असम की इस साल की बाढ़ में कोई 30 लाख लोग प्रभावित हुये हैं। जानकार कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन का असर बढ़ रहा है। फोटो - अरविंद शुक्ला

“अपनी पूरी जिंदगी ऐसी बाढ़ कभी नहीं देखी”

बरसात ने हमेशा असम को त्रस्त किया है लेकिन जानकार कहते हैं कि अब इसका पैटर्न और तीव्रता एक अलग ढर्रे पर चली गई है। 

दरांग (असम)। भाभेन सहारिया अपने पूरे परिवार के साथ पिछले 17 दिनों से राहत कैंप में रह रहे हैं। 16 जून को एकाएक आए सैलाब के बाद वो किसी तरह परिवार की जान बचाकर गांव से निकल पाए। घर में रखा खाने पीने का सामान, राशन, कपड़े सब चला गया। 60 साल के भाभेन के मुताबिक उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी ऐसी बाढ़ कभी नहीं देखी। जब सब तरफ पानी ही पानी और चौतरफा नुकसान है।

पानी से घिरे अपने गांव की तरफ इशारा करते हुए भाभेन बताते हैं, “इससे पहले 1998 में बाढ़ आई थी, लेकिन तब पानी इतना नहीं था.  इस बार एकदम पानी आया तो सामान निकालने का मौका तक नहीं मिल पाया। 40 मन (एक मन 40 किलो) धान रखे थे जो पानी में भीगे-भीगे सड़ गये। धान रोपाई के लिए नर्सरी की थीं वो भी चली गई। अब इस सीजन में खेती में कुछ नहीं होगा।” 

सारे ज़िले पानी में डूबे, 30 लाख प्रभावित


भाभेन सहारिया, दिल्ली से करीब 2000 किलोमीटर दूर पूर्वोत्तर राज्य असम के बोरगांव में रहते हैं जो दरांग ज़िले का हिस्सा है। यह गांव गुवाहाटी से तेजपुर जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग-15 के किनारे बसा है। मई से लेकर जून तक असम में इस साल कई दौर की बाढ़ में 34 में से 32 जिलों के कम से कम 30 लाख लोग प्रभावित हुए। कुल 170 से ज्यादा लोगों की जान गई। घर मकान, जमीन और पशुओं का भी भारी नुकसान हुआ है। कई जगह पुल बह गए तो कहीं रेलवे लाइन उखड़ गई। लाखों लोग कैंप में रहने को मजबूर हैं।

असम राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के मुताबिक 16 जून की बाढ़ में ही 28 जिलों के 19 लाख प्रभावित हुए थे। सबसे ज्यादा प्रभावित जिलों में एक दरांग भी था। ननोई नदी ब्रह्मपुत्र की सहायक नदी है, जो भूटान का पानी लेकर आती हैं। बोरगांव के पास नदी बहुत छोटी सी है, उसके किनारे बंधा भी बंधा हैं लेकिन पिछले 4 से 5 दिनों से हो रही भीषण बारिश और भूटान से आने वाले पानी के चलते नदी के तटबंध कई जगह टूट गए थे और नेशनल हाइवे 15 पर कई किलोमीटर तक पानी चला था। जैसा कि बोरगांव के पास हुआ था। 

भारत मौसम विभाग ने असम के लिए 16 से 18 जून के बीच अत्यधिक बारिश का रेड अलर्ट किया था। जिसके चलते ननोई समेत राज्य की 6 नदियां खतरे ने निशान के काफी ऊपर बह रही थीं।

बोरगांव से करीब 6 किलोमीटर दूर स्थित मंगलदोई ( जिला मुख्यालय) में हाइवे के किनारे की जिला कृषि कार्यालय स्थित है। अधिकारियों के मुताबिक वहां कई  दिनों तक कई फीट पानी भरा रहा।

भाभेन सहारिया कहते हैं कि पूरी ज़िन्दगी में उन्होंने बाढ़ का ऐसा रूप नहीं देखा। फोटो – अरविंद शुक्ला /कार्बनकॉपी

घर डूबे, फसलें भी चौपट 

जिले के एसडीओ बागवानी और आपदा प्रबंधन के प्रभारी के.के पंडित के मुताबिक दरांग में दो बार बाढ़ आई पहले मई के मध्य में आई फिर 16 जून को, मई में यहां पहले कभी बाढ़ नहीं आती थी। दूसरे दौर भी बाद बहुत भयावह थी, प्रदेश के 5 सबसे अधिक प्रभावित ज़िलों में दरांग भी शामिल है।  

