एक रिपोर्ट के मुताबिक अप्रैल-मई 2022 के दौरान, परिवहन और घरेलू ऊर्जा जरूरतों के लिए इस्तेमाल की जानेवाली जीवाश्म ईंधन से संचालित वस्तुओं का भारत की वार्षिक मुद्रास्फीति दर में लगभग 20% का योगदान रहा। कैम्ब्रिज इकोनोमेट्रिक्स द्वारा प्रकाशित ‘फॉसिल फ्यूल प्राइसेज एंड इन्फ्लेशन इन इंडिया’ रिपोर्ट के अनुसार, इस अवधि के दौरान भारत की वार्षिक मुद्रास्फीति दर 7-8% थी। रिपोर्ट के अनुसार, जनवरी 2021 और अगस्त 2022 के बीच देश में अखिल उपभोक्ता मूल्य, या ओवरआल कनज्यूमर प्राइस (12%), की तुलना में ईंधन और ऊर्जा की कीमतें लगभग पांच गुना तेजी से (57%) बढ़ीं।
इसका असर लोगों के खर्चों में देखने को मिला।
उदाहरण के लिए, दिल्ली क्षेत्र में परिवारों ने 2021 की तुलना में 2022 में ईंधन और बिजली पर 25% अधिक खर्च किया, और 2020 की तुलना में लगभग 50% अधिक। ग्रामीण परिवारों के लिए यह संख्या और भी बड़ी है, क्योंकि उनकी आय के अनुपात में उनका ऊर्जा खर्च ज़्यादा है।
अमीर देशों के मुकाबले अधिक तेजी से कोल फेज आउट करें विकासशील देश: आईपीसीसी
नेचर पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन में कहा गया है कि धरती की तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री तक सीमित रखने के लिए एनर्जी ट्रांज़िशन के एक आम मॉडल में यह अपेक्षा की जाती है कि भारत और चीन जैसे देश कोयले का प्रयोग इतनी तेजी से कम करें जितना अबतक किसी देश ने नहीं किया।
ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक कैसे सीमित रखा जाए, इस पर काम करने के लिए वैज्ञानिक इंटीग्रेटेड असेसमेंट मॉडल बनाते हैं। इन मॉडलों में बताया जाता है कि कितना जंगल बचाया जाना चाहिए, परिवहन में इलेक्ट्रिक वाहनों का इस्तेमाल कितनी जल्दी किया जाना चाहिए और जीवाश्म ईंधन का उपयोग कितनी तेजी से बंद होना चाहिए आदि।
हालांकि यह मॉडल जितनी तेजी से भारत और चीन जैसे देशों से कोयले को फेज आउट करने की अपेक्षा करते हैं वह संभव नहीं है। वहीं यह मॉडल अमीर देशों में अधिक उत्पादित और उपयोग किए जाने वाले तेल और गैस जैसे ईंधनों में बहुत धीमी कटौती की मांग करते हैं।
जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) की वैज्ञानिक रिपोर्ट में इन मॉडलों पर ज़ोर दिया गया है, और दुनिया भर में नीतियां बनाने में इनका उपयोग किया जाता है।
रिपोर्ट के मुख्य लेखक ग्रेग मुटिट ने कहा कि यह मॉडल कनाडा और फ्रांस की तुलना में भारत और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों से ज्यादा उम्मीदें रखते हैं, और यह बड़ी चिंता की बात है।
आईओसी सभी रिफाइनरियों में हरित हाइड्रोजन संयंत्र स्थापित करेगी
भारत की सबसे बड़ी तेल कंपनी इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन (आईओसी) अपनी सभी रिफाइनरियों में हरित हाइड्रोजन संयंत्र स्थापित करेगी।
अपने ऑपरेशंस में 2046 तक नेट-जीरो उत्सर्जन प्राप्त करने के लिए आईओसी 2 लाख करोड़ रुपए की ग्रीन ट्रांज़िशन योजना पर काम कर रही है।
इस निवेश से रिफाइनरियों में हाइड्रोजन इकाईयां स्थापित की जाएंगी, दक्षता में सुधार होगा और नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता में वृद्धि होगी।
आईओसी ने हरित हाइड्रोजन का उत्पादन करने के लिए नवीकरणीय स्रोतों जैसे सौर आदि से उत्पन्न बिजली का उपयोग करने की योजना बनाई है। कंपनी 2025 तक 2,000 करोड़ रुपए की लागत से अपनी पानीपत ऑयल रिफाइनरी में हरित हाइड्रोजन इकाई स्थापित करेगी जो हर साल 7,000 टन ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन करेगी।
हिंडनबर्ग के बाद अडानी की मुश्किलें नहीं हो रही खत्म
अडानी समूह के अध्यक्ष गौतम अडानी ने सरकारी कंपनी पावर ट्रेडिंग कॉरपोरेशन में हिस्सेदारी के लिए बोली नहीं लगाने का निर्णय लिया है।
कुछ समय पहले ही अडानी पावर का ₹7,017 करोड़ का डीबी पावर लिमिटेड के अधिग्रहण का सौदा रद्द कर दिया गया था। कंपनी के अधिग्रहण के समझौते की घोषणा अगस्त 2022 में की गई थी। सिर्फ यही नहीं, मल्टीनेशनल जीवाश्म ईंधन कंपनी टोटलएनर्जीस ने भी अडानी ग्रुप के 50 बिलियन डॉलर के हाइड्रोजन प्रोजेक्ट में अपने निवेश को ठंडे बस्ते में डाल दिया है।
हिंडनबर्ग रिपोर्ट के बाद से अडानी समूह की कंपनियों ने अपना आधा बाजार मूल्य का आधा हिस्सा गंवा दिया है और समूह को लोन की शर्तों को पूरा करने के लिए अधिक शेयर गिरवी रखने पड़े हैं। इसने अपनी प्रमुख फर्म, अडानी एंटरप्राइजेज लिमिटेड में फॉलो-ऑन शेयर बिक्री को भी बंद कर दिया है।
दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
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