अलविदा 2021: जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण की ख़बरों का सालाना लेखाजोखा

Newsletter - December 30, 2021

आपदायें और चेतावनी: साल 2021 ने दिखा दिया कि आपदायें प्राकृतिक से अधिक मानव जनित हैं। फोटो: Mongabay India

बाढ़, चक्रवाती तूफान और जंगलों की आग, एक्सट्रीम वेदर की मार छाई रही 2021

साल 2021 की शुरुआत स्पेन में रिकॉर्ड शीतलहर के साथ हुई। स्पेन में कई दशकों में ऐसा हिमपात हुआ। कई सालों बाद जम्मू-कश्मीर में ऐसी कड़ाके की ठंड देखने को मिली। साल की शुरुआत में जापान स्थित  रिसर्च इंस्टिट्यूट फॉर ह्यूमेनिटी एंड नेचर ने एक अध्ययन में बताया कि देश के सबसे अमीर 20% लोगों का कार्बन फुट प्रिंट गरीबों (₹140 प्रतिदिन से कम कमाने वाले) की तुलना में सात गुना अधिक है। काफी कम है। 

फरवरी में उत्तराखंड के चमोली में अचानक बाढ़ आ गई। पहले लगा कि यह बाढ़ एक ग्लेशियल झील के टूटने से आई लेकिन बाद में जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (जीएसआई) की एक स्टडी से पता चला कि  पता चला कि रोंठीगाड़ से एक चट्टान और बर्फ का एक विशाल टुकड़ा टूटकर ऋषिगंगा में गिरने से ये आपदा हुई। मौसमविज्ञानियों का कहना है कि  4 से 6 फरवरी के बीच पहले भारी बर्फबारी और फिर तेज़ धूप इस एवलांच का कारण हो सकता है। 

इस साल एक बार फिर उत्तरी गोलार्ध में भी दक्षिणी गोलार्ध की तरह ही जलवायु परिवर्तन का असर दिखा। फरवरी के अंत में एक बर्फीले तूफान ने दक्षिणी और मध्य अमेरिका के कई हिस्सों को जमा दिया। टैक्सस में विशेष रूप से बहुत ठंड (एक्सट्रीम कोल्ड) की स्थिति रही। यहां तापमान -2 डिग्री से -22 डिग्री के बीच रहा। बिजली सप्लाई पर असर पड़ा और नागरिकों से घरों में रहने को कहा गया। फिर जून जुलाई में पैसेफिक उत्तर-पश्चिम में ज़बरदस्त लू चली जिसका असर 5 करोड़ लोगों पर पड़ा। साल्ट लेक सिटी में तापमान 42 डिग्री सेंटीग्रेट तक पहुंच गया। ऐसा पिछले 147 सालों में केवल दूसरी बार हुआ। पश्चिम जर्मनी में रिकॉर्ड बारिश से आई बाढ़ के कारण कम से कम 220 लोगों की जान चली गई। इसके बाद हुये एक अध्ययन में कहा गया है कि यहां बाढ़ की संभावना अब करीब 9 गुना बढ़ गई है। 

जंगलों की आग का कहर 2021 में जारी रहा। खासतौर से साइबेरिया, अमेरिका और टर्की में।एक स्टडी में पाया गया कि इन आग की घटनाओं से कुल 176 करोड़ टन कार्बन इमीशन हुआ जो कि जर्मनी के सालाना उत्सर्जन का दो गुना है और पूरे यूरोपियन यूनियन के उत्सर्जन  के 50% के बराबर है।  

इन्हीं महीनों में के दौरान भारत में हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र और गोवा में भूस्खलन होने, बाढ़ आने और बादल फटने जैसी घटनाओं से 164 लोगों की मौत हो गई। पश्चिमी तट पर – खासतौर से महाराष्ट्र और गुजरात में –  ताउते चक्रवात के कारण भारी तबाही हुई। करीब 160 किलोमीटर प्रतिघंटा के रफ्तार से हवायें चलीं और 50 से अधिक लोग इसके कारण मारे गये। वैज्ञानिकों ने चक्रवात की इस तीव्रता के पीछ जलवायु परिवर्तन को एक वजह बताया है। पूर्वी समुद्र तट पर चक्रवात यास के कारण उड़ीसा, पश्चिम बंगाल और झारखंड में 14 लोगों की जान गई। जानकार कहते हैं कि भारत के आसपास समुद्र में हाल के समय में सामान्य से अधिक तापमान रिकॉर्ड किया गया है। 

