढ़े हुए तापमान का बुरा असर गेहूं और दूसरी फसलों पर पड़ रहा है।
किसानों पर मंडराता संकट: साल 2021 में अगस्त के सूखे ने कई किसानों की फसल बर्बाद की वहीं 2022 की शुरुआत में हुई भारी बारिश और शीतलहर ने खड़ी फसलों को बहुत नुकसान पहुंचाया। अप्रैल-मई 2022 में कटाई के समय भीषण गर्मी की वजह से बड़े पैमाने पर गेहूं की फसल का नुकसान हुआ। 2022 का मानसून भी 2021 की तरह रहा, कहीं भारी तो कहीं बेहद कम बारिश हुई और फिर फसलों का भारी नुकसान हुआ।
इसलिए एक बार फिर किसानों की उम्मीदें 2023 की रबी फसल पर टिक गई हैं। लेकिन इस साल भी उन्हें झटका लग रहा है।
फरवरी के इस असामान्य उच्च तापमान से पिछले साल की तरह, बल्कि उससे भी ज्यादा, गेहूं की फसल को नुकसान पहुंचेगा। वहीं मौसम विभाग ने खरीफ की फसल को लेकर भी चेतावनी जारी कर दी है। अल नीनो जुलाई तक 2023 में प्रवेश करेगा, जिससे आमतौर पर भारत में कमजोर मानसून और अत्यधिक गर्मी होती है। इसलिए किसान खरीफ की फसल से भी उम्मीद नहीं लगा सकते हैं।
साफ़ है कि किसानों की परेशानी इस साल भी जारी रहेगी।
वहीं केंद्र सरकार ने गेहूं की फसल को हीटवेव से होने वाले खतरों से निपटने के लिए एक पैनल बनाने का फैसला किया है।
तापमान वृद्धि 1.5 डिग्री तक सीमित करने के लिये चाहिये भारी बदलाव
जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) के कार्यकारी सचिव साइमन स्टील ने कहा है कि धरती की तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री तक सीमित करने का लक्ष्य अभी भी असंभव नहीं है लेकिन इसके लिये सभी देशों को अपनी ऊर्जा नीति और प्रयोग में भारी बदलाव करने होंगे। दिल्ली स्थित द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टिट्यूट (टैरी) द्वारा आयोजित वर्ल्ड सस्टेनेबल डेवलपमेंट समिटि में स्टील ने कहा कि यह लक्ष्य पाने की उम्मीद अभी जीवित है लेकिन विज्ञान बताता है कि हमें इस रास्ते पर बने रहने के लिये क्या करना होगा। स्टील ने कहा कि समय बहुत तेज़ी से निकला जा रहा है।
स्टील ने कहा कि पेरिस सन्धि के तहत हालात के वैश्विक मूल्यांकन और जांच (ग्लोबल स्टॉकटेक) की व्यवस्था है और इसका इस्तेमाल सुधार और तेज़ी से कदम उठाने के लिये होना चाहिये। हिन्दुस्तान टाइम्स कि रिपोर्ट के मुताबिक हालांकि बाद में स्टील ने यह भी कहा कि दुनिया 2.5 डिग्री की तापमान वृद्धि की ओर बढ़ रही है।
“खोने के लिये समय नहीं बचा”, पूर्व यूएन महासचिव द्वारा क्लाइमेट फाइनेंस पर देरी की आलोचना
संयुक्त राष्ट्र के पूर्व महासचिव बान की मून ने क्लाइमेट फाइनेंस में ढुलमुल रवैये और देरी की आलोचना की है और कहा है कि क्लाइमेट प्रभावों को देखते हुये स्पष्ट है कि हमारे पास खोने के लिये ज़रा भी समय नहीं बचा है। कोरियाई डिप्लोमेट मून 2007 से लेकर 2016 तक संयुक्त राष्ट्र के महासचिव रहे जब जलवायु परिवर्तन के अहम बाली सम्मेलन, कोपेनहेगन समिट और एतिहासिक पेरिस सन्धि पर दस्तखत किये गये। बून का स्पष्ट कहना है कि जलवायु परिवर्तन के विनाश से धरती को बचाने के लिये लाखों करोड़ डॉलर का वित्तीय सहयोग चाहिये। उन्होंने अमीर देशों से अपील की है कई वर्षों की विफलता के बाद अब उन्हें विकासशील देशों से किये वादे को पूरा करना चाहिये।
जोशीमठ का बढ़ता संकट, धंसाव बढ़ा, लोग चिन्तित
उत्तराखंड के जोशीमठ में पिछले साल दिसबंर से आई भू-धंसाव और भवनों में दरारों की शिकायतें बढ़ती जा रही हैं। श्रीदेव सुमन यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञों की टीम द्वारा किये गये एक ग्राउंड सर्वे के मुताबिक यहां 2 फीट चौड़ी और आधा किलोमीटर लम्बी दरारें पाई गईं हैं। जोशीमठ में अनाज गोदाम में भी दरारें आने के बाद अब उसे शहर से हटाकर तपोवन या पीपलकोटी में से किसी जगह ले जाने की योजना है। यह दोनों ही जगहें जोशीमठ से 15 किलोमीटर की दूरी पर हैं। इस भंडार से यहां आसपास के 50 गांवों को अनाज सप्लाई होता है। इस बीच सरकार ने एक मुआवज़ा नीति जारी की है जिससे जोशीमठ के लोग खुश नहीं है और अपने साथ धोखा बता रहे हैं।
