नैनी झील अपने अस्तित्व के लिए अपने आस-पास की अन्य झीलों पर निर्भर है। Photo: Incorelabs/Wikimedia Commons

उत्तराखंड: खतरे में है सूखाताल का अस्तित्व, कैसे बचेगा नैनीताल

जिस नैनीताल झील पर कस्बे की अर्थव्यवस्था फली-फूली है, आज उसपर भी सूखने का खतरा मंडराने लगा है।

नैनीताल झील की जीवन रेखा के रूप में जाने वाली सूखाताल झील का अस्तित्व खतरे में है। इस बारे में 100 से भी ज्यादा पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने उत्तराखंड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को एक पत्र भेजा है, जिसमें इस झील को बचाने की गुहार लगाई है।

सूखाताल, नैनी झील का मुख्य पुनर्भरण क्षेत्र है। नैनी झील अपने अस्तित्व के लिए अपने आस-पास की अन्य झीलों पर निर्भर है, जिनमें इससे करीब 800 मीटर की दूरी पर स्थित सूखाताल सबसे महत्वपूर्ण है। लेकिन अब खुद सूखाताल ही अपने अस्तित्व के लिए जद्दोजहद कर रहा है, क्योंकि विकास के नाम पर होते अवैध निर्माण, अतिक्रमण और डाले जा रहे कचरे के कारण यह झील सूखती जा रही है।

गौरतलब है कि इस मामले में कोर्ट ने स्वयं संज्ञान लेते हुए 2 मार्च 2022 को एक आदेश जारी किया था, जिसमें इसे एक अति गंभीर मुद्दा बताया था। इस पर अगली सुनवाई 21 मार्च 2022 को होनी थी। इसके बावजूद पिछले आठ महीनों में इस मामले में अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है।

हालांकि कोर्ट ने तब आदेश दिया था, “हमें इस मामले में उत्तर देने के लिए एक बहुत ही गंभीर प्रश्न का पता चलता है… चूंकि मामला बहुत जरूरी है, इसलिए इसे जनहित याचिकाओं की सूची में प्रत्येक तिथि पर ‘नए प्रवेश’ मामले के रूप में सूचीबद्ध किया जाएगा।“ लेकिन इसके बावजूद सुनवाई न होना स्पष्ट तौर पर इस झील के प्रति उदासीनता को दर्शाता है।

सूखाताल मामले पर सुनवाई न होने पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए पत्र के हस्ताक्षरकर्ताओं में से एक का कहना है कि “भारतीय हिमालयी क्षेत्र में पारिस्थितिकी और आपदाओं की रोकथाम के लिए महत्वपूर्ण कई जरूरी मामलों की तरह, यह जनहित याचिका भी एक ‘ब्लैक होल’ में चली गई है, जबकि नैनीताल में रहने वाले लोग बड़े पैमाने पर किसी आपदा के होने का इंतजार कर रहे हैं।“

यह समय बहुत नाजुक है क्योंकि सूखाताल झील सूख गई है और बढ़ते अतिक्रमण और इसमें डाले जा रहे कचरे के प्रति अतिसंवेदनशील हो गई है। इस पर नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी (एनआईएच), इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, रुड़की (आईआईटी-आर) और सेंटर फॉर इकोलॉजी डेवलपमेंट एंड रिसर्च (सीईडीएआर), देहरादून द्वारा किए गए अध्ययनों से भी संकेत मिलता है कि सूखाताल झील भूमिगत पानी के प्रवाह के माध्यम से नैनीताल झील में पानी के प्रवाह को बनाए रखने में महत्वपूर्ण योगदान देती है।

लेकिन अतिक्रमण, निर्माण और कचरे की डंपिंग के चलते सूखाताल झील की सतह और उसकी नैनीताल झील को रिचार्ज करने की क्षमता में अभूतपूर्व गिरावट आई है। पता चला है कि 2002 से 2016 के बीच, नैनी झील में 10 बार पानी ‘जीरो लेवल’ यानी इसको बनाए रखने के न्यूनतम स्तर पर पहुंच गया था।