अगस्त में इंटरगवर्मेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज यानी आईपीसीसी की रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि अब धरती की तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री की सीमा में नहीं रोका जा सकता। रिपोर्ट कहती है कि इतनी तापमान वृद्धि अगले दो दशकों में हो जायेगी। भारत में साल का अन्त खूब बारिश से हुआ। एक से 25 नवंबर के बीच दक्षिण पश्चिम मॉनसून के कारण सामान्य से 143.4% अधिक बारिश रिकॉर्ड की गई।

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बड़ी घोषणायें: जलवायु नीति को लेकर सभी विकसित देशों ने बड़ी घोषणायें की हैं लेकिन उनके क्रियान्वयन की ईमानदारी पर सवाल है। फोटो: Sydney News Today

क्लाइमेट एक्शन तो हुआ लेकिन इतना काफी नहीं

क्लाइमेट पॉलिसी की नज़र से देखें को साल 2021 का महत्व ग्लासगो सम्मेलन के कारण था जो एक साल की देरी के बाद हुआ। संयुक्त राष्ट्र और दुनिया की तमाम सरकारें शुरू से ही क्लाइमेट को टॉप एजेंडा बनाने की लिये समर्पित दिख रही थीं। अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों में जो बाइडेन की जीत के बाद क्लाइमेट को लेकर जोश भी दिखा क्योंकि उन्होंने व्हाइट हाउस में दाखिल होते ही पहला पेरिस संधि के साथ फिर से जुड़ने का ऐलान किया।  उन्होंने जलवायु परिवर्तन से निपटने को राष्ट्रीय सुरक्षा नीति का हिस्सा भी बनाया और डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा  पर्यावरण से जुड़े करीब 100 से अधिक नियमों को बदल दिया। 

इधर भारत में केंद्र सरकार ने पर्यावरण मंत्रालय के बजट में 200 करोड़ से ज़्यादा की कटौती कर दी। साल 2021-22 के लिये ₹2,869.93 करोड़ दिये गये जबकि पिछले साल यह रकम ₹3100 करोड़ दी गई। क्लाइमेट चेंज एक्शन प्रोग्राम, नेशनल एडाप्टेशन फंड और इंटीग्रेटेड डेवलपमेंट और वाइल्डलाइफ हैबीटाट जैसे कार्यक्रमों को दिये धन में भारी कटौती की गई। वायु प्रदूषण रोकने और नेशनल कोस्ट मिशन जैसे कार्यक्रम में ही पैसा बढ़ाया गया। 

इस बीच चीन ने क्लाइमेट विशेषज्ञ और ब्रोकर झी झेन्हुआ को अपना क्लाइमेट दूत बना दिया। माना जा रहा है कि अमेरिका द्वारा जॉन कैरी के क्लाइमेत दूत के पद पर वापसी के बाद चीन ने जवाब में ये फैसला किया है। अमेरिका और चीन के बीच चल रहे नाज़ुक रिश्तों को देखते हुये इस बदलाव पर सबकी नज़र है। 

जुलाई में यूरोपियन यूनियन ‘फिट फॉर 55’ क्लाइमेट प्लान पर काम शुरू किया। इस नीति के तहत क्लाइमेट, ट्रांसपोर्ट और बिजली के इस्तेमाल से जुड़े क्षेत्रों के लिये अलग अलग पैकेज बनाये गये हैं जिनका लक्ष्य 2030 तक कार्बन इमीशन में 55% कमी (1990 के स्तर से) करना है। 
अलग अलग देशों द्वारा कार्बन न्यूट्रल स्टेटस हासिल करने का सिलसिला जारी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ग्लासगो सम्मेलन में कहा कि भारत साल 2070 तक नेट ज़ीरो हासिल कर लेगा। जर्मनी  2045 तक यह दर्जा हासिल करने की बात कह चुका है जबकि अमेरिका ने 2050 और चीन तथा रूस ने 2060 तक कार्बन न्यूट्रल हो जाने की बात कही है। जलवायु नीति के मामले में यह साल एक खट्टे-मीठे अंदाज़ में खत्म हुआ। हालांकि ग्लासगो सम्मेलन में पेरिस संधि को लागू करने के लिये रूल बुक बना ली गई लेकिन क्लाइमेट फाइनेंस और लॉस एंड डैमेज जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर अब भी स्थिति स्पष्ट नहीं है।

