पुर्तगाल के 6 युवाओं ने कहा है कि जलवायु आपदाओं से उनके मानवाधिकारों का हनन हो रहा है। Photo: Simon/Pixabay.com

जलवायु संकट न रोक पाने के लिए 6 युवाओं ने किया 32 देशों पर मुकदमा

छह पुर्तगाली युवाओं ने मानव जनित जलवायु संकट न रोक पाने लिए 32 यूरोपीय देशों के खिलाफ यूरोपियन कोर्ट में मुकदमा किया है। बुधवार, 27 सितंबर को इस मामले की पहली सुनवाई हुई, जिसमें 11 से 24 वर्ष की आयु वाले इन दावेदारों ने अदालत को बताया कि जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए त्वरित कदम उठाने में सरकारों की विफलता के कारण उनके अधिकारों का उल्लंघन हुआ है।     

ब्रिटेन-स्थित ग्लोबल लीगल एक्शन नेटवर्क (जीएलएएन) इस मुकदमे में इन युवाओं का समर्थन कर रहा है। यह मामला स्ट्रासबर्ग में यूरोपीय मानवाधिकार न्यायालय (ईसीएचआर) द्वारा सुना जाने वाला जलवायु से जुड़ा अब तक का सबसे बड़ा मामला है, और इसके परिणाम भी दूरगामी होंगे। यदि वादी यह  मुकदमा जीत जाते हैं, तो यह देशों को उनके क्लाइमेट एम्बिशन तेजी से बढ़ाने के लिए मजबूर करेगा और दुनिया भर में अन्य जलवायु से जुड़े मुकदमों के लिए नई संभावनाएं पैदा करेगा। और अगर फैसला इन युवाओं के खिलाफ होता है तो यह अन्य जलवायु से जुड़े दूसरे संघर्षों के लिए हानिकारक साबित हो सकता है।

मुक़दमे के जवाब में इन देशों की सरकारों ने कहा कि इन युवाओं में से कोई भी यह सिद्ध नहीं कर पाया है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से इन्हें कोई गहरी क्षति पहुंची है। हालांकि मुकदमा करने वाले युवाओं में से एक, 23 वर्षीय कटरीना मोटा ने कहा कि 2017 में पुर्तगाल के जंगलों में लगी आग, जिसमें 5 लाख हेक्टेयर भूमि जल के रख होगई थी, उनके घर के पास तक आगई थी और उसके धुएं ने उनके और उनके अन्य साथियों के जीवन पर जो प्रभाव डाला उसीके बाद उन्होंने यह मुकदमा करने की सोची।

इस मुकदमे में कहा गया है कि इन 32 देशों ने जलवायु आपदाओं में योगदान दिया है और युवाओं के भविष्य को खतरे में डाला है, इसलिए इन्हें तत्काल उत्सर्जन में कटौती तेज करनी चाहिए। इसके लिए जीवाश्म ईंधन उत्पादन पर अंकुश लगाना और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला को सस्टेनेबल बनाने जैसे सुझाव दिए गए हैं।

इसमें यह भी कहा गया है कि इन देशों ने अपने कार्बन बजट बढ़ा-चढ़ा कर बताए हैं और यह अधिक कटौती कर सकते हैं। जलवायु परिवर्तन पर यूरोपीय वैज्ञानिक सलाहकार बोर्ड (ईएसएबीसीसी) ने सुझाव दिया है कि देशों को 1990 के स्तर के मुकाबले उत्सर्जन में 75% कटौती का लक्ष्य रखना चाहिए, जो कि यूरोपीय संघ के वर्तमान 55% से कहीं अधिक महत्वकांक्षी है।

इन छह युवाओं का यह भी कहना है कि यह यूरोपीय देश पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा कर पाने में विफल रहे हैं और यदि मौजूदा गति से उत्सर्जन होता रहा तो वादियों के जीवनकाल में ही धरती का तापमान 3 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाएगा। इससे होने वाले बदलाव उनके मूल अधिकार, विषेशकर जीवन जीने के अधिकार का हनन हैं, जिसके लिए इन देशों की सरकारें जिम्मेदार हैं।

रिवर इंटरलिंकिंग परियोजनाओं से और बढ़ सकता है जल संकट: शोध

भारत की महत्वाकांक्षी रिवर लिंकिंग  परियोजनाएं अनजाने में देश के जल संकट को बढ़ा सकती हैं और मानसून के पैटर्न को बाधित कर सकती हैं, नेचर जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन का कहना है। आईआईटी मुंबई और भारतीय उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान, पुणे के शोधार्थियों समेत इस अध्ययन के रिसर्चर्स ने पाया कि देश में बढ़ते सूखे और बाढ़ से निपटने के लिए बनाई की गई इस योजना का प्रभाव विपरीत हो सकता है।