प्लास्टिक संधि पर उलझे देश, प्रयोग घटाएं या करें रीसाइक्लिंग
प्लास्टिक प्रदूषण को खत्म करने का तरीका क्या हो इस पर वार्ता से पहले दुनिया के देश बंटे हुए हैं।
पिछले साल मार्च 2022 में संयुक्त राष्ट्र में यह तय हुआ था कि प्लास्टिक प्रदूषण को खत्म करने के लिए सभी देशों के बीच एक संधि की (प्लास्टिक ट्रीटी) जाए जो 2024 तक क्रियान्वित हो।
इसी संधि की तैयारियों के लिए मई में दुनिया के सभी देश बैठक कर रहे हैं, लेकिन अपने भेजे प्रस्तावों में जहां यूरोपीय और अफ्रीकी देशों ने प्लास्टिक के उत्पादन को कम करने की बात कही है, वहीं अमेरिका और सउदी अरब ने रीसाइकलिंग और कचरा निस्तारण का सुझाव दिया है।
यानि जहां एक ओर प्लास्टिक कम पैदा किए जाने की रणनीति है, वहीं दूसरी ओर सुझाव है कि ज़मीन और समुद्र को इसके प्रदूषण से बचाने के उपाय ढूंढे जाएं।
प्लास्टिक बनाने के लिए तेल और गैस का इस्तेमाल होता है, इसलिए विश्व के कुल कार्बन इमीशन में इसका 3% हिस्सा है। अगर प्लास्टिक एक देश होता तो चीन, अमेरिका और भारत के बाद वह दुनिया का चौथा सबसे बड़ा उत्सर्जक होता।
प्लास्टिक प्रदूषण को कम करने के लिए भारत ने साल 2022 तक सिंगल यूज़ प्लास्टिक का इस्तेमाल बन्द करने का ऐलान किया था लेकिन यह लक्ष्य अभी हासिल नहीं हुआ है।
जलवायु परिवर्तन से भारत के 9 राज्य खतरे में, अनुकूलन नीतियों की जरूरत: रिपोर्ट
एक ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक साल 2050 तक पूरी दुनिया में जिन 200 प्रान्तों, राज्यों या क्षेत्रों को बदलते क्लाइमेट प्रभावों का सर्वाधिक खतरा होगा उनमें आधे से अधिक एशिया में हैं।
एक्सडीआई बैंचमार्क सीरीज़ की इस रिपोर्ट में चीन के बाद भारत के सबसे अधिक 9 राज्यों पर क्लाइमेट प्रभावों से तबाही होने का अंदेशा जताया गया है।
इन राज्यों में केरल, पंजाब, राजस्थान, यूपी, बिहार, तमिलनाडु, गुजरात, असम और महाराष्ट्र शामिल हैं।
एक्सडीआई की प्रवक्ता जॉर्जीना वुड्स ने कहा कि “देशों को अपने ऊपर मंडरा रहे खतरे को समझकर तेजी से ऐसी अनुकूलन योजनाएं बनाने की जरूरत है जो क्लाइमेट रेसिलिएंट कानूनों द्वारा समर्थित हों और निवेशकों को आकर्षित कर सकें”।
उन्होंने यह भी कहा कि शीर्ष 100 में शामिल सभी भारतीय राज्यों में नुकसान का सबसे बड़ा खतरा बाढ़ से है।
केंद्र ने कार्बन क्रेडिट के लिए उपलब्ध प्रौद्योगिकियों की सूची जारी की
भारत ने पेरिस समझौते के तहत अंतरराष्ट्रीय कार्बन क्रेडिट व्यापार के लिए मान्य गतिविधियों की एक सूची बनाई है।
कार्बन क्रेडिट, या कार्बन ऑफसेट, एक ऐसी व्यवस्था है जिसके तहत निवेश के माध्यम से, एक निश्चित मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड या अन्य ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करने की अनुमति खरीदी जा सकती है।
कार्बन कैप्चर और स्टोरेज जैसी गतिविधियों के अलावा, सूची में शमन गतिविधियां, जैसे संग्रहीत नवीकरणीय ऊर्जा, सौर तापीय ऊर्जा, अपतटीय पवन, हरित हाइड्रोजन और कंप्रेस्ड बायो-गैस; और वैकल्पिक सामग्री जैसे कि ग्रीन-अमोनिया आदि शामिल हैं।
यह उन क्षेत्रों की सूची है जहां भारत निवेश आकर्षित करना चाहता है। इन प्रौद्योगिकियों के माध्यम से कार्बन उत्सर्जन ऑफसेट करके निवेशक देश या कंपनी कार्बन क्रेडिट प्राप्त कर सकते हैं।
एचटी ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के हवाले से कहा कि “इस सूची की घोषणा करके, भारत ने इन उभरती प्रौद्योगिकियों में निवेश आकर्षित करने का अपना इरादा सार्वजनिक कर दिया है”।
