बिगड़ैल मौसम के साथ हुई नये साल की शुरुआत

Newsletter - January 15, 2022

मनमौजी शुरुआत: साल के शुरु में बिगड़ैल मौसम ने किसानों के साथ मौसमविज्ञानियों के लिये मुसीबत खड़ी कर दी। फोटो: gaon connection

नये साल की शुरुआत शीतलहर के साथ, बेमौसमी बारिश से नुकसान

देश में नये साल की शुरुआत में मौसम ने सबको उलझन में डाल दिया। दिल्ली, यूपी और राजस्थान समेत उत्तर भारत के कई हिस्सों में शीतलहर का प्रकोप रहा। उत्तर पूर्व के साथ पश्चिमी और दक्षिण भारत में बेमौसमी बारिश हुई। मंगलवार को पश्चिमी मध्य प्रदेश, विदर्भ, हरियाणा और चंडीगढ़ के साथ पूर्वी मध्य प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली में न्यूनतम तापमान सामान्य से नीचे रहा। तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल और आंध्र प्रदेश में बारिश होने की संभावना है। बिहार, झारखंड, असम मेघालय और छत्तीसगढ़ में भी बारिश हो सकती है।  

मुंबई और महाराष्ट्र के अन्य हिस्सों में भी बेमौसमी बारिश हुई और मुंबई में एक दशक का सबसे कम न्यूनतम तापमान रिकॉर्ड (13.2 डिग्री) किया गया। मौसम विभाग की एक स्टडी में यह पाया गया है कि भारत में लू के मुकाबले शीतलहर से 76 गुना अधिक लोग मर रहे हैं। 2020 में कुल 152 लोगों की मौत हुईं। साल 2020 में शीतलहर से 152 लोग मरे जबकि लू से 2 लोगों के मरने की पुष्टि हुई। 

रूस से लगे आर्कटिक की ऊंचाइयों में बर्फ कम होने की रफ्तार दुगनी हुई 

एक नये अध्ययन से पता चला है कि रूस के ऊंचे आर्कटिक क्षेत्र में बर्फ दुगनी रफ्तार पिघल रही है। शोधकर्ताओं ने साल 2010 से 2017 तक के आंकड़ों के आधार पर यह बताया है 93% ग्लेशियरों की सतह में बढ़ोतरी की रफ्तार बदली है। यह गणना की गई है कि हर साल 2200 करोड़ टन बर्फ पिघल रही है जो यहां पर समुद्र सतह में  0.06 मिलीमीटर की बढ़ोतरी करेगा। 

आइडा चक्रवात 2021 की सबसे अधिक वित्तीय क्षति करने वाली क्लाइमेट इवेंट 
अंतरराष्ट्रीय एनजीओ क्रिश्चन एड के एक अध्ययन में पता चला है कि अमेरिका में आये चक्रवात आइडा के कारण 6500 करोड़ रुपये से अधिक का वित्तीय नुकसान हुआ। क्रिश्चन एड ने इस स्टडी में साल की 10 सबसे अधिक वित्तीय क्षति पहुंचाने वाली क्लाइमेट इवेंट्स की सूची बनाई है। माली नुकसान के हिसाब से आइडा के बाद यूरोप की बाढ़ दूसरे नंबर पर रही जिससे 4300 करोड़ रुपये के बराबर नुकसान हुआ।   भारत पर असर डालने वाली दो घटनायें जो इस लिस्ट में हैं वह हैं ताउते और यास तूफान। ताउते से कुल 150 करोड़ रुपये के बराबर क्षति हुई तो यास तूफान ने 300 करोड़ की क्षति हुई।

संकट में अरण्य: देश के सबसे समृद्ध वनों में से एक हसदेव अरण्य पर संकट सरकार के लिये कोई बड़ा मुद्दा नहीं है। फोटो: Mongabay

केंद्र ने दी छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य में कोयला खनन को मंजूरी

