कोयला मंत्रालय कोल माइनिंग को बन्द करने के लिये विश्व बैंक से मदद चाहता है। मोंगाबे इंडिया में प्रकाशित ख़बर के मुताबिक सरकार जस्ट ट्रांजिशन के नियमों के तहत सभी हितधारकों से बात कर एक पूर्ण और समयबद्ध कार्यक्रम बनाना चाहती है। हितधारकों में कोयला खनन कंपनियां, कर्मचारी और स्थानीय निवासी शामिल हैं। सरकार इसके लिये विश्व बैंक से करीब 7,500 करोड़ रुपये की मदद चाहती है। पिछले महीने सरकार ने एक बयान जारी कर कहा था कि वह इस दिशा में काम कर रही है और विश्व बैंक से सलाह ली जा रही है।
भारत दुनिया के 5 बड़े कार्बन उत्सर्जकों में है। इस वक्त यूके के ग्लासगो यून का जलवायु परिवर्तन सम्मेलन चल रहा है जिसमें हर साल करीब 200 देश हिस्सा लेते हैं। इस सम्मेलन में भी ग्लोबल वॉर्मिंग रोकने के लिये भारत पर कोयले का प्रयोग बन्द करने का दबाव है। कारखानों और बिजलीघरों में कोयले का प्रयोग स्पेस में कार्बन जमा करता है जो कि जलवायु परिवर्तन के लिये ज़िम्मेदार है।
कोयला खदानों को बन्द करने में पेंच यह है कि सरकार इससे होने वाले राजस्व की भरपाई कहां से करेगी और उन लोगों की रोज़ी रोटी का क्या होगा जो कोयला खदानों, बिजलीघरों और कोयले के कारोबार में हैं। इन लोगों को ट्रेनिंग देकर दूसरे क्षेत्रों में रोज़गार दिलाना ही जस्ट ट्रांजिशन कहा जाता है जिसके लिये योजना और धन चाहिये।
एनर्जी एक्सपर्ट और कोयला क्षेत्र के जानकार संदीप पाई ने मोंगाबे इंडिया को बताया कि खदान के बन्द होने के बाद काफी मज़बूत भू-प्रयोग नीति लागू होनी चाहिये ताकि पर्यावरणीय पुनर्वास हो सके और स्थानीय अर्थव्यवस्था को विकसित किया जा सके।
दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
कार्बनकॉपी हिंदी में आपका स्वागत है।
आपको यह भी पसंद आ सकता हैं
-
अगले साल वितरित की जाएगी लॉस एंड डैमेज फंड की पहली किस्त
-
भारत के 85% जिलों पर एक्सट्रीम क्लाइमेट का खतरा, उपयुक्त बुनियादी ढांचे की कमी
-
भारत के ‘चमत्कारिक वृक्षों’ की कहानी बताती पुस्तक
-
बाकू वार्ता में नए क्लाइमेट फाइनेंस लक्ष्य पर नहीं बन पाई सहमति
-
किसान आत्महत्याओं से घिरे मराठवाड़ा में जलवायु संकट की मार