ग्लासगो में जलवायु परिवर्तन सम्मेलन के पहले ही दिन भारत ने अपना नेट ज़ीरो वर्ष घोषित कर दिया। भारत ने ऐलान किया है कि वह 2070 तक नेट ज़ीरो का दर्जा हासिल कर लेगा। यानी उसके संयंत्रों से जितना भी कार्बन उत्सर्जन होगा वह प्रकृति द्वार सोख लिया जायेगा। इससे पहले चीन ने 2060 को अपना नेट ज़ीरो वर्ष घोषित किया।
प्रधानमंत्री मोदी ने ग्लासगो में ऐलान किया कि भारत अपनी गैर-जीवाश्म ईंधन ऊर्जा क्षमता को 2030 तक 500 GW तक बढ़ा देगा। पीएम ने ये भी कहा कि भारत 2030 तक अक्षय ऊर्जा से अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं का 50% पूरा करेगा और साल 2030 तक भारत 100 करोड़ टन कार्बन उत्सर्जन कम करेगा
जलवायु और उद्योग विशेषज्ञों द्वारा इन घोषणाओं का स्वागत किया गया। अंतरराष्ट्रीय सोल एलायंस के प्रमुख अजय माथुर ने कहा कि प्रधानमंत्री वे दुनिया के सामने भारत की ओर से क्लाइमेट एक्शन पर एक बड़ा वादा किया है। उनके मुताबिक 100 करोड़ टन कार्बन इमीशन कम करना और साफ ऊर्जा की क्षमता को 500 गीगावॉट तक ले जाना बहुत महत्वाकांक्षी और बदलाव लाने वाला कदम है।
अक्षय ऊर्जा और सबसे सस्ते हाइड्रोजन के उत्पादन में अडानी समूह करेगा 70 बिलियन डॉलर का निवेश
अडानी ग्रुप के चेयरमैन गौतम अडानी ने कहा है कि उनका लॉजिस्टिक्स-टू-एनर्जी समूह अगले दशक में दुनिया की सबसे बड़ी अक्षय ऊर्जा कंपनी बनने और विश्व में सबसे सस्ते हाइड्रोजन का उत्पादन करने के लिए 70 बिलियन अमरीकी डालर का निवेश करेगा।
दुनिया की सबसे बड़ी सौर ऊर्जा उत्पादक अडानी ग्रीन एनर्जी लिमिटेड (एजीईएल) ने 2030 तक 45 गीगावाट अक्षय ऊर्जा क्षमता का लक्ष्य रखा है और 2022-23 तक 2 गीगावाट प्रति वर्ष सौर विनिर्माण क्षमता विकसित करने के लिए 20 अरब अमेरिकी डॉलर का निवेश करेगी।
वहीं अडानी ट्रांसमिशन लिमिटेड (एटीएल), जो भारत की सबसे बड़ी निजी बिजली पारेषण और खुदरा वितरण कंपनी है, वित्त वर्ष 2023 तक नवीकरणीय बिजली की खरीद को मौजूदा 3 प्रतिशत से बढ़ाकर 30 प्रतिशत और वित्त वर्ष 2030 तक 70 प्रतिशत करना चाहती है।
चीन में बिजली संकट से भारत की सौर परियोजनाएं प्रभावित
चीन में बिजली संकट से भारत के सौर क्षेत्र में संकट महसूस किया गया। इस कारण भारत में अक्टूबर की शुरुआत से सौर परियोजनाओं की लागत में 12 से 15 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। ऐसा सोलर मॉड्यूल और पैनलों की कीमतें बढ़ने के कारण हुआ है क्योंकि चीन में निर्माण कार्य बंद होने की वजह से उत्पादन प्रभावित हुआ।
विशेषज्ञों की माने तो चीन में बिजली कटौती का सीधा प्रभाव भारत की सौर परियोजनाओं पर पड़ता है। क्योंकि इससे न केवल सौर उपकरणों के दाम बढ़ते हैं, बल्कि आपूर्ति में भी अनिश्चितता की स्थिति पैदा होती है। जिसके फलस्वरूप डेवलपर्स के लिए परियोजना की लागत बढ़ जाती है और फिर यह भार अंततः उपभोक्ता को ही सहना पड़ता है।
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