दिवाली से पहले राष्ट्रीय राजधानी और आस-पास के क्षेत्रों में प्रदूषण का स्तर बढ़ गया है और हवा की गुणवत्ता ‘खराब’ श्रेणी में आ गई है।
सिस्टम ऑफ एयर क्वालिटी एंड वेदर फोरकास्टिंग एंड रिसर्च (सफर) के अनुसार, बीते शनिवार को दिल्ली में समग्र वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 262 दर्ज किया गया। सुबह राजधानी में धुंध भी छाई रही जिससे इंडिया गेट और राष्ट्रपति भवन स्पष्ट रूप से दिखाई नहीं दे रहे थे।
वहीं केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा 21 अक्टूबर 2022 को जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि देश के 168 शहरों में से 26 में वायु गुणवत्ता का स्तर खराब दर्ज किया गया, जबकि फरीदाबाद (312) में यह बेहद खराब रहा। गाजियाबाद में वायु गुणवत्ता सूचकांक 300, गुरुग्राम में 242, और नोएडा में 258 पर पहुंच गया है।
सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर के रिसर्चर सुनील दहिया ने एक ट्वीट में कहा कि दिल्ली-एनसीआर में पीएम2.5 का स्तर अब विश्व स्वास्थ्य संगठन के दैनिक दिशानिर्देशों का 9-10 गुना है।
हर साल ठंड के इन शुरुआती महीनों में ख़राब होती हवा और दीवाली के त्यौहार को देखते हुए सरकार ने प्रदूषण से निबटने के लिए ग्रेडेड रिपॉन्स एक्शन प्लान (जीआरएपी) के तहत कुछ कदम उठाए हैं।
दिल्ली सरकार ने इस साल पटाखों के उत्पादन, भंडारण, बिक्री और प्रयोग पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है। इस प्रतिबंध का उल्लंघन करने पर जुर्माना और जेल की सजा भी हो सकती है।
वाहनों से होने वाले प्रदूषण को कम करने के लिए, दिल्ली सरकार ने ‘रेड लाइट ऑन गाड़ी ऑफ’ अभियान की घोषणा की है।
सर्दियों में राष्ट्रीय राजधानी में हवा की गुणवत्ता ख़राब होने की बड़ी वजह है पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान में पराली जलाने की घटनाएं।
देखना है कि दीवाली के दौरान और बाद में पराली जलाने की घटनाएं बढ़ती हैं या नहीं। हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि इस महीने हुई बारिश की वजह से पराली जलाने का सिलसिला इस बार देर से शुरू हुआ है। वहीं दिवाली भी इस साल जल्दी आई है। ऐसे में अनुमान तो यही है कि पराली जलने की गतिविधियां बढ़ सकती हैं जिससे प्रदूषण का स्तर और बढ़ेगा।
शोधकर्ताओं की मानें तो वायु गुणवत्ता की बेहद खराब स्थिति से बचने के लिए प्रदूषण के सभी प्रमुख स्रोतों पर और सख्त कार्रवाई की जरूरत है। वहीं एक सर्वेक्षण के अनुसार, दिल्ली-एनसीआर में हर पांच में से दो परिवार दिवाली पर पटाखे फोड़ने के लिए तैयार हैं।
उत्तर भारत के प्रदूषण बोर्डों के कुल सदस्यों में लगभग 60% जुड़े हैं प्रदूषण करने वालों
दिल्ली स्थित सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के नये शोध में कहा गया है कि देश के 10 राज्यों के प्रदूषण बोर्डों के कुल 57% सदस्य उन उद्योगों से जुड़े हैं जो प्रदूषण करते हैं। ये वह बोर्ड हैं जिन पर देश के सबसे प्रदूषित कहे जाने वाले हिस्से गंगा के मैदानी भाग में प्रदूषण को नियंत्रित करने की ज़िम्मेदारी है। इन बोर्डों में कुल 7% ही सदस्य वैज्ञानिक, चिकित्सक या अध्येता हैं। अधिकतर बोर्ड इन न्यूनतम शर्त को पूरा नहीं करते जिसके मुताबिक कम से कम 2 सदस्य ऐसे होने चाहिये जिन्हें एयर क्वॉलिटी मैनेजमेंट का ज्ञान होना चाहिये।