केंद्र द्वारा छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य में 1,136 हेक्टेयर भूमि पर खनन की अनुमति दिया जाना स्थानीय निवासी परेशान हैं और इसका विरोध कर रहे हैं। हसदेव अरण्य देश में सबसे पुराने वनों (ओल्ड-ग्रोथ फारेस्ट) में हैं और विशाल क्षेत्र में फैले आखिरी बचे जंगल हैं। पर्यावरण मंत्रालय की वन सलाहकार समिति ने 23 दिसंबर को पारसा पूर्व और केते बसान (पीईकेबी) ब्लॉक में खनन के विस्तार को मंजूरी दे दी। पहले आवंटित 762 हेक्टेयर में कोयला भंडार के अपेक्षा से अधिक जल्दी समाप्त होने के बाद इस खनन को बढ़ाने की मांग की गई थी।

केन-बेतवा रिवर लिंकिंग परियोजना से डूब जाएगा पन्ना टाइगर रिजर्व का बड़ा हिस्सा: अध्ययन

एक नए अध्ययन ने पाया है कि केन-बेतवा रिवर इंटरलिंकिंग प्रोजेक्ट (KBRIL), जिसे हाल ही में केंद्र से हरी झंडी मिली है, मध्य प्रदेश में पन्ना टाइगर रिजर्व के एक बड़े हिस्से को जलमग्न कर देगा। अध्ययन के अनुसार, इससे क्षेत्र में मौजूद बाघों ही नहीं बल्कि उनके शिकार अन्य जानवर भी नहीं रहेंगे, जिसमें चीतल और सांभर शामिल हैं।

इस परियोजना का उद्देश्य मध्य प्रदेश की केन नदी से अतिरिक्त जल को उत्तर प्रदेश की बेतवा नदी तक पहुँचाना है ताकि सूखाग्रस्त बुंदेलखंड को पानी उपलब्ध कराया जा सके। विशेषज्ञों का अनुमान है कि इस परियोजना के कारण अभयारण्य के क्रिटिकल टाइगर हैबिटैट (सीटीएच) के 58.03 वर्ग किमी (10.07%) का नुकसान होगा।  पिछले साल, कैबिनेट ने 44,605 करोड़ रुपए की लागत से परियोजना के वित्तपोषण और कार्यान्वयन को मंजूरी दी थी।

‘इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट’ रिपोर्ट में जंगलों का क्षेत्रफल बढ़ा

भारतीय फॉरेस्ट सर्वे (एसएसआई) द्वारा हर दो साल में पेश की जाने वाली “इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट” रिपोर्ट में कहा गया है कि 2019 के मुकाबले 2021 में भारत की हरियाली 2261 वर्ग किलोमीटर बढ़ी है। इसमें फॉरेस्ट कवर और ट्री कवर दोनों शामिल है। केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने गुरुवार को रिपोर्ट जारी की और कहा कि कुल फॉरेस्ट कवर 1540 वर्ग किलोमीटर बढ़ा और ट्री कवर में 721 वर्ग किलोमीटर की बढ़ोतरी हुई है। जिन राज्यों में सबसे अधिक जंगल बढ़े वो हैं – आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, ओडिशा, कर्नाटक और झारखंड शामिल हैं। उतत्र पूर्व के राज्यों में फॉरेस्ट कवर घटा है उनमें अरुणाचल प्रदेश इस मामले में सबसे ऊपर है। 

भूस्खलन के बाद भारत के हरित न्यायालय ने पैनल को दिए दादम खदान में अतिक्रमण की जांच के आदेश

राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) ने इस साल 1 जनवरी को भूस्खलन में पांच लोगों की मौत के बाद दादम खदान में अतिक्रमण और पर्यावरण को होने वाली हानि की जांच करने के लिए आठ-सदस्यीय पैनल का गठन किया है। उस स्थान पर खनन गतिविधियों पर एनजीटी द्वारा लगाए गए दो महीने के प्रतिबंध को हटाने के बाद खनन फिर से शुरू हुआ और एक दिन बाद ही भूस्खलन हो गया था। 

भारत ने पर्यावरण अनुमति के लिए औसत समय घटाकर 90 दिनों से कम किया

पर्यावरण मंत्रालय ने पर्यावरण संबंधी अनुमति के लिए औसत समय को घटाकर 90 दिनों से कम कर दिया है। 2019 में यह 150 दिनों से अधिक था। मंत्रालय ने कहा कि कुछ क्षेत्रों में यह मंजूरी 60 दिनों से कम समय में भी मिल सकती है। एक बयान में मंत्रालय ने यह भी कहा कि उसने 2021 में पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) अधिसूचनाओं के माध्यम से 7,787 परियोजनाओं को पर्यावरण मंजूरी दी थी।

