विश्व मंच पर साफ ऊर्जा के तमाम वादों के बावजूद कोल पावर को लेकर भारत के हाथ बंधे हुये हैं। एक ओर सरकार ने थर्मल पावर प्लांट्स को अब भी कड़े नियमों में ढील दी हुई है वहीं दूसरी ओर पावर सेक्टर के संकट को देखते हुये लगता है कि सरकार कोयले और कोल-बेड-मीथेन (CBM) का मोह नहीं छोड़ पा रही है।
आर्थिक सर्वे ने भले ही क्लीन एनर्जी सेक्टर में करीब 23 लाख करोड़ रुपये के निवेशकी सलाह दी लेकिन बजट में सब टांय टांय फिस्स हो गया। इस क्षेत्र में किसी पैकेज का ऐलान होना तो दूर इस सेक्टर के विस्तार के लिये बजट में केवल 2.1% की बढ़ोतरी हुई – ₹ 5,146.63 करोड़ से ₹ 5,254 करोड़
इसके उलट कोयला मंत्रालय के बजट में पिछले साल के मुकाबले 48% की वृद्धि हुई है। दिलचस्प है कि कोयले और लिग्नाइट के खनन को पर सबसे अधिक ज़ोर है। इनके लिये धन आवंटन 500% बढ़ाया गया है – जहां 2017 में यह ₹ 159.28 करोड़ था वहीं अब इसे ₹ 937 करोड़ कर दिया गया है। चिंताजनक बात यह है कि इस बढ़ोतरी के बावजूद कोयला खदानों में काम करने वालों की सुरक्षा और मूलभूत ढ़ांचे में सुधार के लिये बजट 30% गिरा है।
माना जा रहा है कि बजट में बढ़ोतरी CBM को बढ़ावा देने के लिये है। देश में आज करीब 94800 करोड़ घन मीटर कोल-बेड-मीथेन का भंडार है। पिछले साल नियमों में ढील की वजह से कई कंपनियां इस क्षेत्र में कदम रखने की तैयारी में हैं। मीथेन एक बहुत खतरनाक ग्रीन हाउस गैस है और इस तरह के ईंधन में निवेश के खिलाफ खुदस्टेट बैंक ऑफ इंडिया के चेयरमैन बयान दे चुके हैं।
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