उत्तराखंड में विकास के नाम पर क्यों हो रहा है विनाश

गौरतलब है कि 2020 में नैनीताल उच्च न्यायालय ने झील पर अतिक्रमण करने वाली 44 इमारतों को ध्वस्त करने का आदेश दिया था, लेकिन इसपर भी अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है। ऐसे में जिस नैनीताल झील पर कस्बे की अर्थव्यवस्था फली-फूली है, आज उसपर भी सूखने का खतरा मंडराने लगा है।

इस क्षेत्र का अध्ययन करने वाले विशेषज्ञ, प्रकृति द्वारा डिजाइन किए गए इस महत्वपूर्ण इकोलॉजिकल पुनर्भरण क्षेत्र को बहाल और संरक्षित करने के एकमत से पक्षधर हैं। इतना ही नहीं सूखाताल, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा स्थापित दिशानिर्देशों के अनुसार एक वेटलैंड के रूप में घोषित करने की सभी शर्तों को पूरा करता है ऐसे में उसी के अनुसार संरक्षित किया जाना चाहिए।

सूखाताल झील के किनारे पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए एक कृत्रिम जल निकाय बनाने की भी योजना है। लेकिन इस योजना से पहले इस पर क्षेत्र की वहन क्षमता पर कोई अध्ययन नहीं किया गया और न ही उसके विषय में कोई वैज्ञानिकों अवलोकन किया गया कि कैसे इस झील को पुनर्जीवित किया जाए।

जानकारी मिली है कि इस झील के तल पर जीओ सिंथेटिक की परत बिछाई जा रही है। जिससे लेक का रिसाव धीरे धीरे होगा। इससे भूमिगत जलस्रोत और नैनी झील की पुनःपूर्ति बाधित होगी, जो हर दिन 1.8 से दो करोड़ लीटर पीने का पानी उपलब्ध कराती है। यदि इसका वार्षिक हिसाब लगाया जाए तो यह नैनी झील में मौजूद पानी की कुल मात्रा के बराबर है। ऐसे में पानी की पुनःपूर्ति के बिना, नैनी झील के जल स्तर में गिरावट जारी रहेगी और इसका खामियाजा शहर को भी भुगतना होगा।

इतना ही नहीं नैनीताल एक भूकंप संभावित क्षेत्र है, जो जोन IV यानी गंभीर तीव्रता वाले क्षेत्र के अंतर्गत आता है। ऐसे में भूकंप की स्थिति में, अपेक्षाकृत नाजुक सूखाताल का तल एक स्थायी जलाशय के भार से नीचे बैठ सकता है जिसके चलते शहर और लोगों को भारी क्षति का सामना करना पड़ सकता है। पहले ही बाढ़, बादल फटने जैसी घटनाओं की बढ़ती तीव्रता नई चुनौतियां पैदा कर रही हैं।

सूखाताल में एक स्थाई झील के निर्माण का अर्थ यह भी है कि मानसून के दौरान, सूखाताल जलग्रहण क्षेत्र से पानी को नैनी झील की ओर भेजा जाएगा, जो नैनी झील में आने वाली बाढ़ की सम्भावना को और बढ़ा देगा जैसा कि अक्टूबर 2021 में देखा गया था।

नैनी झील से पानी के अतिप्रवाह को बलिया नाला के माध्यम से निकाला जाता है, जोकि देखा जाए तो भू-स्खलन की दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील क्षेत्र है। इससे दोनों ही मामलों में जान-माल के काफी नुकसान की आशंका है।

ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि बार-बार विरोध के बावजूद इस वेटलैंड को ‘बहाली’ की आड़ में कैसे और क्यों नष्ट किया जा रहा है। सूखाताल में बिना सोचे समझे होते इस विकास से न केवल नैनीताल में रहने वाले लोगों की जीविका बल्कि साथ ही उत्तराखंड की जीवन स्रोत नैनी झील की इकोलॉजी पर भी इसका घातक असर होगा।

देखा जाए तो उत्तराखंड ‘विकास’ के नाम पर बेरोकटोक कंक्रीट का जंगल बनता जा रहा है। अब इस तरह के ‘विकास’ के विनाशकारी परिणाम भी इस संवेदनशील पहाड़ी राज्य के अलग-अलग हिस्सों में नजर आने लगे हैं।

यह रिपोर्ट डाउन टू अर्थ से साभार ली गई है

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.