जलवायु वित्त को बढ़ावा देने के लिए कार्बन सीमा कर से मिले राजस्व का उपयोग करें: यूरोपीय संघ के सांसद

यूरोपीय संघ के एक सांसद ने पिछड़े देशों को अपने प्रदूषणकारी उद्योगों के विकार्बनीकरण में सहायता के लिए कार्बन सीमा कर (कार्बन बॉर्डर टैक्स) से मिले राजस्व का उपयोग करने का सुझाव दिया है। उदारवादी लेफ्ट सोच वाले डच सांसद मोहम्मद चहिम ने यूरोपीय संसद में एक मसौदा रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें कहा गया कि यह राजस्व कम आय वाले देशों के साथ साझा किया जाए, जो यूरोपीय संघ में आयातित कार्बन-गहन वस्तुओं पर प्रस्तावित उगाही से प्रभावित होंगे। चहिम ने वर्तमान में तय की गई 2026 की समय सीमा से पहले ही धन एकत्र की  शुरूआत का प्रस्ताव भी रखा। रिपोर्ट पर फरवरी की शुरुआत में संसद में बहस होगी।

प्रदूषण बरकरार: नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम की पिछले 3 साल की रिपोर्ट अप्रभावी दिखती है। फोटो: newsweek

नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम के 3 साल बाद भी हालात में खास फर्क नहीं

नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (एनसीएपी) को शुरु हुये 3 साल पूरे हो गये हैं। यह प्रोग्राम देश के 132 शहरों में हवा को साफ करने के मकसद से शुरू किया गया। तीन साल बाद ज़मीन पर नहीं के बराबर बदलाव दिख रहा है। सरकार ने 10 जनवरी 2019 को इस प्रोग्राम की घोषणा की थी। सरकार के एयर क्वॉलिटी डाटा का विश्लेषण बताता है कि शहरों में PM 2.5 और PM 10 के स्तर में मामूली कमी है। कहीं कहीं तो यह बढ़ा भी है।

क्लीन एयर प्रोग्राम का लक्ष्य साल 2024 तक इन शहरों में PM 2.5 और PM 10 के स्तर को 20 से 30 प्रतिशत (2017 के प्रदूषण को आधार मानते हुये) कम करना है। पर्यावरण मंत्रालय के साथ केंद्रीय प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड पर इस कार्यक्रम को लागू करने का ज़िम्मा है। राज्य प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड का काम है कि वो अपने राज्यों में सिटी एक्शन प्लान बनायें।

निरंतर मॉनीटरिंग के लिये लगाये गये CAAQMS से उपलब्ध डाटा का  वेबसाइट NCAP Tracker ने विश्लेषण किया और पाया कि 132 में से केवल 36 शहर लक्ष्य में खरे उतरे। वाराणसी के प्रदूषण में सबसे अधिक गिरावट दर्ज की गई।

सालाना PM 2.5 प्रदूषण के सालाना औसत के हिसाब से 2019 में भी गाज़ियाबाद सबसे प्रदूषित (नंबर 1) और 2021 में भी रहा। हालांकि 2020 में लॉकडाउन के कारण पैदा स्थितियों से लखनऊ के बाद वह दूसरे नंबर पर प्रदूषित रहा। गाज़ियाबाद PM 10 के स्तर के हिसाब से भी नंबर एक पर है।

PM 2.5 के हिसाब से 2019 में विजयवाड़ा सबसे कम प्रदूषित शहरों में था लेकिन पर्याप्त डाटा उपलब्ध न होवे के कारण उसने कितनी तरक्की की यह पता नहीं लग सका है। मुंबई समेत महाराष्ट्र के कई शहरों में पिछले 3 साल में  प्रदूषण बढ़ा है। 