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत चाहता है कि देश/कंपनियां निवेश करके इन तकनीकों को भारत लाएं, जहां इनका स्वदेशीकरण किया जा सके। इसके बदले में संबंधित देश या कंपनी को कार्बन क्रेडिट प्रदान किए जाएंगे, जिसका उपयोग वह शमन के लिए कर सकते हैं।
यह सूची अभी तीन वर्षों के लिए लागू की गई है। इसके बाद सूची में बदलाव हो सकते हैं।
मध्यप्रदेश: आदि शंकराचार्य म्यूजियम के लिए पेड़ों की कटाई को एनजीटी ने बताया अवैध
मध्य प्रदेश के ओंकारेश्वर में नर्मदा नदी के फ्लडप्लेन में आचार्य शंकर सांस्कृतिक एकता न्यास, भोपाल के जरिए ‘स्टेच्यू ऑफ वननेस’ और आदि शंकराचार्य के म्यूजियम के निर्माण के लिए अवैध तरीके से पेड़ों को काटा जा रहा है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने पेड़ों के कटाव पर रोक लगा दी है।
जस्टिस आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि संयुक्त समिति की जांच रिपोर्ट से साफ होता है कि करीब 1,300 पेड़ काटने की अनुमति स्टेट एक्ट के तहत एसडीओ के जरिए दी गई थी।
पीठ ने पाया कि पेड़ों को काटने की अनुमति वन (संरक्षण कानून), 1980 की धारा 2 के मुताबिक पूरी तरह से अवैध है। पेड़ों को काटने के लिए केंद्र से उचित अनुमति की जरूरत है।
पीठ ने कहा कि यह भी जरूरी है कि नर्मदा के बाढ़ क्षेत्र को बचाने क लिए परियोजना का कार्य बेहद सावधानी से किया जाए। खासतौर से मक डिस्पोजल नियमों और मानकों के तहत होना चाहिए।
इसके अलावा सीवेज व सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट के नियमों का पालन भी परियोजना में किया जाना चाहिए। वहीं, पर्यटकों को यहां सिर्फ विद्युत वाहनों से ही आने की अनुमति दी जाए।
ग्रीनवाशिंग दावों पर यूके में देना होगा जुर्माना
यूनाइटेड किंगडम में अब उत्पादों को बेचने के लिए उनके एनवायरनमेंट-फ्रेंडली होने के दावों को बहुत गहन जांच का सामना करना पड़ेगा। यदि ऐसे दावे निराधार और भ्रामक पाए जाते हैं, तो प्रस्तावित नए कानूनों के तहत करोड़ों पाउंड तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।
जल्द ही आनेवाले डिजिटल मार्केट, प्रतियोगिता और उपभोक्ता बिल के तहत, बड़ी कंपनियों पर उपभोक्ता कानून के उल्लंघन के लिए वैश्विक कारोबार के 10% तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। वहीं इन कानूनों का उल्लंघन करने वाले व्यक्तियों को 300,000 पाउंड तक के जुर्माने का सामना करना पड़ेगा।
वकीलों के अनुसार कम्प्टीशन एंड मार्केट्स अथॉरिटी (सीएमए) को मिलने वाली इन नई शक्तियों में निश्चित रूप से भ्रामक पर्यावरणीय दावों को शामिल किया जाएगा, जिन्हें ग्रीनवाशिंग के नाम से जाना जाता है।
सीएमए ने पिछले महीने घोषणा की थी कि वह घरेलू जरूरत की चीजों जैसे भोजन, पेय और प्रसाधन आदि के बारे में किए गए पर्यावरणीय दावों की भी जांच करेगी।
पिछले दो सालों में नियामकों ने भ्रामक दावों के लिए यूनिलीवर और हुंडई जैसे बड़े ब्रांड्स के विज्ञापन तक बैन कर दिए थे।
क्लाइमेट चुनौतियों से निपटने के लिए अमेरिका ने अजय बंगा को विश्व बैंक प्रमुख पद के लिए नामित किया
अमेरिकी सरकार ने भारतीय-अमेरिकी व्यवसायी अजय बंगा को विश्व बैंक प्रमुख के पद के लिए नामित किया है। इस नामांकन के लिए जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए फाइनेंस जुटाने में उनके अनुभव का हवाला दिया गया है।
राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा है कि मास्टरकार्ड के पूर्व एग्जीक्यूटिव बंगा के पास ‘जलवायु परिवर्तन सहित हमारे समय की सबसे जरूरी चुनौतियों से निपटने के लिए पब्लिक-प्राइवेट संसाधनों को जुटाने का महत्वपूर्ण अनुभव है’। बंगा फिलहाल जनरल अटलांटिक के जलवायु-केंद्रित फंड ‘बियॉन्डनेटजीरो’ के सलाहकार हैं। वह डॉव केमिकल्स जैसे बड़े निगमों के बोर्ड में बैठ चुके हैं और उन्होंने अमेरिकी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस के साथ मध्य अमेरिका के लिये नीतियों पर काम किया है।
