अति ग्लोबल वॉर्मिंग मिटा देगी सभी स्तनधारियों का वजूद।

अति ग्लोबल वॉर्मिंग मिटा देगी इंसान का नामोनिशान

अब तक के पहले सुपर कम्प्यूटर क्लाइमेट मॉडल ने चेतावनी दी है कि एक्सट्रीम ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण धरती से इंसान का वजूद पूरी तरह मिट जायेगा। इंग्लैंड स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिस्टल के शोधकर्ताओं ने पाया है कि ग्लोबल वॉर्मिंग के बढ़ते प्रभाव के कारण धरती का तापमान 70 डिग्री तक जा सकता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि यह अपनी तरह का पहला सुपर कम्प्यूटर मॉडल है जो बताता है कि अगले 25 करोड़ सालों में धरती में पानी और भोजन पूरी तरह से नष्ट हो जायेगा और मानव समेत सभी स्तनधारियों का अस्तित्व खत्म हो जायेगा। 

इस शोध के प्रमुख वैज्ञानिक लेखक डॉ अलेक्जेंडर फॉन्सवर्थ के मुताबिक इस हालाता में महाद्वीपीय प्रभाव, सूरज की बेतहाशा गर्मी और वातावरण में अधिक कार्बन डाइ ऑक्साइड के कारण एक तिहरा प्रभाव (ट्रिपल इफेक्ट) पैदा होगा। वैज्ञानिकों ने निकट भविष्य में मानवता के लिये बेहद कठिन हालात पैदा होने की बात कही है और कहा है कि सभी देशों को कोशिश करनी चाहिये कि जल्द से जल्द नेट ज़ीरो इमीशन का दर्जा हासिल हो सके।  

जाने माने कृषि वैज्ञानिक एम एस स्वामीनाथन का निधन 

भारत में हरित क्रांति के जनक डॉ एम एस स्वामीनाथन का गुरुवार को निधन हो गया। डॉ स्वामीनाथन 1960 और 70 के दशक में भारत में खाद्य सुरक्षा के लिये हरित क्रांति के सूत्रधार रहे। वह भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के निदेशक और फिलीपीन्स स्थित इंटरनेशनल राइस रिसर्च इंस्टिट्यूट के प्रमुख भी रहे। भारत में उपज बढ़ाने के लिये उन्होंने मैक्सिको में अमेरिकी वैज्ञानिक नॉमोन बोरलॉग द्वारा विकसित गेहूं के बीजों को घरेलू किस्मों के साथ मिलाकर संकर प्रजाति विकसित की। पंजाब जैसे राज्य में उनके प्रयोगों से उपज में पांच साल में पांच गुना बढ़ोतरी हो गई। स्वामीनाथन को उनके योगदान के लिये देश के दूसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से नवाज़ा गया था।

सितंबर में दुनिया के 10 देशों में बाढ़ का कहर, जलवायु परिवर्तन का असर  

भूमध्य सागर में उठे चक्रवाती तूफान डेनियल ने लीबिया को तबाह किया ही लेकिन दुनिया के कई देशों में इस साल बाढ़ ने भारी क्षति पहुंचाई। सितंबर में ही विश्व के कम से कम 10 देशों को बाढ़ से भारी नुकसान हुआ। इस महीने की शुरुआत हांग-कांग में तूफान से तबाही के साथ हुई फिर लीबिया में 11,000 लोगों की मौत और 30,000 लोग बेघर हुये जब यहां का डेर्ना शहर बर्बाद गया। डेनियल के प्रभाव से ग्रीस और टर्की में काफी क्षति हुई। उधर तूफान साओला ने हांगकांग में जीवन ठप्प कर दिया और चीन के शेनजेन और मकाऊ समेत कुल जगहों में मिलाकर करीब 10 लाख लोगों को सुरक्षित जगहों में भेजना पड़ा। ब्राज़ील में महीने की शुरुआत में बाढ़ से 30 से ज़्यादा लोगों की मौत हो गई। 

इन सारी  घटनाओं के एक साथ घटित होने को वैज्ञानिक क्लाइमेट चेंज के प्रभाव के रूप में देख रहे हैं। चक्रवाती तूफानों की बढ़ती संख्या और मारक क्षमता समुद्र के गर्म होने के लक्षण हैं।  अमेरिका के नेशनल ओशिनिक एंड एटमॉस्फियरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) के मुताबिक पिछले 50 साल में पूरी धरती में जो भी वॉर्मिंग हुई है उसमें से 90% का प्रभाव समुद्र पर पड़ा है। 

धू-धू जलते कनाडा के जंगलों से हुआ भारी इमीशन 

धरती पर विशाल कार्बन सिंक समझे जाने वाले कनाडा के जंगल धू-धू कर जल रहे हैं और हर रोज़ ढेर सारा धुंआं छोड़ रहे हैं। महत्वपूर्ण है कि ये जंगल न केवल सैकड़ों दुर्लभ प्रजातियों का बसेरा हैं – जिनमें बहुत सारी विलुप्त होने की कगार पर हैं – बल्कि ये वन जितना इमीशन करते हैं उससे ज़्यादा ग्रीन हाउस गैसों को सोखते हैं जिस कारण इन्हें दुनिया के बेहतरीन कार्बन सिंक में गिना जाता है। विशेषज्ञों के मुताबिक इन जंगलों से अभी हो रहा कार्बन इमीशन कनाडा के वार्षिक उत्सर्जन के तीन गुने के बराबर है और धरती पर पहले ही ग्लोबल वॉर्मिंग के गंभीर संकट के कारण इस आग ने  चिन्ता बढ़ा दी है।

कनाडा के जंगल हर साल आग का शिकार हो रहे हैं और यहां अलग-अलग हिस्सों में आग के पीछे अलग-अलग कारण बताये जाते हैं। करीब आधे मामलों के पीछे बिजली गिरना आग की वजगह है लेकिन इसके लिये शुष्क मौसम और इंसानी लापरवाही भी ज़िम्मेदार है। कनाडा के अलवर्टा प्रान्त में साल 2020 में 88% जंगल की आग मानवजनित थी जबकि 2017 से 2022 के बीच इस प्रान्त में हर साल औसतन 68% आग के मामले इंसानी लापरवाही के कारण रहे। उधर नेशनल फॉरेस्ट डाटाबेस के मुताबिक 1990 से 2022 के बीच क्यूबेक में 33% आग के मामले बिजली गिरने का कारण हुये जबकि ओंटारियो में यह आंकड़ा 50 प्रतिशत था।

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