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सांस में ज़हर: पूरे साल वायु प्रदूषण का मुद्दा एक बार फिर छाया रहा। भारत की हवा में मौजूद प्रदूषण दुनिया के दूसरे देशों से 10 गुना अधिक जानलेवा है। फोटो: Weather Channels

वायु प्रदूषण 2021: राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय नीतियों का लेखा-जोखा

इस साल भी दुनिया महामारी से तबाह रही और लोगों ने डबल मास्क पहने। लैंसेट के एक अध्ययन ने साबित किया कि कोविड-19 मुख्य रूप से हवा से फैलता है। शिकागो विश्वविद्यालय के ऊर्जा नीति संस्थान (ईपीआईसी) के अनुसार वायु प्रदूषण भारतीयों की जीवन प्रत्याशा (लाइफ एक्सपेक्टेंसी) को नौ साल तक कम कर सकता है। क्योंकि भारतीय जिन प्रदूषकों को अपनी सांस के ज़रिये फेफड़ों में लेते हैं वह दुनिया में किसी भी और जगह के मुकाबले 10 गुना खराब हैं। अध्ययन में कहा गया है कि स्वच्छ वायु नीतियां लोगों का जीवनकाल पांच साल तक बढ़ा सकती हैं।

हार्वर्ड के एक अध्ययन में कहा गया है कि विश्व में हर पांच में से एक अकाल मृत्यु जीवाश्म ईंधन के जलने से होती है। भारत में इससे सालाना लगभग 25 लाख लोग मारे जाते हैं। ग्रीनपीस और स्विस फर्म आईक्यूएयर के विश्लेषण से पता चला है कि पिछले साल वायु प्रदूषण के कारण नई दिल्ली में लगभग 54,000 लोगों की अकाल मृत्यु हुई। रिपोर्ट के अनुसार पूरे भारत में इससे 120,000 से अधिक लोग मारे गए। लैंसेट के एक अध्ययन में पाया गया कि दक्षिण एशिया में प्रति वर्ष अनुमानित 349,681 गर्भपात वायु प्रदूषण के कारण हुए।

फ्रांस की एक अदालत ने पहली बार एक ऐतिहासिक फैसले में दमे से पीड़ित एक बांग्लादेशी व्यक्ति के प्रत्यर्पण पर रोक लगाते हुए वायु प्रदूषण का हवाला दिया, जब उसके वकील ने तर्क दिया कि अभियुक्त के देश में प्रदूषण के खतरनाक स्तर के कारण उसकी अकाल मृत्यु की संभावना है। एक नए शोध से पता चला है कि उच्च-स्तर बायोमास बर्निंग के संपर्क में आने वाली किशोर लड़कियों का कद  कम रह जाता है। संभावना है कि यूरोपीय कोयला संयंत्रों से होने वाले वायु प्रदूषण से लगभग 34,000 लोगों की अकाल मृत्यु हुई। उधर  एक अमेरिकी शोध ने पाया कि पशुधन की खेती सहित कृषि गतिविधियों के वायु प्रदूषण से पूरे संयुक्त राज्य अमेरिका में हर साल 17,000 से अधिक मौतें होती हैं।

केंद्र ने इस साल दस  लाख से अधिक आबादी वाले 42 शहरों में वायु प्रदूषण से लड़ने के लिए 2,217 करोड़ रुपये आवंटित किए। पिछले साल यह बजट ₹4,400 करोड़ था, जिसमें से अधिकांश खर्च नहीं किया गया था। ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद (सीईईडब्ल्यू) के एक सर्वेक्षण में पाया गया कि छह भारतीय राज्यों में शहरी बस्तियों के 86 फीसदी घरों में एलपीजी कनेक्शन हैं, लेकिन केवल 50% ही उनका उपयोग करते हैं। 

भारत ने कोयला बिजली संयंत्रों के लिए उत्सर्जन में कमी लाने की तकनीक स्थापित करने की समय सीमा तीन साल बढ़ा दी। यह समय सीमा पहले ही 5 साल बढ़ा कर 2017 से 2022 की गई थी। सरकारी जवाबदेही तय करने के लिए भारत के हरित न्यायालय, राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने वायु गुणवत्ता में सुधार लाने के कदमों की निगरानी के लिए आठ-सदस्यीय राष्ट्रीय कार्य बल का गठन किया है। केंद्र ने कुछ सबसे अधिक प्रदूषण करने वाले उद्योगों को केवल ‘नो इनक्रीस इन पॉल्यूशन लोड’ (प्रदूषण भार में कोई वृद्धि नहीं) प्रमाणपत्र देकर उनके संचालन का विस्तार करने की अनुमति दे दी।  एक नए अध्ययन के अनुसार, वायु प्रदूषण से भारतीय व्यवसायों को सालाना 95 बिलियन डॉलर का नुकसान होता है

