नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल यानी एनजीटी ने केंद्र से जले हुए कोयले के पर्यावरणीय रूप से खतरनाक अवशेषों के वैज्ञानिक उपयोग और निस्तारण की निगरानी के लिए फ्लाई ऐश प्रबंधन और उपयोग मिशन स्थापित करने को कहा है और यह भी निर्देश दिया है कि इसका पालन नहीं करने वाले कोयला संयंत्रों पर सख्त कार्रवाई करें। फ्लाई ऐश के सालाना निस्तारण की निगरानी के अलावा यह मिशन इस पर भी नज़र रखेगा कि थर्मल पावर प्लांट, कम से कम खतरनाक तरीके से, बड़े पैमाने पर 1,670 मिलियन टन ‘लिगेसी फ्लाई ऐश’ (थर्मल पावर प्लांट्स द्वारा लंबे समय से निर्मित फ्लाई ऐश) का निस्तारण कैसे करते हैं।
यह मिशन ऊर्जा, कोयला और पर्यावरण मंत्रालयों के शीर्ष अधिकारियों और राज्यों के मुख्य सचिवों द्वारा संयुक्त रूप से संचालित होगा। मिशन को एनजीटी की विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों के अनुसार लिगेसी फ्लाई ऐश के उपयोग और निस्तारण के लिए एक रोडमैप तैयार करना होगा। एनजीटी का आदेश 2020 की उस घटना के बाद आया है जब मध्य प्रदेश के सिंगरौली में सासन अल्ट्रा परियोजना में राखड़ बांध (फ्लाई ऐश डाइक) के टूटने के कारण तीन बच्चों सहित छह लोग मारे गए थे। विभिन्न बिजली संयंत्रों में डाइक टूटने की ऐसी कई घटनाएं हुई हैं जिनमें आसपास के ग्रामीणों के खेत और संपत्ति नष्ट हो गई है।
वायु और भूजल को ‘बड़ी मात्रा में’ प्रदूषित कर ही हरियाणा की 15 औद्योगिक इकाइयां बंद की गईं
भारत के हरित न्यायालय (एनजीटी) ने हरियाणा में पंद्रह रासायनिक औद्योगिक इकाइयों को वायु और भूजल को ‘बड़े पैमाने पर’ प्रदूषित करने के लिए बंद कर दिया है। यह कंपनियां बिना पर्यावरण मंजूरी (ईसी) और आवश्यक सुरक्षा उपायों के फॉर्मलाडेहाइड का निर्माण कर रही थीं। इन 15 औद्योगिक इकाइयों में से 10 यमुनानगर जिले में, दो झज्जर में, दो करनाल में और एक अंबाला में स्थित है। इन फैक्ट्रियां की चिमनियों से संघनन के दौरान बड़ी मात्रा में भाप निकलती है जो वायु प्रदूषण बढ़ाती है। रिपोर्ट ने यह भी पाया कि कुछ इकाइयों में भूमिगत टैंकों से कैंसरयुक्त मेथनॉल के रिसाव को रोकने के लिए कोई व्यवस्था नहीं थी, कैंसर से होने वाली राष्ट्रीय मौतों में से 39% हरियाणा राज्य में होती हैं।
केंद्र और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों के एक पैनल ने 25 अगस्त, 2021 को दायर उनकी रिपोर्ट में विसंगतियां पाईं। पर्यावरण वकील शिल्पा चौहान ने अवैध संचालनों की अनुमति के लिए राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को दोषी ठहराया है। चौहान ने डाउट टु अर्थ को बताया, “अब, उसी बोर्ड को एनजीटी द्वारा उल्लंघनों को देखने का काम सौंपा गया है,”
फसल अवशेष जलाने से होने वाला सेकेंडरी पार्टिकुलेट मैटर लंबी दूरी तय करता है: IIT अध्ययन
आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिकों के नए शोध के अनुसार, 2013 और 2014 के अक्टूबर और नवंबर के महीनों के दौरान फसल अवशेष जलाने का पीएम 2.5 के कंसंट्रेशन में हिस्सा दिल्ली में लगभग 31% (15% से 47% की रेंज में) और कानपुर में 6% से 36% की रेंज में लगभग 21% था। शोधकर्ताओं ने हिन्दुस्तान टाइम्स अख़बार को बताया कि अध्ययन में पाया गया कि पराली जलाने से सेकेंडरी पार्टिकुलेट मैटर बढ़ता है। वैज्ञानिकों ने कहा कि वाष्प और गैसें जैसे सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, गैर-मीथेन हाइड्रोकार्बन और गैर-मीथेन वाष्पशील कार्बनिक यौगिक जब गंगा बेसिन से होकर गुज़रते हैं तो फोटोकैमिकल प्रतिक्रियाओं के माध्यम से पार्टिकुलेट मैटर में बदल जाते हैं। यही कारण है कि पीएम2.5 के कंसंट्रेशन में उनका योगदान अधिक होता है। शोधकर्ताओं ने बताया कि आम तौर पर अध्ययन केवल फसल अवशेषों को जलाने से पार्टिकुलेट मैटर के उत्सर्जन की ही बात करते हैं। लेकिन यह पेपर इस बात पर भी प्रकाश डालता है कि फसल अवशेष जलाने से निकलने वाली गैसें और पार्टिकुलेट मैटर कानपुर तक की लंबी दूरी कैसे तय करते हैं।
अध्ययन की अवधि के दौरान, पीएम2.5 के कंसंट्रेशन में फसल अवशेष जलाने का योगदान दिल्ली में औसतन 72 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर और कानपुर में 48 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर था। अक्टूबर और नवंबर के दौरान दिल्ली में पीएम2.5 का औसत कंसंट्रेशन 246 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर (117 से 375 की रेंज में) और कानपुर में 229 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर (115 से 343 की रेंज में) था।
चीन ने ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन को शामिल कर बढ़ाया वायु प्रदूषण नियंत्रण का दायरा
रॉयटर्स ने बताया कि चीन डेटा गुणवत्ता और निगरानी में सुधार की एक नई पहल के अंतर्गत प्रमुख औद्योगिक सेक्टर्स और क्षेत्रों को ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को मापने की कार्रवाई करने का दबाव बनाएगा।
प्रारंभिक कार्यक्रम के तहत, चीन के कुछ सबसे बड़े कोयले से चलने वाले बिजली प्रदाताओं, स्टील मिलों और तेल और गैस उत्पादकों को इस साल के अंत तक व्यापक नई ग्रीनहाउस गैस नियंत्रण योजना तैयार करनी होगी। विशेषज्ञों का कहना है कि दुनिया के सबसे बड़े ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जक को वायु प्रदूषकों की निगरानी के अनुरूप कार्बन उत्सर्जन मापने की प्रक्रिया को बढ़ाने की जरूरत है ताकि राष्ट्रपति शी जिनपिंग द्वारा 2060 तक कार्बन न्यूट्रल बनने की प्रतिज्ञा को पूरा किया जा सके।
सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (सीआरईए) के प्रमुख विश्लेषक लॉरी मिल्लीवर्ता ने कहा, “वायु प्रदूषकों के विपरीत, सीओ2 उत्सर्जन की रिपोर्टिंग में एक बड़ा अंतर है — ऐसी कोई नियमित रिपोर्टिंग नहीं है जो चीन के कुल उत्सर्जन का खुलासा करे।”
विश्लेषकों ने कहा कि वर्तमान में वायु प्रदूषकों की उत्सर्जन निगरानी और प्रकटीकरण की व्यवस्था का कार्बन डाइ ऑक्साइड के लिए विस्तार करना एक बहुत बड़ा कदम होगा।
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