एशिया और अफ्रीका के प्रवासी मज़दूर नवंबर दिसंबर में दुबई में होने वाले 28 वें जलवायु परिवर्तन महासम्मेलन (कॉप-28) के लिए चिलचिलाती धूप में काम कर रहे हैं।
फेयर स्कवेयर नाम के मानवाधिकार संगठन ने मज़दूरों के बयान और वीडियो प्रमाण इकट्ठे किए हैं, जिनमें पाया गया कि कम से कम तीन जगहों पर एक दर्जन से अधिक मज़दूर सितंबर के महीने में 42 डिग्री सेल्सियस तापमान में बाहर काम कर रहे थे। कम से कम दो दिन ऐसे थे जबकि मिड-डे बैन (जिसमें यूएई के श्रम क़ानूनों के तहत कड़ी धूप में काम करवाने पर पाबंदी है) के वक़्त मज़दूर दोपहर में बाहर काम कर रहे थे।
पूरी दुनिया में हर साल 50 लाख लोगों की मौत अत्यधिक गर्मी या ठंड के कारण होती है, और क्लाइमेट चेंज प्रभावों के बढ़ने के कारण हीटस्ट्रोक से प्रभावितों और मरने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है। इन मज़दूरों ने माना कि कड़ी धूप में काम करने से वह बीमार महसूस करते हैं लेकिन दैनिक मज़दूरी के लिए यह सब करना पड़ता है।
यूएई में काम करने वाले 90% मज़दूर और कर्मचारी प्रवासी हैं और यहां की राजधानी दुबई दुनिया के सबसे घनी आबादी वाले शहरों में है। इन प्रवासी मज़दूरों में से अधिकतर भारत से आते हैं।
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