हाल के वर्षों में विश्व बैंक वैश्विक जलवायु परिवर्तन से निपटने के प्रयासों का एक प्रमुख केंद्र बन गया है। भारत सरकार ने जी20 बैठक में भी विकासशील देशों को विकसित देशों की तुलना में सस्ता क्लाइमेट फाइनेंस मुहैया कराने पर जोर दिया है।
विश्व बैंक उन देशों को भी अधिक फंड देना चाहता है जिनपर जलवायु परिवर्तन का खतरा अधिक है। वर्तमान में किसी देश की जरूरतें सिर्फ उसकी माली हालत पर निर्धारित की जाती हैं।
ग्रामीण इलाकों में बढ़ रहा है प्रदूषण, गिर रही वायु गुणवत्ता
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) खड़गपुर के शोधकर्ताओं ने पाया है कि ग्रामीण भारत में वायुमंडलीय प्रदूषण बढ़ रहा है।
उन्होंने पाया कि शहरों से निकलकर वायु प्रदूषण अब ग्रामीण इलाकों में भी पर्यावरण को प्रभावित कर रहा है।
शोधकर्ताओं ने सैटेलाइट इमेजिंग के माध्यम से नाइट्रोजन डाइऑक्साइड स्तर को माप कर ग्रामीण इलाकों की वायु गुणवत्ता का विश्लेषण किया। इस विश्लेषण में पाया गया कि भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड का स्तर लगातार बढ़ रहा है।
आईआईटी खड़गपुर के प्रोफेसर जयनारायणन कुट्टीपुरथ ने बताया कि ग्रामीण भारत की वायु गुणवत्ता में गिरावट आई है।
“हालांकि दिल्ली और उसके उपनगरों और पूर्वी भारत जैसे क्षेत्रों को छोड़ दें तो बाकी जगह अभी प्रदूषण प्रारंभिक स्तर से ऊपर नहीं है, लेकिन नाइट्रोजन डाइऑक्साइड की बढ़ती हुई सघनता, बढ़ती जनसंख्या, शहरीकरण की तेज गति और उद्योगों के उपनगरों का रुख करने से विकास की बढ़ती गतिविधियों के कारण, भारत के दूसरे क्षेत्रों में भी प्रदूषण बढ़ेगा और विशाल ग्रामीण आबादी की स्वास्थ्य पर असर पड़ेगा,” उन्होंने कहा।
वायु प्रदूषण से हड्डियां अधिक भंगुर हो रही हैं: शोध
एक नये शोध से पता चला है कि वायु प्रदूषण के कारण हड्डियों पर असर पड़ता है और वह अधिक कमज़ोर व भंगुर हो रही है। अमेरिका में कोलंबिया विश्वविद्यालय के शोधार्थियों ने पाया है कि अत्यधिक वायु प्रदूषण में रहने वाले इंसानों (विशेषकर रजोनिवृत्ति वाली महिलाओं में) की हड्डियों में ऑस्टियोपोरोसिस तेज़ हो जाता है जो हड्डियों को कमज़ोर और भंगुर कर देता है।
इस शोध के लिये 6 साल के दौरान 9041 महिलाओं से जुड़ी जानकारी इकट्टा की गई और आंकड़ों का विश्लेषण किया गया। इसमें उनके बोन-मिनरल घनत्व पर रिसर्च हुई जिससे उन्हें ऑस्टियोपोरोसिस और हड्डी टूटने के खतरे का पता चलता है।
इन महिलाओं के घरों के पास पीएम 10 कणों के अलावा सल्फर डाई ऑक्साइड, नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड और नाइट्रिक ऑक्साइड जैसे प्रदूषकों के स्तर को देखा गया और हड्डियों की कमज़ोरी और वायु प्रदूषण में एक संबंध देखा गया।
टायरों के घिसाव से निकलते कण, सेहत को बढ़ता ख़तरा
वैज्ञानिकों का कहना है कि टायरों के घिसाव से महीन कणों का उत्सर्जन सेहत के लिए ख़तरा पैदा कर रहा है। शोध बताता है कि वाहनों के एक्जॉस्ट से जितनी मात्रा में महीन कण निकलते हैं उससे कहीं अधिक मात्रा में ऐसे कण टायरों के घर्षण से निकल कर वातावरण में आ रहे हैं।
हालांकि टायरों के नये डिज़ाइन इस ख़तरे को कम करने में मदद कर सकते हैं। यूके सरकार के आंकड़ों का अध्ययन कर इम्पीरियल कॉलेज लंदन के वैज्ञानिकों ने बताया कि साल 2021 में 52% कण टायरों और ब्रेक के घिसने से निकले जबकि कारों और दूसरे भारी वाहनों के एक्झॉस्ट से निकलने वाले कुल कणों का हिस्सा 25% था। टायरों को बनाने में जो रसायन प्रयोग किये जाते हैं उनके कारण यह महीन कण स्वास्थ्य के लिये अधिक हानिकारक होते हैं।
भारत में वाहनों की संख्या और सड़कों का प्रयोग तेज़ी से बढ़ रहा है। यहां पर ऐसा कोई अध्ययन उपलब्ध नहीं है साल 2019 में ही करीब 30 करोड़ वाहन सड़क पर थे।
लिगेसी प्रदूषण कम करने के लिए $550 मिलियन खर्च करेगा अमेरिका
