Photo: Indian Express

COP26:ग्लासगो में भारत ने किया आसमानी इरादों का ऐलान

ग्लासगो में जलवायु परिवर्तन सम्मेलन के पहले दिन भारत ने अपना नेट ज़ीरो वर्ष घोषित कर दिया। भारत ने ऐलान किया है कि वह 2070 तक नेट ज़ीरो का दर्जा हासिल कर लेगा। यानी उसके संयंत्रों से जितना भी कार्बन उत्सर्जन होगा वह प्रकृति द्वार सोख लिया जायेगा। इससे पहले चीन ने 2060 को अपना नेट ज़ीरो वर्ष घोषित किया।

प्रधानमंत्री मोदी ने सोमवार को ग्लासगो में ऐलान किया कि –
1. भारत अपनी गैर-जीवाश्म ईंधन ऊर्जा क्षमता को 2030 तक 500 GW तक बढ़ा देगा
2. भारत 2030 तक अक्षय ऊर्जा से अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं का 50% पूरा करेगा
3. साल 2030 तक भारत 100 करोड़ टन कार्बन उत्सर्जन कम करेगा
4. भारत 2030 तक अपनी अर्थव्यवस्था की कार्बन तीव्रता को 45% से कम कर देगा

जलवायु और उद्योग विशेषज्ञों द्वारा इन घोषणाओं का स्वागत किया गया। अंतरराष्ट्रीय सोल एलायंस के प्रमुख अजय माथुर ने कहा कि प्रधानमंत्री वे दुनिया के सामने भारत की ओर से क्लाइमेट एक्शन पर एक बड़ा वादा किया है। उनके मुताबिक 100 करोड़ टन कार्बन इमीशन कम करना और साफ ऊर्जा की क्षमता को 500 गीगावॉट तक ले जाना बहुत महत्वाकांक्षी और बदलाव लाने वाला कदम है।

जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण पर काम करने वाली दिल्ली स्थित क्लाइमेट ट्रेंड की निदेशक आरती खोसला का कहना है कि प्रधानमंत्री ने क्लाइमेट पर सकारात्मक पहल की है। आने वाले दिनों में सौर और पवन ऊर्जा का बिजली के बड़े स्रोत के रूप में उभरना तय है।

डब्ल्यूआरआई इंडिया में जलवायु कार्यक्रम निदेशक, उल्का केलकर के अनुसार, यह पांच प्रतिज्ञाएं भारत के वर्तमान एनडीसी की तुलना में काफी अधिक महत्वाकांक्षी हैं। यह घोषणाएं देश को कम कार्बन विकास पथ पर ले जाएंगी और उद्योग और समाज के हर क्षेत्र को मजबूत संकेत देंगी । केलकर ने बताया कि इन लक्ष्यों को पूरा करना कोई साधारण बात नहीं होगी और इसके लिए अतिरिक्त निवेश और सहायक नीतियों की आवश्यकता होगी।

लेकिन सरकार के वादों और व्यवहारिक कदमों में तालमेल न होने को कई जानकार सवाल उठा रहे हैं। पूर्व पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने ट्वीट कर कहा कि ग्लासगो में प्रधानमंत्री द्वार बड़े ऐलान एक बात है लेकिन आप घर पर क्या कदम उठा रहे हैं ये असल मायने रखता है। पर्यावरण और जंगल से जुड़े सभी कानूनों को कमज़ोर किया जा रहा है, मानक ढीले किये जा रहे हैं और कानून लागू करने वाली संस्थाओं को कमज़ोर किया जा रहा है। यह वास्तविकता है – 2070 के बड़े वादों से बात नहीं बनेगी।

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