आईक्यूएयर के अनुसार 2020 में नई दिल्ली लगातार तीसरे वर्ष दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी थी। दुनिया के 50 सबसे प्रदूषित शहरों में से 35 भारत में पाए गए। अध्ययन में पाया गया कि 2020 में प्रदूषण से नई दिल्ली में लगभग 54,000 मौतें समय से पहले हुईं। 

दिल्ली सरकार की कैबिनेट ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में वायु प्रदूषण को रोकने के लिए एक रियल-टाइम स्रोत विभाजन अध्ययन को मंजूरी दी। एक स्रोत-विभाजन अध्ययन के अनुसार, दिल्ली के PM2.5 का 64 प्रतिशत हिस्सा पड़ोसी राज्यों से आता है। 

संसद ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और निकटवर्ती इलाकों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन हेतु आयोग बिल, 2021 को मंजूरी दी, जिसमें पहली बार औपचारिक रूप से वायु प्रदूषण को ‘एयरशेड’ आधार पर समझा गया है, यानी राज्य की सीमाओं से परे उठकर उस पूरे क्षेत्र पर गौर किया जायेगा जिस पर मौसमी और भौगोलिक कारणों से प्रदूषक फैलते हैं।     

भारत हवा में फैले जिन वायु प्रदूषकों पर निगरानी रखता है उनमें 2022 तक पीएम 2.5 से छोटे अल्ट्राफाइन पार्टिकुलेट मैटर को शामिल करने पर विचार कर रहा है। वर्तमान में भारत आठ प्रदूषकों की मॉनिटरिंग करता है, जिनमें पीएम 2.5, पीएम 10, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, ओजोन, कार्बन मोनोऑक्साइड, बेंजीन और अमोनिया शामिल हैं। वायु गुणवत्ता मानकों को बेहतर करने की तैयारी में भारत पिछले साल कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान दर्ज किए गए वायु गुणवत्ता डेटा को आधार मानेगा। 

वायु प्रदूषण को कम करने के लिए भारत ने कोयले से चलने वाले कुछ ताप विद्युत संयंत्रों में बायोमास छर्रों के उपयोग को अनिवार्य कर दिया। इस बीच पराली जलाने को अपराध की श्रेणी से मुक्त कर दिया गया है। ईपीआईसी के एक अध्ययन में पाया गया कि दिल्ली में वायु प्रदूषण निकटतम बाहरी सरकारी मॉनिटरों द्वारा बताए गए स्तरों की तुलना में काफी अधिक (डब्ल्यूएचओ के स्तर से 20 गुना) था।विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने संशोधित और अधिक कड़े वैश्विक वायु गुणवत्ता दिशानिर्देश जारी करते हुए कहा कि वायु प्रदूषण पहले ज्ञात स्तरों से कम कंसंट्रेशन पर भी स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाता है। वार्षिक PM2.5 का स्तर 10 माइक्रोग्राम/घन मीटर (2005) से आधा करके 5 माइक्रोग्राम/घन मीटर कर दिया गया है, जबकि दैनिक औसत 25 माइक्रोग्राम/घन मीटर (2005) से घटाकर 15 माइक्रोग्राम/घन मीटरनिर्धारित किया गया है। इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) द्वारा जलवायु संकट पर नवीनतम रिपोर्ट में कहा गया है कि वायु प्रदूषकों की वृद्धि पूरे भारत में बदस्तूर जारी है।

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ऊंचे इरादे, कठिन राह - विश्लेषकों का कहना है कि 2030 तक केवल 300 गीगावॉट के सौर लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए ही भारत को 2022 से हर साल 28 गीगावॉट की नई सौर क्षमता स्थापित करने की आवश्यकता है - फोटो: Japan Times