अमेरिका में लिगेसी प्रदूषण (प्रतिबंधित प्रदूषकों द्वारा होने वाले दीर्घकालिक प्रभावों) को कम करने और वंचित समुदायों को स्वच्छ ऊर्जा का एक्सेस देने के लिए 11 संगठनों को $550 मिलियन का अनुदान दिया जाएगा।
एनवायर्मेंटल प्रोटेक्शन एजेंसी (ईपीए) इन संस्थाओं का चुनाव करेगी, जिनमें बड़े गैर-लाभकारी समूह, ट्राइबल नेशन और विश्वविद्यालय शामिल हो सकते हैं। यह संस्थाएं उन क्षेत्रों का चुनाव करेंगी जहां ईपीए के नए कार्यक्रम के तहत निवेश किया जाएगा। इस कार्यक्रम के तहत उन क्षेत्रों में सामुदायिक परियोजनाओं में निवेश किया जाना है जहां वायु और जल प्रदूषण ऐतिहासिक रूप से अधिक है।
यह पैसा कांग्रेस द्वारा अधिकृत इन्फ्लेशन रिडक्शन एक्ट (आईआरए) में दिए गए $3 बिलियन के एनवायर्मेंटल ब्लॉक अनुदान का हिस्सा है। इस कानून के माध्यम से स्वच्छ ऊर्जा और जलवायु प्राथमिकताओं में लगभग $369 बिलियन का निवेश किया जाना है।
पर्यावरण मानकों का उल्लंघन करने पर बीएमसी ने कांट्रेक्टर पर लगाया जुर्माना
बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) ने एक ठेकेदार पर मुलुंड (पश्चिम) में सीवर लाइन डालने के दौरान मानदंडों का पालन न करने के लिए जुर्माना लगाया है। मानकों का पालन न करने से मैराथन एवेन्यू मार्ग में वायु गुणवत्ता खराब हुई और एक महीने के भीतर 22 स्थानीय निवासियों को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा।
हिंदुस्तान टाइम्स ने पहले एक रिपोर्ट में बताया था कि कैसे बीएमसी द्वारा लगातार बड़े पैमाने पर निर्माण, सड़क खुदाई और सीवरेज के काम से क्षेत्र में वायु प्रदूषण बढ़ रहा है और कई निवासियों को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा है।
टी वार्ड के सहायक आयुक्त चक्रपाणि अल्ले ने कहा कि निर्माण स्थल पर आवश्यक मानदंडों का पालन नहीं किया जा रहा था, और बीएमसी के ठेकेदार द्वारा सीवर लाइन के लिए सड़क खोदते समय निविदा शर्तों का उल्लंघन भी किया गया था।
भारत 2070 के पहले ही नेट जीरो लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है: आईएमएफ एमडी
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की प्रबंध निदेशक क्रिस्टालिना जॉर्जीवा ने कहा है कि भारत 2070 से पहले ही कार्बन न्यूट्रल होने के अपने महत्वाकांक्षी लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है। उन्होंने कहा कि यह बहुत महत्वपूर्ण है कि भारत जैसा बड़ा देश जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में अग्रणी भूमिका निभाए।
उन्होंने कहा कि लगभग 140 करोड़ की आबादी वाले देश पर निश्चित रूप से संसाधनों के उपयोग में विस्तार करने का असाधारण दबाव है। फिर भी भारत बहुत महत्वाकांक्षी उद्देश्यों को पूरा करने में कामयाब हो रहा है। उन्होंने सौर ऊर्जा का उपयोग करने और ग्रीन हाइड्रोजन के बारे में गंभीरता से विचार करने के लिए भारत की सराहना की।
लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि भारत के लिए कोयले को फेज आउट करना एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि कोयला यहां बहुत महत्वपूर्ण है।
भारत को 2030 तक सौर लक्ष्य पूरा करने के लिए हर साल 28 गीगावाट की जरूरत
मेरकॉम के अनुसार, भारत ने 2022 में रिकॉर्ड 13 गीगावाट सौर क्षमता स्थापित की। यह 2021 में 10.2 गीगावाट की तुलना में 27% अधिक है, लेकिन 2030 तक 280 गीगावाट के लक्ष्य को पूरा करने के लिए आवश्यक 28 गीगावाट का आधा भी नहीं है।
भारत की संचयी सौर क्षमता अब 63 गीगावाट हो गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2023 में डेवलपर्स सौर परियोजनाओं की उच्च लागत से जूझ रहे हैं, और 2021 में कोविड प्रतिबंधों के कारण लंबित परियोजनाओं को 2022 में पूरा किया गया और स्थापित क्षमता में जोड़ा गया।
2021 की तुलना में 2022 में रूफटॉप सोलर इंस्टालेशन में 3.7% की कमी आई है।