अध्ययन के अनुसार एक नदी घाटी में जो धरती की सतह और वायुमंडल के बीच पारस्परिक क्रिया होती है (जिसे लैंड-एटमॉस्फीयर फीडबैक कहा जाता है), वह दूसरी नदी घाटी में होनेवाली ऐसी ही क्रिया से प्रभावित हो सकती है। मिसाल के तौर पर, किसी एक बेसिन में मृदा की नमी दूसरे बेसिन में मृदा की नमी बढ़ा या घटा सकती है।

यदि इन घाटियों के बीच पानी का आदान-प्रदान होता है, जैसा की रिवर लिंकिंग परियोजनाओं के अंतर्गत होना है, तो इससे इनका लैंड-एटमॉस्फीयर इंटरैक्शन प्रभावित हो सकता है, जिसके फलस्वरूप वहां हवा और पवन में नमी की मात्रा में फर्क पड़ेगा और पूरे देश में बारिश का पैटर्न प्रभावित होगा।             

शोधकर्ताओं ने कहा कि इससे देश भर में जल संकट बढ़ सकता है, और इंटरलिंकिंग परियोजनाएं अप्रभावी हो जाएंगीं या उनका प्रभाव प्रतिकूल होगा।

गूगल ने भारत में शुरू की भूकंप चेतावनी सेवा

गूगल भारत में एक भूकंप चेतावनी सेवा शुरू की है जिसमे एंड्रॉइड स्मार्टफोन के सेंसर का उपयोग करके भूकंप का अनुमान लगाया जाता है और उसकी तीव्रता भी पता चलती है। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) और राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केंद्र (एनएससी) से परामर्श करके गूगल ने भारत में “एंड्रॉइड अर्थक्वेक अलर्ट सिस्टम” लॉन्च किया है।

यह चेतावनी सेवा एंड्रॉइड 5 के ऑपरेटिंग सिस्टम और इसके बाद के संस्करणों में उपलब्ध होगी। यह सिस्टम एंड्रॉइड फोन में मौजूद छोटे एक्सेलेरोमीटर की मदद लेता है जो एक मिनी सीस्मोमीटर के रूप में कार्य कर सकता है। ‘जब किसी फोन को प्लग इन करके चार्ज किया जाता है, तो यह शुरुआती भूकंप के झटकों का पता लगा सकता है। यदि कई फोन एक ही समय में भूकंप जैसे झटकों का पता लगाते हैं, तो हमारा सर्वर इस जानकारी का उपयोग करके यह अनुमान लगा सकता है कि भूकंप आ रहा है, और इसके केंद्र आदि का पता लगाकर आस-पास के फ़ोन्स पर अलर्ट भेज सकता है,’ गूगल ने एक ब्लॉग में कहा।

दिल्ली सरकार बनी यूएन-समर्थित रेसिलिएंस अभियान का हिस्सा

दिल्ली सरकार वैश्विक क्लाइमेट एम्बिशन में रेसिलिएंस (जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों को झेलने, उनके साथ अनुकूलन करने और उनसे उबरने की क्षमता) को बढ़ावा देने के लिए संयुक्त राष्ट्र द्वारा समर्थित अभियान ‘रेस टू रेसिलिएंस’ में शामिल हो गई है। इसके तहत दिल्ली सरकार ने जो प्रतिबद्धताएं जताई हैं उनमें अगले पांच वर्षों के भीतर 25 प्रतिशत ग्रीन कवर हासिल करना भी शामिल है। इन प्रतिबद्धताओं का उद्देश्य सतत विकास को बढ़ावा देते हुए क्लाइमेट रेसिलिएंस बढ़ाना है।

इनमें शामिल है कचरे को पुन: उपयोग करने और कम करने के लिए चक्रीय अर्थव्यवस्था तथा स्वच्छ और टिकाऊ ऊर्जा तक पहुंच बढ़ाने के लिए विकेन्द्रीकृत नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में निवेश आदि। इस अभियान के तहत, दिल्ली सरकार ने हरित क्षेत्र को बढ़ाने और वृक्षारोपण के लिए भी प्रतिबद्धता जताई है, जिसका लक्ष्य अगले पांच वर्षों में 25 प्रतिशत हरित आवरण हासिल करना है।

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