मिशन 500 गीगावॉट और नेट ज़ीरो वर्ष का हुआ ऐलान पर व्यवहारिक दिक्कतें बरकार

इस साल नवंबर में हुये जलवायु परिवर्तन महासम्मेलन (सीओपी-26) में भारत ने घोषणा की कि वह 2030 तक 500 गीगावॉट साफ ऊर्जा की क्षमता हासिल कर लेगा। यह घोषणा स्वैच्छिक राष्ट्रीय लक्ष्यों (एनडीसी) के तहत की गई। सरकार ने पहले 2030 459 गीगावॉट साफ ऊर्जा (गैर-जीवाश्म स्रोत से आने वाली पावर) का लक्ष्य रखा था। भारत ने यह भी कहा कि वह 2070 तक नेट-जीरो उत्सर्जन लक्ष्य हासिल कर लेगा। ऊर्जा मंत्री ने कहा कि भारत सौर और पवन ऊर्जा से लगभग 450 गीगावाट बिजली पैदा करेगा, जबकि 70-100 गीगावाट जल विद्युत से बनाई जायेगी। 

भारत ने 500 GW के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा खरीद बाध्यता को 2022 से 2030 तक बढ़ाने की योजना बनाई है। विश्लेषकों का कहना है कि 2030 तक केवल 300 गीगावॉट के सौर लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए ही भारत को 2022 से हर साल 28 गीगावॉट की नई सौर क्षमता स्थापित करने की आवश्यकता है, जो किसी भी वर्ष की सौर क्षमता से तीन गुना अधिक है। 

भारतीय सौर ऊर्जा निगम (SECI) को वार्षिक आधार पर 15GW की निविदाएं जारी करने के लिए बजट में अतिरिक्त 1,000 करोड़ रुपये मिले। चूंकि अभी सिर्फ 101 गीगावॉट साफ ऊर्जा क्षमता ही उपलब्ध है, 2030 तक 500 गीगावॉट के अपने घोषित लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सरकार की योजना ‘मिशन 500 गीगावॉट’ स्थापित करने की है। सरकार ने कहा कि कुल 107.46 गीगावॉट की सौर ऊर्जा परियोजनाएं या तो  पूरी हो चुकी हैं या कार्यान्वयन/निविदा के विभिन्न चरणों में हैं।  

भारत का लक्ष्य सौर उपकरणों का निर्यात करना है जिसके लिए सरकार की योजना घरेलू निर्माताओं को मिलने वाले उत्पादन से जुड़े इंसेंटिव (पीएलआई) को मौजूदा 4,500 करोड़ रुपए से बढ़ाकर 24,000 करोड़ रुपए करने की है। दुनिया की सबसे बड़ी कोयला कंपनी कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) ने सौर परियोजनाएं स्थापित करने और पीएलआई योजना के लिए बोली लगाने का फैसला किया है।  अडानी ग्रीन एनर्जी लिमिटेड (एजीईएल) ने कहा कि वह 2030 तक 45 गीगावॉट नवीकरणीय ऊर्जा स्थापित करेगी। रिलायंस इंडस्ट्रीज 2035 तक नेट कार्बन जीरो फर्म बनने के लिए तीन वर्षों में साफ़ ऊर्जा में 10.1 बिलियन डॉलर का निवेश करेगी। रिलायंस 2030 तक कम से कम 100 GW की सौर क्षमता का भी निर्माण करेगी। 

घरेलू सौर विनिर्माण क्षेत्र ने आरोप लगाया कि भारत का पीएलआई कार्यक्रम बड़े खिलाड़ियों के लिए है, और छोटे निर्माताओं को पनपने नहीं देगा। 2050 तक नवीकरणीय ऊर्जा के लक्ष्यों और नेट ज़ीरो उत्सर्जन को प्राप्त करने के लिए भारत को सौर और पवन उत्पादन के लिए भूमि उपयोग के विवेकपूर्ण नियोजन की आवश्यकता है, इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंशियल एनालिसिस (आईईईएफए) ने एक नई रिपोर्ट में कहा। रिपोर्ट ने यह भी कहा कि 2050 तक शुद्ध-शून्य लक्ष्य के साथ, भारत में सौर ऊर्जा के उत्पादन के लिए लगभग 50,000-75,000 वर्ग किलोमीटर भूमि की ज़रुरत होगी, जबकि पवन ऊर्जा के लिए 15,000-20,000 वर्ग किमी की ज़रूरत है। 

