दुनिया के देशों ने हवा को साफ करने के बजाय प्रदूषण धुंआं फैलाने वाली परियोजनाओं में 21% अधिक सहायता राशि खर्च की: रिपोर्ट
कम और मध्य आय वाले जिन देशों को हवा साफ करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय फंड मिलते हैं उनमें पिछले 30 सालों में यानी 1990 और 2019 के बीच वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों में 153% की वृद्धि हुई है। इसके बावजूद यहां वायु प्रदूषण से निपटने वाली परियोजनाओं में डेवलपमेंट फंडिंग द्वारा कुल 1% से भी कम खर्च किया गया है।
‘द स्टेट ऑफ़ ग्लोबल एयर क्वालिटी फंडिंग 2021’ नाम से प्रकाशित यह रिपोर्ट एक क्लीन एयर फंड नाम की एक वैश्विक दानदाता संगठन की ओर से तैयार की गई है। इसके शोध से यह भी पता चलता है कि सरकारों ने जीवाश्म ईंधन उपयोग करने वाली परियोजनाओं को वायु प्रदूषण कम करने वाली परियोजनाओं की तुलना में अधिक प्राथमिकता दी।
इस रिपोर्ट से दुनिया के देशों में वायु प्रदूषण से लड़ने के प्रयासों का मोटा अनुमान होता है और यह इस दिशा में फंडिंग के स्वरूप, रणनीतिक निवेश और सहयोग के अवसरों की भी पहचान करती है।
रिपोर्ट के अनुसार कुल मिलाकर, सरकारों और फिलांथ्रोपिक फाउंडेशनों ने 2015-20 के बीच वायु प्रदूषण से निपटने के लिए 572 करोड़ डॉलर खर्च किए, जो इस अवधि में लगातार वृद्धि है। हालाँकि, प्रारंभिक आंकड़े बताते हैं कि यह फंडिंग 2019 ($ 147 करोड़) के मुकाबले 2020 ($ 133 करोड़) में 10% कम हो गई है।
वायु प्रदूषण हर साल 42 लाख से अधिक मौतों का कारण बनता है – जो की मलेरिया, ट्यूबरक्लोसिस और एचआईवी / एड्स से भी अधिक हैं। क्लीन एयर फण्ड के मुताबिक वायु प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए यह धनराशि आवश्यक धनराशि से बहुत कम है।
आधिकारिक फंडिंग मिलने के मामले में भारत का आठवां स्थान है जिसे 2015 से 2020 के बीच कुल 1837 करोड़ के फंड मिले जबकि करीब 250 करोड़ की मदद के साथ चीन सहायता राशि पाने वाले देशों की लिस्ट में सबसे ऊपर रहा।
जीवाश्म ईंधन को प्राथमिकता
जीवाश्म ईंधन (जैसे तेल, गैस, कोयला आदि) का प्रयोग जलवायु परिवर्तन के पीछे मुख्य कारण है। रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकारों ने उन परियोजनाओं पर विकास सहायता में 21% अधिक खर्च किया है जो जीवाश्म ईंधन का उपयोग करती है वही दूसरी और वायु प्रदूषण को कम करने के प्राथमिक उद्देश्य वाली परियोजनाओं पर सरकार ने कम खर्च किया है।
क्लीन एयर फंड के कार्यकारी निदेशक और संस्थापक जेन बर्स्टन ने कहा कि सरकारें वायु प्रदूषण को रोकने की बजाय जीवाश्म ईंधन के लम्बे उपयोग में अधिक सहायता प्रदान कर रही हैं। बर्स्टन कहते हैं कि इसका कोई मतलब नहीं है क्योंकि सार्वजनिक स्वास्थ्य एक वैश्विक प्राथमिकता है और दुनिया जलवायु चुनौती के पैमाने का सामना कर रही है। उनके मुताबिक स्वच्छ हवा प्रदान करने के लिए हमें तत्काल अधिक धन, मजबूत लक्ष्य और बेहतर सहयोग की आवश्यकता है।
दानदाता (फिलांथ्रोपिक) फाउंडेशनों का कितना योगदान?
रिपोर्ट से पता चलता है कि फिलांथ्रोपिक फाउंडेशनों से मिलनी वाली मदद स्वच्छ वायु परियोजनाओं के लिए 2020 में 17% बढकर 4.47 करोड़ डॉलर हो गई। हालांकि ये आंकड़े दुनिया भर में मदद करने वाले फाउंडेशनों के अनुदानों का सिर्फ 0.1% हैं। फ़ाउंडेशन द्वारा हवा की गुणवत्ता के लिए अनुदान देना मुख्य रूप से जलवायु पर्यावरण और ऊर्जा फ़ंड तक सीमित है। रिपोर्ट बताती है की ज्यादातर अनुदान मुख्य रूप से उत्तरी अमेरिका, यूरोप, भारत, चीन जैसे देशों को जाता है। दुनिया में वायु प्रदूषण से जुड़ी मौतों की कुल संख्या के मामले में भारत और चीन सबसे ऊपर हैं।
अध्ययन में कहा गया है कि आधिकारिक विकास स्रोतों से मिलने वाली फंडिंग में बड़ी विसंगति यानी असमानता है। जिस कारण सबसे कमजोर प्रभावित क्षेत्रों तक धन बहुत कम पहुंचता है। रिपोर्ट में कहा गया हैं कि दुनिया के कुछ सबसे प्रदूषित शहरों और क्षेत्रों में रहने के बावजूद, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका को क्रमशः 5% और 10% सहायता राशि प्राप्त होती है जबकि सहायता का 80% एशिया में मध्यम आय वाले देशों को ऋण के तौर पर जाता है।
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