दुनिया भर में कोयले की मांग इस साल अधिकतम सीमा पर पहुंच सकती है, और फिर 2026 तक इसमें 2.3% की गिरावट आने की उम्मीद है, अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) ने अपनी ताज़ा वार्षिक कोयला बाज़ार रिपोर्ट में ऐसा कहा है। ऐसा पहली बार है कि रिपोर्ट ने पूर्वानुमान में ही कोयले की खपत में गिरावट की भविष्यवाणी की है।
आईईए की रिपोर्ट ‘कोल 2023 एनालिसिस एंड फोरकास्ट टू 2026‘ में कहा गया है कि 2023 में कोयले की वैश्विक मांग 1.4% बढ़कर पहली बार 8.5 बिलियन टन (850 करोड़ टन) से ऊपर जा रही है। लेकिन विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में कोयले की मांग में बहुत अंतर है। जहां यूरोपीय संघ और अमेरिका में 20% की रिकॉर्ड गिरावट के साथ, तमाम विकसित देशों में कोयले की मांग में तेजी से गिरावट हुई है, वहीं विकासशील देशों में यह अब भी बहुत अधिक है। ऊर्जा की बढ़ती मांग और कम हाइड्रोपॉवर उत्पादन के कारण, भारत में कोयले की मांग 8% और चीन में 5% बढ़ी है।
हालांकि रिपोर्ट में कहा गया है कि 2023 के स्तर के मुकाबले 2026 में कोयले की वैश्विक मांग 2.3% गिरेगी। रिपोर्ट के अनुसार यदि सरकारें स्वच्छ ऊर्जा बढ़ाने और मजबूत जलवायु नीतियां लागू करने की कोई घोषणा न भी करें, तो भी यह गिरावट होगी। इस गिरावट का एक बड़ा कारण होगा नवीकरणीय ऊर्जा में उल्लेखनीय विस्तार, जो आने वाले तीन सालों में कार्यान्वित होगा।
कोयले की जगह ले रही अक्षय ऊर्जा
कोयले की मौजूदा वैश्विक मांग के आधे से अधिक के लिए जिम्मेदार चीन है, और तीन सालों में दुनिया भर में अक्षय ऊर्जा का जो विस्तार होने वाला है, वह भी आधे से अधिक चीन में होगा। इसके चलते चीन में कोयले की मांग 2024 में गिरनी शुरू होगी और 2026 तक स्थिर हो जाएगी। तेजी से बढ़ती नवीकरणीय ऊर्जा के साथ-साथ, चीन में मौसम की स्थिति और अर्थव्यस्था में ढांचागत बदलाव के कारण भी कोयले की मांग पर असर होगा।
कोयले की मांग में इस संभावित गिरावट के ऐतिहासिक परिणाम होंगे। जहां एक ओर यह बिजली, स्टील, सीमेंट आदि के उत्पादन का सबसे बड़ा स्रोत है, वहीं मानव जनित कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन भी सबसे ज्यादा इसीसे होता है। हालांकि रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 2026 के दौरान भी कोयले की वैश्विक खपत 8 बिलियन टन के ऊपर ही रहेगी। यदि पेरिस समझौते के लक्ष्यों के हिसाब से उत्सर्जन कम करना है तो अनियंत्रित कोयले, यानी ‘अनअबेटेड कोल’ का प्रयोग बहुत तेजी से कम करना होगा।
आईईए के एनर्जी मार्केट और सुरक्षा निदेशक कीसुके सदामोरी के अनुसार कोयले की मांग में पहले भी गिरावट देखी गई है, लेकिन वह थोड़े समय के लिए थी और असाधारण घटनाओं से प्रेरित थी, जैसे सोवियत संघ का पतन या कोविड-19 महामारी। लेकिन अब जो गिरावट होगी वह आधारभूत होगी, जिसकी वजह होगी नवीकरणीय तकनीकों का लगातार हो रहा विस्तार। उन्होंने कहा कि कोयले के प्रयोग में बड़ा बदलाव संभव है, लेकिन यह बहुत हद तक इस बात पर निर्भर होगा कि एशिया के बड़े देशों में अक्षय ऊर्जा का कितना विस्तार होता है। अंतर्राष्ट्रीय जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अभी बहुत प्रयास करने होंगे।
एशिया में बढ़ रहा है कोयले का उपयोग और उत्पादन
रिपोर्ट ने पाया कि एशिया में कोयले की मांग और उत्पादन में तेजी से बदलाव हो रहा है। इस साल कोयले की वैश्विक खपत का तीन-चौथाई हिस्सा चीन, भारत और दक्षिण पूर्व एशिया में प्रयोग किया जाएगा। 1990 में यह हिस्सा केवल एक-चौथाई था। पहली बार अमेरिका से ज्यादा कोयले का प्रयोग दक्षिण पूर्व एशिया में होने की उम्मीद है, जो 2023 में यूरोपीय संघ में होनेवाली खपत से अधिक होगा।
2026 तक भारत और दक्षिण पूर्व एशिया ही एकमात्र ऐसे क्षेत्र होंगे जहां कोयले की खपत उल्लेखनीय रूप से बढ़ने की संभावना है। विकसित देशों में बिजली की मांग में वृद्धि कम हो रही है और नवीकरणीय ऊर्जा का विस्तार हो रहा है, जिसके कारण कोयले की खपत में गिरावट जारी रहेगी।
उधर कोयले के तीन सबसे बड़े उत्पादक — चीन, भारत और इंडोनेशिया — 2023 में उत्पादन के सभी रिकॉर्ड तोड़ने की राह पर हैं, जिससे वैश्विक उत्पादन में भी ऐतिहासिक वृद्धि होगी। यह तीन देश अब दुनिया के 70% से अधिक कोयले का उत्पादन करते हैं।
आने वाले वर्षों में मांग गिरने के कारण वैश्विक कोयला व्यापार में गिरावट आने की उम्मीद है। हालांकि, एशिया में मजबूत विकास के कारण 2023 में कोयला व्यापार एक नई ऊंचाई पर पहुंचेगा। चीन का आयात 450 मिलियन टन तक पहुंच सकता है, जो 2013 के पिछले वैश्विक रिकॉर्ड से 100 मिलियन टन से भी ज्यादा है। जबकि 2023 में इंडोनेशिया का निर्यात 500 मिलियन टन के करीब होगा — यह भी एक विश्व रिकॉर्ड है।
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