हवा में प्रदूषण के प्रबंधन के लिये बने कमिशन फॉर एयर क्वालिटी मैनेजमेंट (CAQM) ने दिल्ली और उसके पड़ोसी राज्यों को कहा है कि पराली जलाने की घटनाओं के आकलन के लिए वह भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान एजेंसी (इसरो) द्वारा विकसित एक प्रोटोकॉल अपनायें। यह प्रोटोकॉल उपग्रह डेटा का उपयोग करके इन घटनाओं का अनुमान लगाता है।
आयोग ने दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान को एक समयबद्ध और व्यापक कार्य योजना विकसित करने के लिए भी कहा। आयोग ने कहा है कि खेतों में धान और गेहूं जैसी फसलों की खुंटी जलाने की घटनाओं की जिम्मेदारी, निगरानी और रिपोर्टिंग के लिए योजना हितधारक एजेंसियों के साथ परामर्श से चलाई जाये।
यह प्रोटोकॉल राज्य रिमोट सेंसिंग सेंटर और भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के परामर्श से तैयार किया गया है। आयोग के मुताबिक यह प्रोटोकॉल सिर्फ पंजाब और हरियाणा तक सीमित नहीं रहना चाहिये। उत्तर प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली राज्यों में भी प्रोटोकॉल को समान रूप से अपनाया जाना चाहिए। पैनल ने इन राज्यों को 30 अगस्त तक प्रोटोकॉल अपनाने पर अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत करने को भी कहा है।
पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में 15 अक्टूबर से 15 नवंबर के बीच धान की कटाई होती है । कटाई के बाद बचे फसल अवशेषों को जल्दी से हटाने के लिए किसान अपने खेतों में आग लगा देते हैं। यह दिल्ली में प्रदूषण में खतरनाक वृद्धि के मुख्य कारणों में से एक है।
आईसीएआर-सेंटर रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर ड्राईलैंड एग्रीकल्चर के वैज्ञानिक डॉ ए अमरेंद्र रेड्डी के अनुसार धान की कटाई के बाद वायु प्रदूषण और फसल अवशेषों के जलने का अनुमान लगाने में इसरो उपग्रह डेटा काफी कामगार साबित हो सकता है। डॉ रेड्डी ने कार्बन कॉपी हिंदी को बताया ,”जमीनी स्तर पर निगरानी के साथ इस तकनीक का इस्तेमाल दिल्ली और आसपास के राज्यों जैसे पंजाब और हरियाणा में किया जा सकता है। इस प्रकार, अधिक सटीकता के साथ फसल अवशेषों की मात्रा का अनुमान लगाया जा सकता है। इससे स्थानीय प्रशासन को फसल अवशेष जलाने की तीव्रता को कम करने में मदद मिलेगी।”
दिल्ली स्थित गैर-लाभकारी नीति अनुसंधान संस्थान, काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर (सीईईडब्ल्यू) के एक हालिया अध्ययन के अनुसार, अपेक्षाकृत लंबी पराली जलाने की अवधि और प्रतिकूल मौसम संबंधी परिस्थितियां मुख्य रूप से पिछले साल की सर्दियों के दौरान दिल्ली की बिगड़ती वायु गुणवत्ता के लिए जिम्मेदार थीं।
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