भारत ने साफ ऊर्जा (आरई) क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए नए नियमों का प्रस्ताव रखा, जिसमें नवीकरणीय ऊर्जा खरीद बाध्यता (आरपीओ) को पूरा करने के लिए हाइड्रोजन की खरीद की अनुमति भी शामिल है। केंद्र ने कूड़े-से-ऊर्जा संयंत्रों को भी नवीकरणीय ऊर्जा के रूप में वर्गीकृत किया है। आईईईएफए ने कहा कि भारत 2022 तक कृषि क्षेत्र में दो मिलियन ऑफ-ग्रिड सौर सिंचाई पंप स्थापित करने के अपने लक्ष्यों से बहुत पीछे रह जाएगा, क्योंकि किसानों को क़र्ज़ मिलना बहुत मुश्किल है क्योंकि बैंक क़र्ज़ देने के लिए किसानों की भूमि को मजबूत संपार्श्विक (कोलैटरल) नहीं मानते हैं। 

हाल के एक अध्ययन में कहा गया है कि नवीकरणीय क्षेत्र में सब्सिडी 2017 में चरम पर पहुंचने के बाद से लगभग 45% कम हो गई है और सरकार को उन्हें तत्काल पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है। आईईईएफए के अनुसार, भारत के एक अल्पकालिक ऊर्जा बाजार शुरू करने से नवीकरणीय परियोजना डेवलपर्स के लिए परियोजनाओं के फाइनेंशियल क्लोसर हेतु वितरण कंपनियों के साथ दीर्घकालिक अनुबंध किए बिना ऑफटेक एग्रीमेंट करना आसान हो जाएगा

रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार भारत 2025-27 तक हाइड्रोजन के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए $20 करोड़ खर्च करेगा। 2050 तक नेट-ज़ीरो (शुद्ध-शून्य) उत्सर्जन प्राप्त करने के लिए, भारत को 2050 तक अपनी ऊर्जा का कम से कम 83% उत्पादन (गैर-जल विद्युत) नवीकरणीय स्रोतों से  करने की आवश्यकता है, ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद (सीईईडब्ल्यू) ने कहा। 

सौर परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण में देरी के कारण राज्य सरकारें सौर पैनलों को जलाशयों पर लगा रही हैं या ऐसी उनकी योजना है। मोंगाबे की रिपोर्ट के मुताबिक इससे जैव-विविधता की अपूरणीय क्षति हो रही है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान-(आईआईटी) दिल्ली का अनुमान है कि अगर भारत 2030 तक 347.5 गीगावॉट के सौर पैनल लगाता है, तो 2047 तक लगभग 295 करोड़ टन सौर उपकरण भारत के इलेक्ट्रॉनिक-कचरे का भाग हो सकते हैं। 
महामारी के बावजूद, चीन ने 2020 में इतनी पवन ऊर्जा (विन्ड पावर) का उत्पादन किया जो 2019 में पूरी दुनिया द्वारा स्थापित की गई ऊर्जा से कहीं अधिक थी। अमेरिका में डेवलपर्स ने पिछले साल 16.5GW क्षमता के विन्ड पावर प्लांट लगाये। सऊदी अरब, जहां 1 प्रतिशत से भी कम ऊर्जा साफ स्रोतों से है,  2030 तक अपनी ऊर्जा का 50% नवीकरणीय स्रोतों से उत्पन्न करने की योजना बना रहा है। आईईए ने कहा कि भले ही सभी देशों ने अपने मौजूदा नेट ज़ीरो लक्ष्यों को पूरा किया है, लेकिन दुनिया को 2050 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन हासिल करने के लिए 2030 तक उत्सर्जन में जिस कटौती की आवश्यकता है, उसका केवल 20 प्रतिशत ही हासिल हो सकेगा।

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दलती मोबिलिटी - इलैक्ट्रिक मोबिलिटी के हिसाब से ये साल क्रांतिकारी कहा जायेगा, टेस्ला के भारत में पंजीकृत होने से नया जोश है।

अभूतपूर्व बिक्री का साल, अब नज़र नए वायदों पर

इलैक्ट्रिक मोबिलिटी के लिए यह साल बहुत अच्छा रहा। बैटरी चालित वाहनों ने 2020 के निराशाजनक प्रदर्शन के बाद जोरदार वापसी की और पहली बार वैश्विक स्तर पर नए वाहनों की बिक्री में ईवी की हिस्सेदारी 10% से अधिक रही। इस उपलब्धि में नॉर्वे सबसे आगे रहा, जहां अब 90% नई कारें इलेक्ट्रिक हैं और अप्रैल 2022 तक यह आंकड़ा 100% तक पहुंच सकता है — तय समय से तीन साल पहले। भारत में गुजरात और महाराष्ट्र ने एक दूरदर्शी ईवी नीतियों की घोषणा की। देश बहुत कम लागत वाले ईवी चार्जर विकसित कर रहा है और प्रत्येक राजमार्ग के टोल प्लाजा पर ईवी चार्जर लगाने की योजना है लेकिन ईवी बाजार के लिए सबसे बड़ी खबर यह रही कि टेस्ला अब आधिकारिक तौर पर भारत में पंजीकृत है।