पंडित कहते हैं, ” इस बाढ़ में जिले की कुल 75 में से 72 ग्राम पंचायतों के 417 राजस्व गांव प्रभावित हुए। 84946 किसान परिवार चपेट में आए। बाढ़ में 9997 हेक्टेयर क्षेत्र डूबा था, जबकि अभी तक के अनुमान के मुताबिक 8896 हेक्टेयर फसल का नुकसान हुआ। मुख्य जो फसलें पूरी तरह या आंशिक रूप से बर्बाद हुई उनमें गर्मियों का धान, बोरो धान, जूट, मक्का और खरीफ की सब्जियां शामिल हैं। प्रभावित किसानों को मुआवजा देने के लिए जिला आपदा प्रबंधन अथॉरिटी लिस्ट बना रही है। हम लोग किसानों की बाढ़ प्रतिरोधी धान की नर्सरी मुफ्त दे रहे हैं।”

क्लाइमेट चेंज का स्पष्ट असर 


इस भारी नुकसान के लिए पंडित जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को जिम्मेदार मानते हैं। उनका कहना है, “पहले ये सब नहीं होता था, ग्लोबल वार्मिंग के चलते बहुत कुछ होने लगा है। बैसाख (अप्रैल-मई) के आखिर में बाढ़ नहीं आती थी। क्लाइमेट में बदलाव से मानसून सीजन पहले शुरु हो रहा है। प्री मानसून और मानसून के बीच जो दिन हुआ करते थे वो खत्म हो गये हैं। चार से 5 महीने रेनी सीजन हो रहें। इस बार भी मार्च से अब तक करीब 60 फीसदी दिन बारिश के रहे हैं।”

महिलाओं और बच्चों को हर साल बाढ़ की सबसे अधिक चोट झेलनी पड़ती है। फोटो – अरविंद शुक्ला/ कार्बनकॉपी

बदले मौसम को लेकर दरांग के पड़ोसी जिले उदालगुड़ी के किसान बिनोई डैमारी (50 वर्ष) कहते हैं, “मौसम में कुछ ऊपर नीचे हुआ है।  पानी (बाढ़) तो अक्सर कई बार सीजन में आती थी लेकिन ऐसा नहीं होता था।” वह दिखाते हैं कि कैसे भूटान के पहाड़ों से आए रेत वाले पानी के चलते खेतों में कई फुट मिट्टी जम गई हैं इसलिए अब खरीफ की फसल होना मुश्किल है।
उदालगुड़ी जिले की सीमा भूटान से मिलती हैं। जबकि एक सीमा पड़ोसी राज्य अरुणाचल  प्रदेश से भी मिलती है। भूटान और अरुणाचल से निकल कर दो नदियां जहां मिलती हैं वहां और धनश्री सिंचाई प्रोजेक्ट के लिए बांध हैं। स्थानीय लोगों के मुताबिक निचले असम में इन्हीं नदियों के पानी ने नुकसान पहुंचाया है।

बाढ़ प्रभावित एक और गांव में पिछले 15 दिनों से मायूसी पसरी है। पानी खत्म हो गया है, लेकिन गोलंडी नदी के साथ आई रेत घरों में भर गई है। ग्रामीण अपने घरों से गाद और कचरा साफ करने की कोशिश कर रहे हैं।
इस गांव में रहने वाले छात्र राजू चौहान के मुताबिक बाद में उनके गांव के दो लोगों की जान गई। कई जानवर बह गए। बहुत नुकसान हैं देखो लोग कैसे आगे रहेंगे।”

पानी उतर रहा पर खौफ बरकरार


निचले असम में बाढ़ का पानी लगभग उतर चुका है। पूरे प्रदेश में बाढ़ का प्रकोप कम हुआ है। खबर लिखे जाने तक 4 जुलाई को जारी असम राज्य आपदा प्रबंधन के रिपोर्ट के मुताबिक 24 जिलों के अब 14 लाख लोग प्रभावित क्षेत्र में हैं। बाढ़ से प्रभावित एरिया 43779.12 हेक्टेयर हैं जबकि 155271 लोग कैम्प में रह रहे हैं। 535941 पशु प्रभावित हैं। 

असम की नदियों जुलाई के पहले हफ्ते में भी उफान पर हैं और आसमान में छाए काले बादलों को देखकर लोग भयभीत होते हैं। यहां मॉनसून का मौसम हमेशा लोगों को त्रस्त करता रहा लेकिन अब जलवायु परिवर्तन ने इसे और अधिक विकट बना दिया है।

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