भारत से विलुप्त होने के करीब पिचहत्तर साल बाद चीता फिर से वापस लाया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन अवसर पर नामीबिया से 8 चीतों को भारत लाकर मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में छोड़ा जायेगा। पहली बार इतने बड़े मांसाहारी जीव को एक महाद्वीप से दूसरे में लाकर बसाया जा रहा है। भारत में चीता 1947 में विलुप्त हो गये थे। अत्यधिक हंटिंग और इस जीव को जंगल में इसे अपना शिकार न मिल पाने के कारण यह प्राणी विलुप्त हो गया।
भारत में चीता को 1952 में आधिकारिक रूप से विलुप्त घोषित किया गया और 1970 में इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री रहते पहली बार चीता को वापस भारत लाने की बात हुई। उसके बाद 2009 में इसे वापस लाने की कोशिश हुई लेकिन 2020 में ही सुप्रीम कोर्ट ने इसे भारत लाने के लिये अनुमति दी। नामीबिया से 8 चीतों को लाने के बाद दक्षिण अफ्रीका से भी 12 चीते भारत लाये जाने हैं।
चंबल वन्यजीव अभ्यारण्य के कुछ हिस्से रेत खनन के लिये खोले जायेंगे
नेशनल चंबल वाइल्डलाइफ सेंक्चुरी को रेत खनन के लिये खोला जा रहा है। चंबल वन्यजीव अभ्यारण्य तीन राज्यों (राजस्थान, यूपी और मध्य प्रदेश) में फैला है। नेशनल बोर्ड फॉर वाइल्ड लाइफ ने मध्य प्रदेश के मुरैना ज़िले में 207.05 हेक्टेयर में रेत खनन की इजाज़त दी है। पर्यावरण के जानकारों ने चेतावनी दी है कि यह कदम रेत खनन को कानूनी मान्यता दे देगा जिसे अब तक इस क्षेत्र में गैरकानूनी माना जाता है। इसके बाद केंद्र और राज्य सरकारों पर यह दबाव भी पड़ेगा कि वह संरक्षित क्षेत्रों को इसी तरह की गतिविधि के लिये खोलें।
यूके की नई प्रधानमंत्री ने क्लाइमेट चेंज के प्रभावों पर शक करने वाले को बना दिया ऊर्जा मंत्री
यूके की नई प्रधानमंत्री लिज़ ट्रस ने जेकब रीस-मॉग को देश का नया ऊर्जा मंत्री नियुक्त किया है जिससे क्लाइमेट एक्सपर्ट हैरान हैं। रीस-मॉग पहले बिजली की ऊंची कीमतों के लिये “क्लाइमेट चेंज के हौव्वे” को ज़िम्मेदार ठहरा चुके हैं। अब क्लाइमेट एक्टिविस्ट इस नियुक्त को “बहुत चिन्तित करने वाला” बता रहे हैं। यूके ने 2050 तक नेट ज़ीरो हासिल करने का जो लक्ष्य रखा है रीस-मॉग उसके लिये प्रयासों का नेतृत्व करेंगे लेकिन क्लाइमेट चेंज की वास्तविकता को लेकर उनके विचारों से कई लोगों को शक है कि मॉग इस काम के लिये कितने कारगर साबित होंगे।
दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
कार्बनकॉपी हिंदी में आपका स्वागत है।
आपको यह भी पसंद आ सकता हैं
-
आर्थिक सर्वे: फाइनेंस की कमी पर भारत की विकसित देशों को चेतावनी
-
पर्याप्त फाइनेंस के अभाव में प्रभावित होगा क्लाइमेट एक्शन: आर्थिक सर्वे
-
केंद्र ने कोयला ब्लॉक, विकास परियोजनाओं के लिए बदले वनीकरण नियम
-
‘जंगलों के क्षेत्रफल के साथ उनकी गुणवत्ता देखना बहुत ज़रूरी है’
-
बाकू सम्मेलन के बाद विकासशील देशों ने खटखटाया अंतर्राष्ट्रीय अदालत का दरवाज़ा