सात ताल में राज्य सरकार एक सौन्दर्यीकरण योजना के तहत काम कर रही है लेकिन विशेषज्ञ इसे लेकर चेतावनी दे रहे हैं। फ़ोटो: कविता उपाध्याय

संकट में झीलों की नगरी

उत्तराखंड में झीलों की नगरी नैनीताल और उसके आसपास का इलाका कई वजहों से संकट में है। कार्बनकॉपी हिन्दी पर दो हिस्सों में यह विशेष सीरीज़ जिसमें इसके कई पहलुओं पर नज़र डालेंगे। पहला हिस्सा सातताल में प्रस्तावित सौन्दर्यीकरण को लेकर जिसका व्यापारी विरोध कर रहे हैं। 

कोहरा अभी छंटा ही है। सामने एक होर्डिंग पर विलुप्त होती सुनहरी महाशीर का चित्र बना हुआ है। आसपास खाने-पीने की दुकानें हैं जहाँ पर्यटकों की भीड़ है। इनके पीछे, ख़ूबसूरत सातताल झील और उसकी सीमा से लगे हुए हैं घने जंगल। कोरोना वायरस के कारण तालाबन्दी हटने के बाद पर्यटक इसी ख़ूबसूरती का मज़ा लेने यहाँ आए हैं। 

पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र 

सातताल में साल भर पर्यटकों की अच्छी संख्या रहती है।
फ़ोटो: कविता उपाध्याय

दिल्ली से लगभग 300 किलोमीटर दूर बसा सातताल झीलों से घिरा एक छोटा सा पर्यटन स्थल है, जिसके समीप भीमताल, नौकुचियाताल, और नैनीताल जैसी प्रसिद्ध झीलें हैं। सातताल की विशेषता है कि इसकी अपनी कोई स्थाई जनता नहीं है। केवल 8-10 परिवार, जो रोज़ी के लिये सीधे या परोक्ष रूप से पर्यटन पर निर्भर हैं, यहाँ रहते हैं। हर साल उत्तराखंड के नैनीताल ज़िले में 13 लाख से ज़्यादा पर्यटक आते हैं, जो अक्सर सातताल का भ्रमण भी करते हैं। स्थानीय लोग भी वीकएंड में यहाँ छुट्टी मनाने आते हैं। 

अब कुमाऊँ मण्डल विकास निगम (के.एम.वी.एन.) और नैनीताल ज़िला स्तरीय विकास प्राधिकरण सातताल में एक सौन्दर्यीकरण प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं जिसमें ₹ 6 करोड़ की लागत से झील से लगे 14,461 वर्ग मीटर क्षेत्र में पार्क, सैल्फ़ी प्वाइंट, दुकानें, ओपन एयर थिएटर, बर्ड इको पार्क और नावों के लिए डेक बनेगा। प्रशासन का कहना है कि यह काम झील के किनारे बढ़ रहे अवैध निर्माण को रोकने, एवं पर्यटन को बढ़ावा देने का महत्वपूर्ण ज़रिया है।

व्यापारियों का विरोध, जैव-विविधता को ख़तरा 

इस प्रोजेक्ट पर कार्य जून 2021 में शुरू हुआ, लेकिन पर्यटन व्यवसाय से जुड़े लोग इसका विरोध कर रहे हैं। यहाँ सूरिया गाँव के निवासी, आग्नेय, जैव-विविधता और पर्यावरण पर काम कर रहे ‘सातताल कंज़र्वेशन क्लब’ से जुड़े हैं और सरकार की ताज़ा कोशिशों के ख़िलाफ़ हैं। उनके मुताबिक, “सातताल को वैसे ही रहने दिया जाए, जैसा वह है। ज़्यादा छेड़-छाड़ यहाँ की जैव-विविधता को नुकसान पहुंचाएगी।”