गाज़ियाबाद, नोयडा, मुरादाबाद, वाराणसी, जोधपुर, मंडी, गोविदगढ़ और हावड़ा जैसे शहर PM 2.5 औऱ PM 10 दोनों ही मामलों में 10 सबसे प्रदूषित शहरों में हैं। मुंबई समेत महाराष्ट्र के कई शहरों में पिछले 3 साल में प्रदूषण बढ़ा है। ज़्यादातर राज्यों ने इस कार्यक्रम  के तहत उपलब्ध कराये गये पैसे का बहुत छोटा अंश खर्च किया है। उत्तर प्रदेश जहां प्रदूषित शहरों की संख्या सबसे अधिक है वहां उपलब्ध 60 करोड़ का केवल 16 प्रतिशत ही खर्च हुआ। उधर महाराष्ट्र जहां एनसीएपी के तहत शामिल शहरों की संख्या सबसे अधिक है वहां भी उपलब्ध 51 करोड़ का केवल 8 प्रतिशत ही खर्च हुआ है।

सिर्फ 79 कोयला संयंत्रों को उत्सर्जन घटाने की तकनीक अपनाने के निर्देश, 517 को मिली राहत

केंद्र ने 79 कोयला बिजली संयंत्रों को दिसंबर 2021 के अंत तक सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में कटौती करने के लिए उपकरण लगाने को लिए कहा है, लेकिन 517 कोयला संयंत्रों को समय सीमा में विस्तार की अनुमति दी गई है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा ताप विद्युत संयंत्रों (थर्मल पावर प्लांट्स) के संशोधित वर्गीकरण के अनुसार यह 79 कोयला बिजली संयंत्र 10 लाख से अधिक आबादी वाले उन  शहरों में आते हैं जो पहले से ही प्रदूषित हैं। इन शहरों में दिल्ली, चेन्नई, कोटा, ग्रेटर मुंबई, नागपुर, विशाखापत्तनम और विजयवाड़ा शामिल हैं। इन शहरों को सीपीसीबी द्वारा ताप विद्युत संयंत्रों के संशोधित वर्गीकरण की श्रेणी ए में रखा गया है।

अप्रैल 2021 में पर्यावरण मंत्रालय द्वारा जारी किए गए नए नियमों के अनुसार नियमों को न मानने पर इन 79 कोयला संयंत्रों को जुर्माना देना होगा जो इस प्रकार है: 180 दिनों तक प्रति यूनिट बिजली उत्पादन पर 10 पैसे, 181 दिनों से 365 दिनों के बीच 15 पैसे और 366 दिनों के बाद प्रति यूनिट उत्पादन पर 20 पैसे। पहले के मानदंडों में नियमों को न मानने पर कोयला संयंत्रों को बंद करना आवश्यकता होता था। श्रेणी ए में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के 10 किलोमीटर के दायरे में आने वाले वह शहर हैं जिनकी आबादी दस लाख से अधिक हैं; श्रेणी बी के संयंत्र गंभीर रूप से प्रदूषित क्षेत्रों या नॉन-एटेनमेंट शहरों के 10 किलोमीटर के दायरे में हैं; शेष बिजली संयंत्र श्रेणी सी में हैं।

बिहार, पश्चिम बंगाल और ओडिशा में फिर बढ़ रहा प्रदूषण: सीएसई

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) के एक विश्लेषण के अनुसार पूर्वी भारतीय राज्यों बिहार, पश्चिम बंगाल, ओडिशा में वायु प्रदूषण फिर से बढ़ रहा है। पश्चिम बंगाल के एक बड़े औद्योगिक केंद्र दुर्गापुर की हवा 2021 में इस क्षेत्र में सबसे प्रदूषित थी, जिसका वार्षिक औसत PM2.5 स्तर 80 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर (μg/m3) था, इसके बाद मुजफ्फरपुर और पटना का नंबर रहा जिनका PM 2.5 का स्तर वार्षिक औसत क्रमश: 78 माइक्रोग्राम/घनमीटर और 73 माइक्रोग्राम/घन मीटर था।

