वायु प्रदूषण के मामले में भारत की रैंकिंग तीन स्थान गिरी है, लेकिन अभी भी समस्या गंभीर बनी हुई है।

दुनिया के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में से 14 भारत में

सबसे खराब वायु गुणवत्ता वाले देशों की सूची में पिछले साल से बेहतर रैंकिंग के बावजूद, भारत ने 2022 में वायु प्रदूषण सूचकांक पर खराब प्रदर्शन किया। वैश्विक वायु गुणवत्ता पर आई क्यू एयर की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया के शीर्ष 20 सबसे प्रदूषित शहरों में से 14 भारत में हैं। 2022 में पांच सबसे प्रदूषित राष्ट्र चाड, इराक, पाकिस्तान, बहरीन और बांग्लादेश थे। भारत पिछले वर्ष की रैंकिंग से तीन स्थान गिरकर 8वें स्थान पर आ गया, जिसमें बुर्किना फासो और कुवैत क्रमशः छठवें और सातवें स्थान पर रहे। शीर्ष 10 में अन्य दो देश मिस्र और ताजिकिस्तान हैं। 

विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट विश्व स्तर पर वायु गुणवत्ता की स्थिति की जांच करती है। इसमें 131 विभिन्न देशों, क्षेत्रों और इलाकों के 7,323 शहरों का पीएम2.5 वायु गुणवत्ता डेटा शामिल है।

अरावली में हो रहा अवैध खनन और अतिक्रमण दिल्ली-राजस्थान में धूल भरी आंधियों को दे रहा है बढ़ावा 

राजस्थान केंद्रीय विश्वविद्यालय द्वारा किए एक अध्ययन के मुताबिक, अवैध खनन और अतिक्रमण के कारण अरावली की पहाड़ियां क्षीण हो रही हैं, और इससे राजस्थान में धूल भरे तूफानों में वृद्धि हुई है। इन तूफानों का असर दिल्ली-एनसीआर तक पड़ रहा है। 

रिपोर्ट से पता चला है कि पिछले दो दशकों में हरियाणा और उत्तरी राजस्थान में मौजूद ऊपरी अरावली रेंज की कम से कम 31 पहाड़ियां लुप्त हो चुकी हैं। इन पहाड़ियों के विनाश से थार रेगिस्तान में चलने वाले रेतीले तूफानों के लिए दिल्ली-एनसीआर और पश्चिमी उत्तरप्रदेश तक पहुंचने का रास्ता साफ हो गया है। शोधकर्ताओं का कहना है कि ‘इन पहाड़ियों का लुप्त होना बढ़ते रेतीले तूफानों के कारणों में से एक है’।

उनके मुताबिक भरतपुर, ढोलपुर, जयपुर और चित्तौड़गढ़ जैसे क्षेत्रों में पहाड़ियों के लुप्त होने से सामान्य से ज्यादा सैंडस्टॉर्म आ रहे हैं।

देश में बड़े पैमाने पर धूल से होने वाले वायु प्रदूषण को ध्यान में रखते हुए, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने हाल ही में भारत के स्टोन क्रेशर सेक्टर के लिए दिशानिर्देश प्रकाशित किए थे।  यह सेक्टर बड़े पैमाने पर व्यावसायिक धूल उत्सर्जन और गंभीर वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार है।  

कश्मीर में कैंसर के मामलों में वृद्धि के पीछे वायु प्रदूषण

डॉक्टर्स एसोसिएशन कश्मीर (डीएके) ने कहा है कि घाटी में बढ़ते कैंसर के मामलों का कारण पर्यावरण प्रदूषण है, जो अब भारी मात्रा में बढ़ गया है।

वाहनों, निर्माण, ईंट भट्ठों की बढ़ती संख्या के कारण पिछले कुछ वर्षों से कश्मीर में हवा की गुणवत्ता लगातार बिगड़ रही है। सीमेंट और अन्य कारखाने जो प्रदूषकों का उत्सर्जन करते हैं और हवा को काफी प्रदूषित करते हैं, वह घाटी में कैंसर के बढ़ते मामलों में योगदान दे रहे हैं। शोध से पता चला है कि प्रदूषित हवा से फेफड़ों के कैंसर का जोखिम बढ़ जाता है। कश्मीर में ज्यादातर कैंसर-पीड़ित पुरुषों को फेफडों का कैंसर है। 

वहीं प्रतिबंध के बावजूद कश्मीर में पॉलीथिन और प्लास्टिक उत्पादों का उपयोग जारी है। डॉक्टरों ने कहा कि प्लास्टिक एक रसायन बिस्फेनॉल ए (बीपीए) छोड़ता है जो स्तन कैंसर का खतरा बढ़ाता है। घाटी में कैंसर पीड़ित महिलाओं में स्तन कैंसर की प्रमुखता है।

वायु प्रदूषण मॉनिटर में मिल सकता है जैव विविधता के आंकड़ों का खज़ाना  

एक नए शोध में पाया गया है कि वायु-गुणवत्ता-निगरानी प्रणाली संभावित रूप से पर्यावरणीय डीएनए, या ईडीएनए को कैप्चर और स्टोर करती हैं। पौधे, जानवर और अन्य जीव डीएनए को मिट्टी, पानी और हवा में छोड़ते हैं जिन्हें एकत्र करके विश्लेषण किया जा सकता है। यह डीएनए कई रूपों में पाया जाता है, जिसमें त्वचा कोशिकाएं, बाल, मल और शल्क शामिल हैं। 

शोधकर्ताओं ने लंदन के कुछ क्षेत्रों में एकत्र किए गए वायु-गुणवत्ता-निगरानी प्रणाली नमूनों को देखा, तो उन्हें दो स्थानों पर फैले 180 पौधों, कवक, कीड़े, स्तनधारी, पक्षी, मछली, उभयचर और अन्य जीवों के प्रमाण मिले। यह परिणाम इन क्षेत्रों में पाए जाने वाले जीवों के प्रकार पर उपलब्ध डेटा के अनुरूप हैं। यह निष्कर्ष धरती पर जैव-विविधता की मॉनिटरिंग के लिए हमारे दृष्टिकोण को पूरी तरह से बदल सकते हैं।

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