सीपीआर ने अपनी रिसर्च में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, झारखंड, बिहार, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल के प्रदूषण बोर्डों का विश्लेषण किया। सीपीआर ने अपनी रिसर्च में यह पाया कि इन सभी बोर्डों में 40 प्रतिशत पद रिक्त हैं। झारखंड में 84% टेक्निकल पद खाली हैं जबकि बिहार और हरियाणा में यह आंकड़ा 75% है।
गर्भ में पल रहे बच्चे के अंगो में कर रहा प्रदूषण प्रवेश
क्या आप सोच सकते हैं कि प्रदूषण किस हद तक मानव स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है। वैज्ञानिकों ने पहली बार यह पाया है कि गर्भस्थ शिशु के अंगों तक वायु प्रदूषण के अदृश्य कण पहुंच गये हैं। अंतराष्ट्रीय जर्नल लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ में प्रकाशित हुए शोध में यह बात कही गई है।
यूरोप के एबरडीन और हैसेल्ट विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने अध्ययन में पाया है कि अजन्मे बच्चों के फेफड़ों, जिगर और मस्तिष्क में वायु प्रदूषण के कण पहुंच रहे हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि गर्भ के पहले तिमाही में वायु प्रदूषण के कण प्लेसेंटा को पार कर भ्रूण में प्रवेश कर सकते हैं। अध्ययनकर्ता वैज्ञानिकों ने उन भ्रूणों के ऊतकों का अध्ययन किया जिनका गर्भपात सात से बीस सप्ताह की उम्र में किया गया था। वैज्ञानिकों ने कार्बन के हज़ारों कण भ्रूण में पाये और उनका निष्कर्ष है कि वायु प्रदूषण का यह प्रभाव मानव विकास के लिये सबसे खतरनाक है क्योंकि भ्रूण में शिशु सबसे नाज़ुक दौर में होता है।
फ्रांस: अदालत ने वायु गुणवत्ता में सुधार न कर पाने पर लगाया जुर्माना
फ्रांस की सबसे बड़ी प्रशासनिक अदालत ने वायु गुणवत्ता को न सुधार पाने पर सरकार के ऊपर 1 करोड़ यूरो यानी करीब 81 करोड़ रुपये के दो नये जुर्माने लगाये हैं। पिछले साल इसी अदालत ने 1 करोड़ यूरो का जुर्माना इस ही वजह से लगाया था।
फ्रांस में पांच साल पहले ‘काउंसिल डि टाट’ अदालत ने सरकार को आदेश दिया था कि वह करीब एक दर्जन क्षेत्रों में नाइट्रोजन डाइ ऑक्साइड (NO2) और महीन कणों के स्तर को यूरोपीय मानको के हिसाब से कम करे। अदालत ने अपने आदेश में कहा कि सरकार ने जो कदम उठाये हैं उनसे यह विश्वास नहीं होता कि प्रदूषण स्तर को कम कर एयर क्वॉलिटी को वांछित स्तर पर ला सकेंगे। रायटर्स के मुताबिक जुर्माने की राशि उन पर्यावरण समूहों को मिलेगी जिन्होंने यह केस दायर किया था।
ईंधन के नियमन से शिपिंग उद्योग द्वारा होने वाला वायु प्रदूषण घटा: नासा
पिछले 17 सालों में दिन के वक्त ली गई उपग्रह की तस्वीरें बताती हैं कि समुद्रपोतों से निकलने वाले धुंयें के गुबार में कमी हुई है। साल 2020 में इंटरनेशनल मैरीटाइम ऑर्गेनाइजेशन (आईएमओ) ने वैश्विक मानक लागू किये जिसमें ईंधन में सल्फर की मात्रा को 86% किया जाना था। इस कारण जहाज़ों से छूटने वाला धुयें का गुबार (शिप ट्रेक) कम हुआ। कोरोना महामारी के कारण व्यापार में व्यवधान भी इस कमी के पीछे एक छोटा कारण है।
दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
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