सीएसई की रिपोर्ट में कहा गया है कि वार्षिक पीएम2.5 मापदंडों पर खरा उतरने के लिए दुर्गापुर को वार्षिक पीएम2.5 को 50% तक कम करने की जरूरत है। इसी प्रकार हावड़ा को 34%, आसनसोल को 32%, सिलीगुड़ी को 32% और कोलकाता को 28% कम करना होगा। अध्ययन में कहा गया है कि हल्दिया ने 2021 में सभी मानकों को  पूरा किया। बिहार में, मुजफ्फरपुर को मानक को पूरा करने के लिए वार्षिक औसत PM2.5 के स्तर में लगभग 50%, पटना को 45%, हाजीपुर को 33% और गया को 18% की कटौती करने की आवश्यकता है।

साफ ऊर्जा का जाल: कैबिनेट ने 20 गीगावॉट के संयंत्रों को ग्रिड से जोड़ने के लिये 161 करोड़ की योजना को मंज़ूरी दी है। फोटो: Shutterstock

भारत साफ ऊर्जा के संयंत्रों को ग्रिड से जोड़ने के लिये लगाएगा 161 करोड़ डॉलर

कैबिनेट ने सात राज्यों से 20 गीगावाट (GW) क्षमता वाली अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं को ग्रिड से जोड़ने के लिए पांच वर्षों में 1.61 बिलियन (161 करोड़) डॉलर की लागत से ट्रांसमिशन लाइन बनाने की योजना को मंजूरी दे दी है, रॉयटर्स ने बताया। केंद्र सरकार तथाकथित ग्रीन कॉरिडोर परियोजना के दूसरे चरण में ट्रांसमिशन लाइनों के विस्तार के लिए आवश्यक कुल 120 अरब रुपये के निवेश के लगभग एक तिहाई के बराबर वित्तीय सहायता प्रदान करेगी।

इस योजना से गुजरात, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल और आंध्र प्रदेश में परियोजनाओं के लिए लगभग 10,750 सर्किट किलोमीटर ट्रांसमिशन लाइनें जुड़ेंगी। भारत इस परियोजना के पहले चरण में 9,700 सर्किट किलोमीटर ट्रांसमिशन लाइनों का निर्माण कर रहा है जिसका काम इस साल पूरा होने वाला है।

आईसीआरए: वित्त वर्ष 2023 तक भारत की साफ ऊर्जा में होगी 16 गीगावाट की वृद्धि

रेटिंग एजेंसी आईसीआरए के अनुसार भारत की नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता वित्त वर्ष 2023 में 16 गीगावाट तक पहुँचने की उम्मीद है, जिसे 55 गीगावाट की आगामी परियोजनाओं के माध्यम से अत्यधिक प्रतिस्पर्धी टैरिफ के साथ प्राप्त किया जाएगा। नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता वृद्धि वित्त वर्ष 2021 में 7.4 गीगावाट से बढ़कर वित्त वर्ष 2023 में 12.5 गीगावाट हो सकती है।

2022-23 में नवीकरणीय (साफ) ऊर्जा क्षमता में वृद्धि मुख्यतया सौर ऊर्जा से होगी, जिसमें 12.5 GW फोटोवोल्टिक परियोजनाओं से प्राप्त होगा। पीवी पत्रिका के अनुसार पवन परियोजनाओं से 2.2 गीगावाट और हाइब्रिड प्लांट से 1.4 गीगावाट मिल सकता है। विशेषज्ञों ने बताया कि डेवलपर्स बजट के भीतर सौर मॉड्यूल बनाने में सक्षम हैं और नई स्वच्छ बिजली परियोजनाओं को व्यवहार्य बनाने के लिए आवश्यक है कि डेट फंडिंग की लागत 8.5 प्रतिशत से कम हो।

ब्रिज टू इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार भारत की अक्षय ऊर्जा क्षमता 2022 में 10 गीगावाट तक बढ़ सकती है, जो साल दर साल आधार पर 10% कम है।

राजस्थान ने कुसुम योजना के तहत 17 कृषि फीडरों का सौरीकरण करने के लिए बोलियां आमंत्रित की हैं    

राजस्थान डिस्कॉम जोधपुर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड (जेडीवीवीएनएल) ने नोसर और डेरा सबस्टेशन के 17 कृषि फीडरों के सौरीकरण के लिए बोलियां आमंत्रित की हैं। 8.57 मेगावाट सौर ऊर्जा परियोजनाओं और उनसे संबद्ध 33 केवी लाइन की पहली निविदा प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान (पीएम-कुसुम) कार्यक्रम के घटक सी के तहत नोसर सबस्टेशन के 12 कृषि फीडरों के सौरीकरण के लिए है। यह परियोजनाओं 262 कृषि उपभोक्ताओं को कवर करेंगी। परियोजना की अनुमानित लागत ₹299.95 मिलियन (~$4.05 मिलियन) है।

