इंटरनेशनल फाइनेंस कॉर्पोरेशन (आईएफसी) जो कि विश्व बैंक का हिस्सा है, नये कोयला प्रोजेक्ट्स के लिये ऋण नहीं देगा। पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने इसका स्वागत किया है और कहा है यह कदम बहुत पहले ही उठा लिया जाना चाहिये था।
अब तक चली आ रही ग्रीन इक्विटी एप्रोच नीति (जीईए) के तहत जिन बिचौलिया वित्तीय संस्थानों (जैसे इन्वेस्टमैंट बैंक) को कॉर्पोरेशन कर्ज़ देता था उन पर यह शर्त होती थी कि वे 2025 तक कोयले में निवेश आधा और 2030 तक पूरी तरह खत्म कर देंगे, हालांकि उन पर नये कोयला प्रोजेक्ट में निवेश न करने की बाध्यता नहीं होती थी।
कोयले में निवेश करने वाले वित्तीय संस्थानों (या बैंकों) को आईएफसी ने मई 2019 से अब तक 40 बिलियन डॉलर की वित्तीय मदद की है। नियमों में ढिलाई के कारण इन संस्थानों ने पिछले 5 साल में इंडोनेशिया और विएतनाम समेत कई देशों में बड़े नये कोयला प्रोजेक्ट्स में पैसा लगाया।
भारत में आज बहुत सारे वित्तीय संस्थान हैं जिन्होंने इस तरह निवेश किया है। वर्तमान में 88 संस्थानों के करीब 5 बिलियन अमेरिकी डॉलर (40,000 करोड़ रुपये) एनर्जी और उससे जुड़े प्रोजेक्ट्स में लगे हैं और इसमें नवीनीकरणीय ऊर्जा भी शामिल है।
साल 2021 में आईएफसी और भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) के बीच एक करार हुआ था। इसमें आईएफसी के शेयरहोल्डर बनने के बाद बैंक द्वारा ‘किसी नये कोल प्रोजेक्ट को फंडिंग बन्द करने की प्रतिबद्धता’ का हवाला है।
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