अन्य देशों की बात करें तो नई जर्मन सरकार 2035 तक नए आईसीई (जैसे पेट्रोल और डीज़ल कारें) वाहनों की बिक्री समाप्त कर देगी। यहां तक कि देश की तेल लॉबी भी इस पक्ष में है। हालांकि, प्रसिद्ध जर्मन स्पोर्ट्सकारों को इस से बाहर रखा जाएगा। अमेरिका अपने पूर्वी और पश्चिमी तटों के बीच 500,000 ईवी चार्जर लगाने के लिए 2030 तक 7.5 बिलियन डॉलर खर्च करेगा। देश की शीर्ष कंपनियां भी इस कार्य में सहयोग करेंगी। कार निर्माताओं ने भी दरियादिली दिखाई है। फोर्ड, जीएम, टोयोटा और निसान मिलकर इलेक्ट्रॉनिक वाहनों के निर्माण में 105 बिलियन डॉलर खर्च करेंगे। वहीं टेस्ला का मूल्यांकन पहली बार 1 लाख करोड़ डॉलर से अधिक हो गया क्योंकि कार रेंटल फर्म हर्ट्ज़ के 1,00,000 मॉडल 3s के ऑर्डर ने इलेक्ट्रिक पावरट्रेन के किफायती होने पर मजबूत मुहर लगा दी। 

बेशक, इस अच्छे साल में भी कुछ अड़चनें आईं। दक्षिण ऑस्ट्रेलिया की तर्ज पर विक्टोरिया ने भी प्रति मील ईवी टैक्स  लगाने का फैसला किया। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि इससे ईवी खरीदारों को परेशानी हुई और उनका वार्षिक खर्च बढ़ा। लेकिन इससे भी बुरा था न्यूयॉर्क टाइम्स का यह खुलासा कि टोयोटा ने टेस्ला से आतंकित होकर ईवी की बिक्री को नुकसान पहुंचाने के लिए पैसे देकर एक एफयूडी (भय, अनिश्चितता और संदेह) अभियान शुरू करवाया, जिसका उद्देश्य था किसी तरह हाइड्रोजन ईंधन सेल वाहनों को किनारे करना।फिर भी, ईवी तकनीक में ही अच्छी-खासी प्रगति हुई क्योंकि रॉल्स रॉयस ने दुनिया के सबसे तेज और पूरी तरह इलेक्ट्रिक विमान का परीक्षण किया जिसकी रफ्तार 623 किमी प्रति घंटे से भी अधिक है। यूनाइटेड एयरलाइंस ने स्वीडन के हार्ट एविएशन से 100 इलेक्ट्रिक यात्री विमानों का ऑर्डर दिया, जो कमर्शियल हवाई यात्रा के क्षेत्र में निश्चित तौर पर मील का पत्थर साबित होगा। और डाइकिन ने एक नया रेफ्रिजरेंट पेश किया जो इलेक्ट्रिक वाहनों की रेंज को 50% तक बढ़ा सकता है। अगला साल ईवी के क्षेत्र में वाकई दिलचस्प होगा!

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न्यायपूर्ण बदलाव: कोयले जैसे जीवाश्म ईंधन से दूर हटने के लिये एक जस्ट ट्रांजिशन की ज़रूरत है जिस पर इस साल ख़ूब चर्चा हुई। फोटो: AFP/ Scroll.in

कुछ अच्छी कामयाबियां, लेकिन मुश्किल से जाती हैं पुरानी आदतें

साल 2021 में जीवाश्म ईंधन का प्रयोग कम करने के प्रयासों में अविश्वसनीय प्रगति हुई, लेकिन इसे पूरी तरह ख़त्म करने में अभी लंबा वक्त लगेगा। आइए शुरुआत वहीं से करें जो बदला नहीं।