प्रोजेक्ट की समयसीमा का उल्लंघन करनेवाले नवीकरणीय डेवलपर्स होंगे ब्लैकलिस्ट
केंद्र सरकार ने कहा है कि तय समय में परियोजना न पूरी कर पाने पर नवीकरणीय ऊर्जा डेवलपर्स को 3 से 5 साल के लिए ब्लैकलिस्ट किया जाएगा।
सरकार ने निजी डेवलपर्स को निविदाएं जारी करने वाले सार्वजनिक उपक्रमों जैसे भारतीय सौर ऊर्जा निगम, एनटीपीसी और एनएचपीसी को दोषियों को ब्लैकलिस्ट करने का निर्देश दिया है।
नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने तीनों उपक्रमों से यह भी कहा है कि देरी के मामले में डेवलपर्स की बैंक गारंटी को एनकैश कर लिया जाए।
डेवलपर्स ने कहा कि हालांकि बैंक गारंटी को एनकैश करने का नियम है, लेकिन ब्लैकलिस्ट कर देना ज्यादती होगी।
मेरकॉम ने सूत्रों के हवाले से बताया कि घरेलू मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने जिन मॉड्यूल और मॉडलों की सूची (एएलएमएम) बनाई थी उनके उपलब्ध नहीं रहने के कारण भी परियोजनाओं में देरी हुई है। वहीं सरकार का कहना है कि उसने डेवलपर्स को कई एक्सटेंशन दिए और यहां तक कि एएलएमएम प्रतिबंध भी हटा दिए, लेकिन डेवलपर्स उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे।
ग्रीनवाशिंग पर नकेल: सेबी ने ग्रीन बॉन्ड जारी करने वालों के लिए नियम तय किए
भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने ग्रीनवाशिंग से बचने के लिए ग्रीन बॉन्ड जारी करने वालों के लिए मानदंड जारी किए हैं। ग्रीनवाशिंग ऐसे झूठे दावों को कहा जाता है जो किसी कंपनी के उत्पाद, सेवाएं या व्यवसाय को वास्तविकता से अधिक एनवायरमेंट फ्रेंडली बताते हैं।
सेबी ने कहा कि ग्रीन बॉन्ड जारी करने वाले भ्रामक जानकारी नहीं देंगे, ट्रेड-ऑफ को नहीं छिपाएंगे, या फिर ग्रीन प्रैक्टिसेस को हाईलाइट करने के लिए डेटा से छेड़छाड़ नहीं करेंगे। साथ ही बॉन्ड जारी करने वालों को इस बात की निगरानी करनी होगी कि प्रोजेक्ट अधिक सस्टेनेबिलिटी की दिशा में आगे बढ़े और सुनिश्चित करना होगा कि बॉन्ड के माध्यम से जुटाई गई धनराशि का उपयोग उन उद्देश्यों के लिए न किया जाए जो ‘ग्रीन डेट सिक्योरिटी’ की परिभाषा के अंतर्गत नहीं आते हैं।
योग्य परियोजनाओं में पवन, सौर और जैव ऊर्जा के साथ सार्वजनिक परिवहन, ऊर्जा दक्ष बिल्डिंगें, जैव विविधता संरक्षण, सस्टेनेबल वेस्ट मैनेजमेंट, और जलवायु परिवर्तन अनुकूलन, सतत भूमि उपयोग, सतत वन और कृषि, वनीकरण, और सतत जल प्रबंधन में निवेश शामिल हैं।
दिल्ली-आगरा और दिल्ली-जयपुर के बीच ई-हाईवे की पायलट परियोजनाओं की सफलता के बाद, अब केंद्र सरकार 12 राज्यों के 23 शहरों के बीच 5,500 किलोमीटर के मौजूदा राजमार्गों को अपग्रेड करते हुए इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए राष्ट्रीय राजमार्ग (एनएचईवी) बनाने की योजना को अंतिम रूप दे रही है।
पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप के अंतर्गत अपग्रेड किए जाने वाले इन ई-राजमार्गों पर इलेक्ट्रिक वाहनों के चार्जिंग पॉइंट एवं अन्य सुविधाओं के साथ 111 स्टेशन होंगे।
सबसे लंबा ई-हाइवे (558 किमी) बेंगलूरु और गोवा के बीच होगा जहां 11 स्टेशन होंगे और सबसे छोटा ई-हाइवे (111 किमी) अहमदाबाद से वडोदरा के बीच होगा जहां केवल 2 स्टेशन होंगे।
भारत सरकार की एजेंसी ईज ऑफ़ डूइंग बिज़नेस (ईओडीबी) द्वारा परीक्षण के तौर पर दिल्ली-आगरा और दिल्ली-जयपुर ई-हाइवे परियोजनाओं की सफलता के बाद यह पहल की गई है।
ईओडीबी की योजना के अनुसार प्रत्येक स्टेशन (1.5 से 2 एकड़ के बीच) पर चार्जिंग पॉइंट और बैटरी स्वैपिंग की सुविधा होगी। इसके अलावा, वहां लॉजिस्टिक्स सुविधाएं, रेस्तरां और टॉयलेट भी होंगे।
जियो-फेंसिंग, ब्रेकडाउन बैकअप और इलेक्ट्रिक कारों एवं बसों की खरीद पर भी निवेश किया जाएगा।
ईवी नीतियों के कार्यान्वयन में पिछड़ रहे राज्य, बेहतर तंत्र की आवश्यकता