सातताल में बांज और चीड़ के घने जंगल हैं, जहाँ पक्षियों की 300 से अधिक प्रजातियां और 500 से अधिक प्रकार की तितलियां पाई जाती हैं, जिन्हें जैव-विविधता की रीढ़ कहा जाता है। पिछले नौ सालों से सातताल में नैचुरलिस्ट एवं बर्ड वॉचर्स के लिए गाइड का कार्य करने वाले दिव्यांशु बनकोटी बताते हैं कि सातताल देश के सर्वश्रेष्ठ बर्ड वॉचिंग स्थलों में से है। 

सातताल झील में सुनहरी महाशीर का संरक्षण भी होता है। 
फ़ोटो: कविता उपाध्याय

ग्यारह वर्षों से वाइल्डलाइफ एवं बर्ड टूरिज़्म से जुड़े आशीष बिष्ट के मुताबिक सातताल में विभिन्न विलुप्त होती प्रजातियां, जैसे ग्रे क्राउन प्रिनिया (चिड़िया), हिमालयन सीरो (पशु), और फॉक्सटेल ऑर्किड (फूल) पाई जाती हैं। इसके साथ ही, सातताल झील सुनहरी महाशीर के प्रजनन के लिए एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है।

क्या प्रशासन बरतेगा सावधानी? 

प्राधिकरण सचिव पंकज कुमार उपाध्याय ने कहा तो है कि निर्माण करते समय इस बात का ध्यान रखा जाएगा कि पेड़ न काटे जाएँ, और सीमेंट का उपयोग सीमित रखा जाए, परन्तु सातताल कंज़र्वेशन क्लब के लोगों को प्रशासन के इस आश्वासन पर भरोसा नहीं। उनके मुताबिक झील के किनारे दुकानें, और 40 मीटर लंबी सुरक्षा दीवार जैसे काम सीमेंट के बिना नहीं होंगे। निर्माण कार्यों के लिए भारी मशीनों का प्रयोग भी होगा ही। 

पिछली 24 जून को यहाँ  सातताल झील के किनारे एक जे.सी.बी. मशीन देखे जाने से लोगों की आशंका को बल मिला, लेकिन के.एम.वी.एन. के प्रबंध निदेशक नरेंद्र भंडारी के मुताबिक जे.सी.बी. झील के किनारे रास्ता बनाने के लिए लाई गई थी ताकि निर्माण कार्य हेतु इस रास्ते से भविष्य में वाहन लाए जा सकें। सातताल कंज़र्वेशन क्लब के सदस्य विक्रम कंडारी, जो कि प्रत्यक्षदर्शी हैं, झील के उस छोर की ओर इशारा करते हैं जहाँ उन्होंने जे.सी.बी. द्वारा मलबे को झील में डलता हुआ देखा था। उनका कहना है, “कुछ वर्ष पूर्व प्रशासन द्वारा झील के किनारे सजावट के लिए कुछ पेड़ लगाए गए थे। जे.सी.बी. ने वह भी उखाड़ दिए।”

जानकारों की राय 

हाइड्रोजियोलॉजिस्ट हिमांशु कुलकर्णी ‘एडवांस्ड सेंटर फॉर वॉटर रिसोर्स डेवलपमेंट एंड मैनेजमेंट’ के कार्यकारी निदेशक हैं। उनके मुताबिक, “इस प्रोजेक्ट पर किसी भी प्रकार का कार्य अध्ययन के आधार पर ही होना चाहिए, वर्ना कैसे पता चलेगा कि इन कार्यों का पर्यावरण और जैव-विविधता पर कितना प्रभाव पड़ेगा?”