विजेता को प्रदर्शन बैंक गारंटी के रूप में ₹4.285 मिलियन (~$57,808) की राशि देनी होगी। डेवलपर को स्थापना की अनुमानित लागत के 30% पर केंद्रीय वित्तीय सहायता मिलेगी। दूसरी निविदा में 188 कृषि उपभोक्ताओं के लिए जोधपुर में डेरा सबस्टेशन के पांच 11 केवी फीडरों को सौरीकृत करने की बोलियां शामिल हैं। 

इस परियोजना की अनुमानित लागत ₹120.75 मिलियन (~$1.63 मिलियन) है। सफल बोली लगाने वाले को प्रदर्शन बैंक गारंटी के रूप में  ₹1.725 मिलियन (~$23,272) जमा करने होंगे।

हाइपरचार्जिंग: इलैक्ट्रिक मोबिलिटी को मज़बूत करने के लिये ओला 400 शहरों में कुल 4000 ईवी चार्जर लगा रही है पर क्या यह इरादा हक़ीक़त में बदलेगा। फोटो: indyablog.com

ओला का दावा: भारत में दुनिया का सबसे घना e2W चार्जिंग नेटवर्क

भारत की मोबिलिटी फर्म ओला का इरादा इस साल 2022 में  “हाइपरचार्जर” नेटवर्क बिछाने का है। इस मुहिम के तहत कंपनी देश में कुल 4000 e2W चार्जर लगाने जा रही हैI ओला ने कहा है कि वह भारत पेट्रोलियम के पेट्रोल पम्पों और रिहायशी क्षेत्रों को इस नेटवर्क के लिये इस्तेमाल करेगी ताकि अधिक से अधिक लोग आसानी से इसका इस्तेमाल कर सकें। ओला ने अपने बैटरी टू-व्हीलर S1 और S1 प्रो e2W के लॉन्च के बाद ये ऐलान किया है। कंपनी का कहना है कि साल 2022 के आखिर तक इनका मुफ्त इस्तेमाल हो सकेगा। 

फर्म के सीईओ ने ट्वीट कर कहा कि ओला का मकसद दुनिया का सबसे विशाल और घना टू-व्हीलर चार्जिंग नेटवर्क बनाने का है। इसके तहत देश के 400 शहरों में दुपहिया वाहनों की चार्जिंग के लिये 1 लाख चार्जिंग स्टेशन लगाये जायेंगे। दावा बड़ा है लेकिन देखना होगा कि ओला इस ऐलान को वास्तविकता में बदल पाती है या नहीं। 

भारत की पहली लीथियम रिफायनरी गुजरात में 

भारत की पहली लीथियम रिफायनरी गुजरात में लगेगी। मणिकरन लीथियम प्राइवेट लिमिटेड कंपनी ने इसके लिये गुजरात सरकार के साथ एमओयू किया है। इस रिफायनरी में लीथियम हाइड्रोक्साइड बनाया जायेगा जो लीथियम आयन बैटरियों के उत्पादन में इस्तेमाल होता है। यह रिफायनरी 2025-26 में लग जायेगी और माना जा रहा है कि इससे प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से 1000 नौकरियां पैदा होंगी। 

बैटरी वाहनों की दुनिया में उतरेगी सोनी, ऑडी ने लगाये 1800 करोड़ पाउण्ड 

कन्जूमर इलैक्ट्रोनिक्स कंपनी सोनी ने बैटरी वाहन क्षेत्र में आने का फैसला किया है और सोनी मोबिलिटी के नाम से अपना बैटरी वाहन डिवीज़न खड़ा करने का ऐलान किया है। कम्पनी ने लॉस वेगास में उपभोक्ता शो में अपनी इलैक्ट्रिक कार का प्रोटोटाइप प्रदर्शित किया। कंपनी अपनी बैटरी कार को कई इलैक्ट्रोनिक फीचरों से सुसज्जित करेगी जिसमें 360 डिग्री सेंसर और LiDAR के साथ 5 जी कनेक्टिविटी होगी जिससे कार सेल्फ ड्राइविंग मोड में चल सकेगी।  