देश के 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से 26 ने पिछले पांच वर्षों में अपनी ईवी नीतियां जारी की हैं। इनमे से 16 2020-2022 के बीच जारी की गईं हैं।
आंध्र प्रदेश, बिहार, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, तेलंगाना और दिल्ली ऐसे आठ राज्य हैं, जिन्होंने अक्टूबर 2020 से पहले अपनी नीतियां जारी कीं, जो दो साल या उससे अधिक समय से प्रभावी हैं।
क्लाइमेट ट्रेंड्स ने सभी राज्यों की ईवी नीतियों की व्यापकता का अध्ययन किया और पाया कि उपरोक्त आठ राज्यों में से कोई भी ईवी के प्रयोग, चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर, या निवेश से संबंधित अपने लक्ष्यों को पूरा करने के मार्ग पर नहीं है।
महाराष्ट्र, हरियाणा, दिल्ली और उत्तर प्रदेश की नीतियां सर्वाधिक व्यापक हैं, जबकि अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, हिमाचल प्रदेश, लद्दाख, केरल और उत्तराखंड की सबसे कम।
इसके आलावा, केवल नौ राज्यों ने नई आवासीय इमारतों, कार्यालयों, पार्किंग स्थलों, मॉल आदि में चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर स्थापित करना अनिवार्य किया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्यों ने अपने निर्धारित लक्ष्यों की तुलना में काफी कम प्राप्त किया है।
उदाहरण के लिए, मध्य प्रदेश का लक्ष्य है कि 2026 तक सभी नए पंजीकृत वाहनों में से 25% इलेक्ट्रिक हों, लेकिन इसकी वर्तमान पहुंच 2.2% है। दिल्ली में 2024 तक 25% इलेक्ट्रिक वाहनों के लक्ष्य के मुकाबले फ़िलहाल 7.2% पर है।
कई राज्यों में इलेक्ट्रिक बसों की संख्या भी नीतिगत लक्ष्यों से काफी कम है।
लांच हुई सोडियम-आयन बैटरी पर चलने वाली दुनिया की पहली इलेक्ट्रिक कार
चीन के ईवी निर्माता जेएसी ने कम लागत वाली सोडियम-आयन बैटरी संचालित दुनिया की पहली इलेक्ट्रिक कार (ईवी) लांच की है, इकोनॉमिक टाइम्स ने बताया।
यह बैटरी भविष्य में ईवी की लागत को 10% तक कम करने में सहायक हो सकती है।
चूंकि सोडियम-आयन बैटरी में सस्ते कच्चे माल का उपयोग होता है, इसलिए यह ईवी निर्माताओं को वर्तमान तकनीकों का विकल्प प्रदान कर सकती है, जो मुख्य रूप से लिथियम और कोबाल्ट का उपयोग करते हैं।
जेएसी की कर में प्रयुक्त 25 किलोवाट ऑवर की इस बैटरी को एक बार चार्ज करने पर 250 किमी तक यात्रा की जा सकती है।
लिथियम-आयन के बनिस्बत सोडियम-आयन बैटरी का घनत्व कम होता है। यह बैटरियां जल्दी चार्ज होती हैं और कम तापमान में अधिक दक्ष होती हैं।
भारत में अगले तीन सालों में 25,000 ईवी चलाएगी ऊबर
ऊबर टेक्नोलॉजीस ने कहा है कि वह टैक्सी शेयरिंग सेवा के लिए भारत में इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) का प्रयोग करेगी। कंपनी का यह कदम सार्वजनिक और साझा परिवहन में ईवी के अधिक इस्तेमाल के लिए भारत सरकार के प्रयासों के बीच आया है।
कंपनी अपने कारों के बेड़े में तीन वर्षों में 25,000 ईवी शामिल करेगी।
फिर भी, ऊबर के 300,000 वाहनों के सक्रिय बेड़े के सामने यह संख्या छोटी है।
ऊबर ने 2040 तक भारत सहित कई देशों में 100% सेवाएं शून्य-उत्सर्जन इलेक्ट्रिक वाहनों से देने का लक्ष्य निर्धारित किया है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक अप्रैल-मई 2022 के दौरान, परिवहन और घरेलू ऊर्जा जरूरतों के लिए इस्तेमाल की जानेवाली जीवाश्म ईंधन से संचालित वस्तुओं का भारत की वार्षिक मुद्रास्फीति दर में लगभग 20% का योगदान रहा। कैम्ब्रिज इकोनोमेट्रिक्स द्वारा प्रकाशित ‘फॉसिल फ्यूल प्राइसेज एंड इन्फ्लेशन इन इंडिया’ रिपोर्ट के अनुसार, इस अवधि के दौरान भारत की वार्षिक मुद्रास्फीति दर 7-8% थी। रिपोर्ट के अनुसार, जनवरी 2021 और अगस्त 2022 के बीच देश में अखिल उपभोक्ता मूल्य, या ओवरआल कनज्यूमर प्राइस (12%), की तुलना में ईंधन और ऊर्जा की कीमतें लगभग पांच गुना तेजी से (57%) बढ़ीं।
