Photo: Victor He on Unsplash

स्विस आल्प्स में जलवायु परिवर्तन के कारण बनी 1,000 से अधिक झीलें

सोमवार को प्रकाशित एक अध्ययन से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन के कारण स्विटज़रलैंड के आल्प्स पर्वतों के ग्लेशियर लगातार पिघल रहे हैं। पिछले साल उनका दो प्रतिशत हिस्सा कम हो गया। साल 1850 के बाद से, स्विस आल्प्स के पूर्व हिमाच्छादित क्षेत्रों में लगभग 1,200 नई झीलें बन  गई हैं । करीब 1,000 झीलें इस क्षेत्र में आज भी हैं।  

स्विस फेडरल इंस्टीट्यूट ऑफ एक्वाटिक साइंस एंड टेक्नोलॉजी द्वारा प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है कि साल 2016 में स्विस ग्लेशियल झीलों ने इन ऊंचे पहाड़ों का लगभग 620 हेक्टेयर क्षेत्र को कवर किया। सबसे बड़ी झील 40 हेक्टेयर मापी गई, लेकिन 90 प्रतिशत से अधिक झीलें एक हेक्टेयर से छोटी थी। वैज्ञानिकों ने 1200 झीलों की अलग-अलग समय पर स्थान, ऊंचाई, आकार, क्षेत्र, बांध की सामग्री के प्रकार और सतह के जल निकासी को रिकॉर्ड किया। 

ऐसी बुनियादी जानकारी के आधार पर, शोधकर्ता ग्लोबल वॉर्मिंग से खतरों का अनुमान लगा रहे हैं। अध्ययन  के अनुसार  हिमनद झील का निर्माण की रफ्तार 1946 और 1973 के बीच उच्चतम स्तर पर पहुंच गई जब हर साल औसतन आठ नई झीलें बनी। उसके बाद कुछ राहत ज़रूर मिली लेकिन 2006 और 2016 के बीच, नई हिमनद झीलों का निर्माण फिर से काफी बढ़ गया।

विश्लेषण  में बताया गया है कि इस दौरान हर साल औसतन 18 नई झीलें दिखाई दीं और पानी की सतह में सालाना 1,50,000 वर्ग मीटर से अधिक की वृद्धि हुई । यह आल्प्स में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को दर्शाता हैं।

जलवायु परिवर्तन का  प्रभाव हिमालय के ग्लेशियर पर भी दिख रहा है । 2019 में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, हिमालय के ग्लेशियर अभूतपूर्व दर से पिघल रहे हैं और पिछले 40 वर्षों में हिमनदों में बर्फ के नुकसान में तेजी आई है । एक अन्य अध्ययन के मुताबिक अफगानिस्तान के हिन्दुकुश ग्लेशियर जलवायु परिवर्तन का सबसे बड़ा शिकार होने जा रहे हैं और इसका मार भारत समेत दक्षिण एशिया के बड़े हिस्से पर पड़ेगी। ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण 2100 तक हिन्दुकुश हिमालय क्षेत्र के दो तिहाई ग्लेशियर पिघल सकते हैं और करीब 200 करोड़ लोगों को पानी की कमी और खाद्य असुरक्षा का सामना करना पड़ेगा। इस लिहाज से भी अफगानिस्तान में क्लाइमेट चेंज को रोकने के लिये गंभीर प्रयासों की ज़रूरत है।

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