इस बीच ऑडी ने ई-मोबिलिटी में कुल 1800 करोड़ पाउण्ड निवेश का फैसला किया है। कम्पनी का इरादा 2033 से सिर्फ इलैक्ट्रिक वाहन ही बनाने का है। यूरोप में बहुत लोकप्रिय यह लक्सरी ब्रान्ड (जो पोशे भी बनाती है) 2025 तक 24 देशों में चार्जिंग स्टेशन लगाने के लिये कुल  70 करोड़ पाउण्ड का निवेश करेगी। 

ट्रम्प के आदेश रद्द: बाइडेन ने अलास्का में ड्रिलिंग के ट्रम्प द्वारा जारी कई आदेश निरस्त करने का फैसला किया है। फोटो: Common Dreams

कार्बन कैप्चर रिकॉर्ड से संदेह के घेरे में दुनिया का पहला कोयला-सीसीएस संयंत्र

एस्टेवन, सस्केचेवान (कनाडा) के पास बाउंड्री डैम पावर स्टेशन के खराब प्रदर्शन और कई बार होने वाले ब्रेकडाउन ने कोयला बिजलीघरों के लिए अपनी तरह की पहली इकाई में सीसीएस (कार्बन कैप्चर और स्टोरेज) टेक्नोलॉजी की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े किए हैं। 2014 में बने इस सीसीएस प्लांट ने 2020 के मुकाबले 2021 में 43% कम कार्बन कैप्चर किया। समस्या के मूल में थीं CO2 कंप्रेशर मोटर की विफलताएं, जिनके कारण प्लांट एक समय में हफ्तों तक ठप रहा। हालांकि ताज़ा जानकारी के अनुसार इन समस्याओं का हल कर लिया गया है, लेकिन आलोचकों ने ऐसी तकनीक में निवेश करने के खतरों की ओर इशारा किया है जो अब तक सीसीएस की तरह ही खराब प्रदर्शन कर रही है। दिलचस्प बात यह है कि इन आलोचकों में से एक हैं अमेरिकी सीनेटर जो मैनचिन — जो हाल ही में जलवायु योजना को पटरी से उतारने राष्ट्रपति जो बाइडेन की आलोचना करते रहे हैं।

इस बीच, रॉयल डच शेल ने मलेशिया के पेट्रोनास के साथ देश में एक अपतटीय (ऑफशोर) सीसीएस इकाई बनाने के लिए समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं। 

अलास्का में ड्रिलिंग: ट्रम्प द्वारा जारी परमिट को रद्द करेगी बाइडेन सरकार

जो बाइडेन सरकार ने घोषणा की है कि वह अलास्का में राष्ट्रीय पेट्रोलियम रिजर्व, या एनपीआर-ए सहित अलास्का में संरक्षित भूमि के विशाल क्षेत्रों में तेल और गैस ड्रिलिंग के लिए ट्रम्प-युग के परमिट को रद्द कर देगी। यह परमिट पिछले प्रशासन द्वारा जल्दबाजी में प्रदान किए गए थे, जिसमें तेशेकपुक झील जैसे संरक्षित क्षेत्र भी शामिल हैं, जो स्थानीय वन्यजीवों और प्रवासी पक्षियों के लिए एक महत्वपूर्ण बसेरा है। इन क्षेत्रों को 1980 के दशक में रीगन प्रशासन से लेकर सभी सरकारों द्वारा संरक्षित किया गया था, और यह घोषणा ‘वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों के हित में अमेरिका की सार्वजनिक भूमि और पानी पर संतुलन सुनिश्चित करने’ के लिए बाइडेन सरकार के प्रयासों का हिस्सा है।

अलास्का में ही हाल के वर्षों में तेल और गैस ड्रिलिंग की गतिविधियों में कथित तौर पर कमी आई है और कहा जाता है कि अधिकांश ड्रिलर अमेरिका के दक्षिणी भाग में पर्मियन बेसिन पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।