दुनिया के वैज्ञानिक और शोधकर्ता कह रहे हैं कि हीटवेव सबसे घातक आपदाओं का रूप ले रही है।
- इस साल जैसी हीटवेव पहले कभी-कभार ही हुआ करती थी लेकिन क्लाइमेट साइंटिस्ट कह रहे हैं कि जलवायु परिवर्तन के कारण भारत और पाकिस्तान में ऐसी हीटवेव की संभावना 30 गुना तक बढ़ गई है।
- कई देशों के शोधकर्ताओं और जलवायु वैज्ञानिकों के साथ मिलकर वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन इनिशिएटिव (डब्लू डब्लू ए) ने यह अध्ययन किया है जिसमें भारत के विशेषज्ञ भी शामिल हैं।
- डब्लू डब्लू ए द्वारा की गई यह अपने प्रकार की पहली स्टडी है जिसमें उत्तर-पश्चिम भारत और दक्षिण-पूर्व पाकिस्तान के अधिकतम औसत तापमान का बारीकी से अध्ययन किया गया।
- शोधकर्ताओं का अनुमान धरती के तापमान में अब तक 1.2 डिग्री की बढ़ोतरी पर आधारित है। डब्लूडब्लूए का कहना है कि अगर तापमान में 2 डिग्री तक बढ़ोतरी हुआ तो हर पांच साल में ऐसी हीटवेव की मार पड़ सकती है।
- वैज्ञानिक कहते हैं हीटवेव से मरने वालों की संख्या बहुत कम बताई जाती है और कोई आंकड़ा सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं है। यह एक समस्या है।
- इस साल हीटवेव के दौरान जहां भारत में फॉरेस्ट फायर की घटनायें हुईं वहीं पश्चिमी पाकिस्तान में इस असामान्य गर्मी से हिमनदीय झील भी फटी।
- रिपोर्ट कहती है कि हीटवेव का सबसे अधिक असर गरीब मज़दूरों और रेहड़ी -पटरी वालों पर होता है जो खुले में काम करते हैं। भारत में 50 प्रतिशत से अधिक वर्कफोर्स इसी तरह के लोग हैं।
- हीटवेव के कारण खाद्य सुरक्षा को भी बड़ी ख़तरा पहुंचा है। भारत ने इस साल 10 मिलियन टन गेहूं निर्यात का लक्ष्य रखा था लेकिन समय पूर्व पड़ी गर्मी के कारण गेहूं की फसल पर असर पड़ा जिस कारण उसे निर्यात पर रोक लगानी पड़ी। इससे अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कीमतें बढ़ गई।
- हीटवेव के कारण सूखे की घटनायें और जल संकट भी बढ़ सकता है। जिन लोगों पर इसकी मार पड़ती है उनके पास सामाजिक सुरक्षा का कवच भी नहीं होता।
- वैज्ञानिक कहते हैं कि जहां इस हीटवेव के कुछ नुकसान ज़रूर होंगे पर हीट एक्शन प्लान (जिसमें अर्ली वॉर्निंग के उपाय हों) और एडाप्टेशन की नीति बनाकर मरने वालों की संख्या कम की जा सकती है।
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