ऊर्जा बदलाव की चौथी कड़ी में हृदयेश जोशी बात कर रहे हैं ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर कुंतला लाहिरी दत्त और दिल्ली-स्थित सेंटर फॉर पॉलिस रिसर्च में एसोसिएट फेलो सुरवि नायक से।
इस बातचीत में यह जानने की कोशिश है कि भारत के ऊर्जा क्षेत्र में महिलाओं की क्या भूमिका है और उसमें बदलाव आने से उन पर क्या प्रभाव पड़ेगा। क्या अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में महिलाओं के लिए रोज़गार के पर्याप्त अवसर हैं और क्यों ज़रूरी है कि जस्ट ट्रांजिशन के विमर्श में वह अहम भूमिका निभाएं।
इस संबंध में महिलाओं की स्थिति के बारे में चर्चा करते हुए प्रो लाहिरी दत्त ने कहा कि जैसे महिलाओं और पुरुषों की स्थिति एक नहीं है, वैसे सभी महिलाओं की स्थिति भी एक जैसी नहीं है। जो शिक्षित महिलाएं कोल इंडिया के दफ्तरों में काम कर रही हैं और दूसरी और जो कोयला क्षेत्रों से विस्थापित महिलाएं हैं जिनके पास आजीविका नहीं है या खेती करने की गुंजाइश भी नहीं है, इन दोनों के हित अलग-अलग होंगे। और इनकी समस्याएं भी अलग हैं। जिनकी नौकरी जाएगी, उन्हें रीस्किल किया जा सकता है, लेकिन जिनके पास स्किल है ही नहीं, आपको उनपर अधिक ध्यान देने की जरूरत है।
रीस्किलिंग के सवाल पर सुरवि नायक कहती हैं कि ज्यादातर कोयला क्षेत्र पूर्वी भारत में हैं, जबकि नवीकरणीय परियोजनाएं पश्चिम और दक्षिण के राज्यों में आ रही हैं। जब पूर्वी भारत में नवीकरणीय परियोजनाएं आ ही नहीं रही हैं, तो केवल रीस्किलिंग से क्या होगा? क्या महिलाओं को विस्थापित होना पड़ेगा? यह एक बड़ा सवाल है।
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