दुबई में चल रहे कॉप28 सम्मलेन में शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संबोधन हुआ, जिसमें उन्होंने प्रस्ताव रखा कि 2028 में कॉप33 का आयोजन भारत में किया जाए। उन्होंने एक ‘ग्रीन क्रेडिट पहल’ की भी घोषणा की, जो लोगों की भागीदारी द्वारा कार्बन सिंक बनाने पर केंद्रित है।
संयुक्त राष्ट्र के जलवायु सम्मलेन में मोदी ने मिटिगेशन और अडॉप्टेशन के बीच संतुलन बनाए रखने पर ज़ोर दिया और कहा कि दुनियाभर में एनर्जी ट्रांज़िशन ‘न्यायसंगत और समावेशी’ होना चाहिए।
उन्होंने अमीर देशों से आग्रह किया कि वह “2050 के बहुत पहले” ही अपने कार्बन फुटप्रिंट पूरी तरह ख़त्म करें, और विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए तकनीकी सहायता प्रदान करें। उन्होंने विकासशील और गरीब देशों को क्लाइमेट फाइनेंस देने पर एक मजबूत निर्णय करने का भी आह्वान किया, और कहा कि ग्रीन क्लाइमेट फंड और एडाप्टेशन फंड में पैसे की कमी नहीं होनी चाहिए।
मोदी ने एक और पहल भी शुरुआत की जिसके तहत बंजर भूमि पर वृक्षारोपण करके ग्रीन क्रेडिट प्राप्त किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि यह ग्रीन क्रेडिट पहल कार्बन क्रेडिट की व्यावसायिक प्रकृति से बेहतर है। मोदी ने इस बात पर प्रकाश डाला कि भारत में दुनिया की 17 प्रतिशत आबादी रहती है, लेकिन फिर भी वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में इसकी हिस्सेदारी 4 प्रतिशत से कम है।
उन्होंने 2030 तक 45% एमिशन घटाने और 50% ऊर्जा गैर-जीवाश्म स्रोतों से प्राप्त करने के भारत के लक्ष्यों का भी उल्लेख किया।
सम्मलेन में शुक्रवार को भारत और स्वीडन ने मिलकर लीडआईटी 2.0 नामक एक पहल की शुरुआत भी की। इसका उद्देश्य विकासशील देशों में उद्योगों को एनर्जी ट्रांज़िशन के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करना और लो-कार्बन तकनीक का विकास और आदान-प्रदान करना है।
भारत इससे पहले 2002 में कॉप8 की मेज़बानी कर चुका है।
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