भारतीय गृह मंत्री ने वर्ष की शुरुआत में दावा किया था कि कोयला 2050 तक भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं में प्रमुख भूमिका निभाएगा। लेकिन कोयला ब्लॉकों  की नीलामी के प्रति कंपनियों के ठंडे रुख ने कुछ और ही संकेत दिया। नॉर्वे की सरकार ने देश के पश्चिमी तट से (जो आर्कटिक के बहुत करीब है) अधिक तेल और गैस निकालने के लाइसेंस देने की पेशकश की, इसके बावजूद कि जलवायु कार्यकर्ताओं ने यह चेतावनी दी थी कि इस क्षेत्र में यदि तेल का रिसाव हुआ तो उसे साफ करना बेहद रूप से कठिन होगा। इसी क्रम में, समुद्र के नीचे पाइपलाइन फटने से तेल के रिसाव के कारण मैक्सिको की खाड़ी में एक विध्वंसकारी आग लगी जो शायद दशकों तक स्थानीय इकोसिस्सम को प्रभावित करती रहेगी। फिर भी मेक्सिको के पेमेक्स ने खुले तौर पर किसी भी रिसाव के होने से इनकार कर दिया और वहां अब भी रोजगार पैदा करने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा के मुकाबले जीवाश्म ईंधन को वरीयता दी जाती है

येल विश्वविद्यालय ने पाया कि पेरिस समझौते के छह साल बाद भी अमेरिकी जीवाश्म ईंधन कंपनियों को हर साल $ 62 बिलियन छुपी हुई (इम्प्लिसिट) सब्सिडी के रूप में मिल रहे थे क्योंकि उन्हें ईंधन के पर्यावरणीय या सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रभावों के लिए कोई भुगतान नहीं करना पड़ रहा था। इसके अलावा, वैज्ञानिकों ने पाया कि ब्लू हाइड्रोजन का 20% अधिक जीवन-चक्र उत्सर्जन (लाइफ-साइकिल इमीशन)  वास्तव में इसे पारंपरिक प्राकृतिक गैस या डीजल की तुलना में अधिक दूषित बनाता है, और इसलिए यह वास्तव में उत्सर्जन में कटौती के विपरीत मात्र एक भटकाव है। 

अब थोड़ा उम्मीद बंधाने वाली ख़बरों की ओर बढ़ते हैं। फ्रांस ने 2.5 घंटे से कम समय की घरेलू उड़ानों पर प्रतिबंध लगा दिया है। ऐसे यात्रियों को ट्रेन से जाना होगा। जर्मनी भी इसे लागू कर रहा है क्योंकि यूरोपीय संघ ट्रांसपोर्ट सेक्टर में रोके जा सकने वाले उत्सर्जन को कम करने पर ज़ोर दे रहा है। इस बीच, स्वीडन के हाइब्रिट ने वोल्वो को दुनिया का पहला ग्रीन स्टील सौंपा (जो कोयले के बजाय हाइड्रोजन ऊर्जा का उपयोग करके बनाया गया है)। यह सुधार धीरे-धीरे औद्योगिक निर्माण में विकार्बनीकरण का रास्ता खोल सकता है। शिपिंग दिग्गज मार्सक ने साफ कहा कि ट्रांजिशन फ्यूल ‘अब प्रासंगिक नहीं रह गया है‘ और अपने कार्बन-न्यूट्रल बेड़े के लिए वह ग्रीन मेथनॉल के प्रयोग कर सकते हैं।राजनीतिक मोर्चे पर, नए अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अपने कार्यकाल की शुरुआत 800 करोड़ डॉलर की विवादास्पद कीस्टोन एक्सएल पाइपलाइन के लिए सीमापार परमिट को रद्द करके की जिससे यह परियोजना प्रभावी रूप से समाप्त हो गई। अमेरिका विदेशों में चल रही कोयला, तेल और गैस परियोजनाओं पर पैसा लगाना (निवेश) भी बंद कर देगा और इसका बिजली क्षेत्र 2035 तक कार्बन-मुक्त हो सकता है, जबकि तंग आकर एक्सॉनमोबिल के शेयरधारकों ने एक बड़ा बदलाव करते हुए बोर्ड में तीन क्लाइमेट-फ्रेंडली निदेशकों को रखने में सफलता हासिल की। और अंत में, एक ऐतिहासिक निर्णय में नीदरलैंड की एक अदालत ने रॉयल डच शेल को केवल उत्सर्जन की तीव्रता को कम करने के बजाय पूर्ण उत्सर्जन में कमी दिखाने का आदेश दिया।