प्राधिकरण सचिव उपाध्याय का मानना है कि इस परियोजना में विशेषज्ञों के दिशा-निर्देश की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि यह सिर्फ़ स्थानीय पर्यटन को बढ़ाने और झील के पास बनी अवैध दुकानों और रेस्टोरेंट को हटाने हेतु है।

रोज़गार की शिकायत 

प्रशासन के दावों के बावजूद, यहाँ लोगों को अवैध दुकानों के बदले सरकारी दुकानें देने से लेकर उनके रहने की व्यवस्था को लेकर कई सवाल हैं। माधुली देवी (50) अपने परिवार के साथ यहाँ एक रेस्टोरेन्ट चलाती हैं। इस प्रोजेक्ट के अंतर्गत उनको जो दुकान मिलनी है, वह उनकी पूर्ववर्ती दुकान की एक-तिहाई है। रेस्टोरेन्ट के पीछे ही वह अपने परिवार के साथ रहती हैं। वह कहती हैं, “मुझे यहाँ रहते हुए 30 साल से ज़्यादा हो गए हैं। मेरे बच्चे यहीं पैदा हुए। पति की मृत्यु यहीं हुई। पर प्रशासन कहता है हमें अपनी दुकान के बदले एक छोटी दुकान ही मिलेगी। ऐसे में हम रहेंगे कहाँ?” 

लगभग 8-10 परिवार यहाँ अपने-अपने रेस्टोरेन्ट के पीछे ही अस्थाई बसेरे बनाए हुए हैं। बाहर से इन सभी बसेरों की दीवारें टिन की दिखती हैं। अंदर कुछ दीवारें सीमेंट की हैं, तो कुछ केवल प्लाईवुड की। यह सभी स्टेकहोल्डर (हितधारक) प्रयासरत हैं कि प्रशासन इनसे बात करे, परन्तु अभी तक कोई सफलता नहीं मिल पाई है।

गौरी राणा (50), इस झील के समीप एक कैम्पिंग साइट चलाते हैं। उनका दावा है कि वह पिछले 25 वर्षों में कई पेड़ सातताल के जंगलों में लगा चुके हैं। वह कहते हैं, “हम केवल इतना चाहते हैं कि प्रशासन के अधिकारी स्टेकहोल्डर्स से बात करें। बातचीत करने से ही हल निकलेगा।” 

अस्थाई होने के कारण अभी अधिकांश दुकानें प्लाईवुड की हैं। परन्तु, नई दुकानें सीमेंट की होंगी। स्थानीय लोगों को डर है कि कहीं यह सातताल के नैनीताल जैसा कंक्रीट का जंगल बनने की शुरुआत तो नहीं! राणा कहते हैं, “नैनीताल ‘पॉइंट ऑफ नो रिटर्न’ पर पहुंच गया है। चाहे कुछ भी हो जाए, हम सातताल को दूसरा नैनीताल नहीं बनने देंगे।”

प्रशासन के अनुसार, स्टेकहोल्डर्स से बात तो हुई है लेकिन वर्ष 2014 में। प्राधिकरण सचिव उपाध्याय कहते हैं कि तब 20 दुकानदार चिन्हित किए गए थे जिन्हें उनकी अवैध अस्थाई दुकानों के बदले सीमेंट की पक्की, सरकारी दुकानें दी जानी थीं। उन्होंने कहा, “हर वर्ष कुछ नए व्यापारी यहाँ आते हैं, और पुराने व्यापारी अपना क्षेत्र बढ़ाते ही जा रहे हैं। इन सभी को संतुष्ट करना हमारे लिए संभव नही है। इसलिए हम 2014 के सर्वे के अनुसार चिन्हित किए गए 20 दुकानदारों को ही दुकानें देंगे।”

(अगले भाग में पढ़िये: नैनीताल के पास सूखाताल में निर्माण कार्य से नैनी झील को ख़तरा और जलसंकट) 

कविता उपाध्याय पत्रकार और शोधकर्ता हैं जो हिमालयी क्षेत्रों के पर्यावरण से जुड़े मुद्दों पर लिखती हैं। वे ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी से वॉटर साइंस, पॉलिसी एंड मैनेजमेंट में ग्रेजुएट हैं।

+ posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.