इसका असर लोगों के खर्चों में देखने को मिला।
उदाहरण के लिए, दिल्ली क्षेत्र में परिवारों ने 2021 की तुलना में 2022 में ईंधन और बिजली पर 25% अधिक खर्च किया, और 2020 की तुलना में लगभग 50% अधिक। ग्रामीण परिवारों के लिए यह संख्या और भी बड़ी है, क्योंकि उनकी आय के अनुपात में उनका ऊर्जा खर्च ज़्यादा है।
अमीर देशों के मुकाबले अधिक तेजी से कोल फेज आउट करें विकासशील देश: आईपीसीसी
नेचर पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन में कहा गया है कि धरती की तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री तक सीमित रखने के लिए एनर्जी ट्रांज़िशन के एक आम मॉडल में यह अपेक्षा की जाती है कि भारत और चीन जैसे देश कोयले का प्रयोग इतनी तेजी से कम करें जितना अबतक किसी देश ने नहीं किया।
ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक कैसे सीमित रखा जाए, इस पर काम करने के लिए वैज्ञानिक इंटीग्रेटेड असेसमेंट मॉडल बनाते हैं। इन मॉडलों में बताया जाता है कि कितना जंगल बचाया जाना चाहिए, परिवहन में इलेक्ट्रिक वाहनों का इस्तेमाल कितनी जल्दी किया जाना चाहिए और जीवाश्म ईंधन का उपयोग कितनी तेजी से बंद होना चाहिए आदि।
हालांकि यह मॉडल जितनी तेजी से भारत और चीन जैसे देशों से कोयले को फेज आउट करने की अपेक्षा करते हैं वह संभव नहीं है। वहीं यह मॉडल अमीर देशों में अधिक उत्पादित और उपयोग किए जाने वाले तेल और गैस जैसे ईंधनों में बहुत धीमी कटौती की मांग करते हैं।
जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) की वैज्ञानिक रिपोर्ट में इन मॉडलों पर ज़ोर दिया गया है, और दुनिया भर में नीतियां बनाने में इनका उपयोग किया जाता है।
रिपोर्ट के मुख्य लेखक ग्रेग मुटिट ने कहा कि यह मॉडल कनाडा और फ्रांस की तुलना में भारत और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों से ज्यादा उम्मीदें रखते हैं, और यह बड़ी चिंता की बात है।
आईओसी सभी रिफाइनरियों में हरित हाइड्रोजन संयंत्र स्थापित करेगी
भारत की सबसे बड़ी तेल कंपनी इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन (आईओसी) अपनी सभी रिफाइनरियों में हरित हाइड्रोजन संयंत्र स्थापित करेगी।
अपने ऑपरेशंस में 2046 तक नेट-जीरो उत्सर्जन प्राप्त करने के लिए आईओसी 2 लाख करोड़ रुपए की ग्रीन ट्रांज़िशन योजना पर काम कर रही है।
इस निवेश से रिफाइनरियों में हाइड्रोजन इकाईयां स्थापित की जाएंगी, दक्षता में सुधार होगा और नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता में वृद्धि होगी।
आईओसी ने हरित हाइड्रोजन का उत्पादन करने के लिए नवीकरणीय स्रोतों जैसे सौर आदि से उत्पन्न बिजली का उपयोग करने की योजना बनाई है। कंपनी 2025 तक 2,000 करोड़ रुपए की लागत से अपनी पानीपत ऑयल रिफाइनरी में हरित हाइड्रोजन इकाई स्थापित करेगी जो हर साल 7,000 टन ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन करेगी।
हिंडनबर्ग के बाद अडानी की मुश्किलें नहीं हो रही खत्म
अडानी समूह के अध्यक्ष गौतम अडानी ने सरकारी कंपनी पावर ट्रेडिंग कॉरपोरेशन में हिस्सेदारी के लिए बोली नहीं लगाने का निर्णय लिया है।
कुछ समय पहले ही अडानी पावर का ₹7,017 करोड़ का डीबी पावर लिमिटेड के अधिग्रहण का सौदा रद्द कर दिया गया था। कंपनी के अधिग्रहण के समझौते की घोषणा अगस्त 2022 में की गई थी। सिर्फ यही नहीं, मल्टीनेशनल जीवाश्म ईंधन कंपनी टोटलएनर्जीस ने भी अडानी ग्रुप के 50 बिलियन डॉलर के हाइड्रोजन प्रोजेक्ट में अपने निवेश को ठंडे बस्ते में डाल दिया है।
हिंडनबर्ग रिपोर्ट के बाद से अडानी समूह की कंपनियों ने अपना आधा बाजार मूल्य का आधा हिस्सा गंवा दिया है और समूह को लोन की शर्तों को पूरा करने के लिए अधिक शेयर गिरवी रखने पड़े हैं। इसने अपनी प्रमुख फर्म, अडानी एंटरप्राइजेज लिमिटेड में फॉलो-ऑन शेयर बिक्री को भी बंद कर दिया है।